अमृत महोत्सव- स्वाधीनता के लिए समर्पित विष्णु सिंह गोंड की कहानी

24 Feb 2022 15:44:51
विष्णु सिंह
 
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में समय-समय पर अनेक वनवासी युवक-युवतियों ने अपना योगदान दिया है, बलिदान हुए हैं। इस अवसर पर हम ऐसे गुमनाम वनवासी बलिदानियों का भी स्मरण करेंगे जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व समर्पण किया है, किन्तु इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हैं।
 
उनमें से ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे बैतूल जिले (मध्यप्रदेश) के सरदार विष्णु सिंह गोंड जिन्होंने अपनी युवावस्था में 1930 में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व किया था।
 
घोड़ा डोंगरी विकास खंड के गोंड जनजाति बाहुल्य ग्राम महेंद्रवाड़ी में एक छोटे से किसान परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता श्री जंगूसिंह गोंड अपने परिवार का पालन-पोषण इसी थोड़ी सी जमीन से चलाया करते थे, उनकी आजीविका का यही एकमात्र साधन था।
 
विष्णुसिंह की शिक्षा प्राथमिक कक्षा तक की ही हो सकी थी। बाद में वे देश के काम में ऐसे लग गये कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे सन 1930 में जंगल सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय हो गये थे। 1932 में इस आंदोलन को संचालित करने में वे सबसे आगे थे। 1939 में फारवर्ड ब्लाक के नेता आनंद राव लोखंडे के साथ फारवर्ड ब्लाक में जुड़ गये और घोड़ाडोंगरी, शाहपुर के जनजातीय गाँवों में देश की स्वतंत्रता के लिए जागरुकता फैलाने का काम किया। 1942 में गाँधी जी ने देशवासियों को नया मंत्र "करो या मरो- अंग्रेजो भारत छोड़ो" आंदोलन का शंखनाद किया तो उसमें भी सरदार विष्णुसिंह गोंड ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
 
19 अगस्त 1942 को उन्होंने घोड़ाडोंगरी में एक अनौपचारिक सभा की जिसमें बाँस व इमारती लकड़ियों का सरकारी डिपो जलाने, सुरंगों के पास रेल की पटरी उखाड़ने, रेल पटरियों के किनारे टेलीग्राम व अन्य तारों को काटने, रेलवे स्टेशन और रानीपुर थाने को जलाने का निर्णय लिया गया। यह सभा मालगुजार ऋषिराम शुक्ला के बगीचे में हुई थी। इस सभा में हजारों लोगों ने भाग लिया था जिसका नेतृत्व सरदार विष्णुसिंह गोंड ने किया था।
 
उस समय घटित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण पुलिस के पुराने अभिलेख V.C.N.B. में दर्ज हैं जो इस प्रकार हैं- विष्णु गोंड मीटिंग के बाद वापस महेंद्रवाड़ी आया और गाँव के आदमियों को अपने साथ कर लिया। जिनमें 12 आदमी हथियार लिये थे जिनके पास बल्लम, कुल्हाड़ी और लाठियां थीं। दिनांक 20/8/1942 को वे गाँव-गाँव घूमकर लोगों को इकट्ठा करने में लगे थे। उन्होंने रात को सालीढ़ाना में मुकाम किया।
 
यहाँ भी इन्होंने गुन्डा वल्द महेंगू गोंड, जौहराव वल्द खण्डू गोंड, कोमू वल्द पुसना गोंड, मचल वल्द रिन्दा गोंड, हनु वल्द सुरजन गोंड, तूमा वल्द कोदू गोंड, जिर्रा वल्द दुर्गासिंह गोंड, जग्गी वल्द जुगन गोंड, महाजन, छतन वल्द जंगू गोंड, महाजन वल्द गुल्लू गोंड लक्ष्मण वल्द गोरा गोंड निवासी सालीढ़ाना, विशनू वल्द मंगल ओझा रातामाटी, मंशू वल्द उमराव ओझा को समझा - बुझाकर अपने गैंग में शामिल कर 21/8/1942 को घोड़ाडोंगरी आये और रामाशंकर पांडे व लक्ष्मी नारायण बनिया से मिले।
 
विष्णु कुछ आदमियों को लेकर गाँव - गाँव घूमते था। इस गैंग ने मौजा चोपना में शराब की दुकान लूटी, रेलवे मील नं. 512 में रेलवे लाइन उखाड़ी, वहीं पर तार काटे और धाराखोह स्टेशन जलाया। 22/8/1942 को विष्णु के जत्थे ने पुलिस थाना रानीपुर जलाया, दारु की दुकान लूटी, घोड़ाडोंगरी सरकारी जंगल का डिपो जलाकर इन लोगों ने दूर- दूर तक खबर भेजी थी। 22/8/1942 को ही भीका गोंड मलसिवनी का जत्था भी विष्णु के जत्थे में आ मिला।
 
वहाँ पर बड़े साहब कप्तान साहब हमराह पुलिस फौज था। जिसने इन लोगों को वापस जाने को कहा मगर वह लोग हटे नहीं। पुलिस ने उसके बाद गोली चलाई जिसमें बिरसा गोंड मौत हो गई, अंदाजन 200 आदमी गिरफ्तार हुए। इस आंदोलन में बैहड़ीढ़ाना के सपूत बिरसा गोंड शहीद हो गये। बैहड़ीढ़ाना गाँव ही घोड़ाडोंगरी आंदोलन का प्रमुख केंद्र विंदु था, गाँव के प्रत्येक परिवार का व्यक्ति स्वतंत्रता की इस आखरी लड़ाई में शामिल था।
 
इस क्षेत्र में भारत छोड़ो आंदोलन में सरदार विष्णु सिंह गोंड की बड़ी भूमिका थी। उनकी पत्नी सुमित्रा बाई ने भी महिलाओं को संगठित कर आंदोलन में भाग लिया। सरदार विष्णु सिंह के साथ वनवासी क्रांतकारियों की बड़ी सेना थी, घोड़ाडोंगरी अंचल के दर्जनों गाँवों के जनजातीय युवा उनकी एक आवाज पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते थे।
 
22 अगस्त को ही देर रात अंग्रेज पुलिस और सेना के जवान महेंद्रवाड़ी पहुँचे पर गाँव की नदी उफान पर होने से वे गाँव में नहीं पहुँच सके। गाँव में जैसे ही इनके आने का समाचार मिला तो सभी नदी किनारे एकत्रित हो गये। अंग्रेज पुलिस ने उन पर गोलियां चलाना शुरु कर दिया जिनका जबाव गाँव वालों ने गोफन से पत्थर चलाकर दिया, अंग्रेज पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा।ड़ाडोंगरी डिपो अग्निकाण्ड के एक सप्ताह बाद ही विष्णु सिंह और उनकी पत्नी सुमित्रा बाई को गिरफ्तार कर लिया गया।
 
घोड़ाडोंगरी डिपो जलाने सहित कई मामलों में दोषी मानते हुए ब्रिटिश हुकूमत द्वारा विष्णु सिंह को फाँसी और उनकी पत्नी सुमित्रा बाई को 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई, दोनों पति - पत्नी पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया। सुमित्रा बाई के साथ पुत्री प्रमिला को भी जेल यात्रा करनी पड़ी।
 
विष्णु सिंह को प्राण दण्ड की सजा सुनाये जाने के समाचार से पूरे जिले में चिंता की लहर छा गई। जिसके बाद बैतूल के शारदा प्रसाद निगम व पुरुषोत्तम बालाजी के प्रयासों से लंदन के प्रीव कौंसिल में अपील की गई तब जाकर विष्णु सिंह की फाँसी की सजा आजीवन कारावास में बदली।
 
1942 से 1946 तक कठोर कारावास की सजा भुगतने के बाद सरदार विष्णु सिंह, उनकी पत्नी सुमित्रा बाई एवं पुत्री प्रमिला जेल से रिहा हो गये। वर्षों तक जेल में मिली घोर यातनाओं के कारण वे अस्वस्थ रहने लगे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत सन 1956 में अपने गाँव महेंद्रवाड़ी में ही उनका देहावसान हो गया।
 
उनके पुत्र शिवराम और शिवराज ने उनकी स्मृति में अपने घर की बाड़ी में ही एक छोटे से चबूतरे का निर्माण किया है यही उनकी समाधि है।
 
विद्या भारती जनजाति क्षेत्र की शिक्षा, भाऊराव देवरस सेवा न्यास भोपाल ने माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्रों के सहयोग से घोड़ाडोंगरी विकास खंड के आदर्श ग्राम बाचा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार विष्णु सिंह गोंड की स्मृति में एक ग्राम वाचनालय दिनांक 15/7/2017 को शुरु किया है।
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