स्वाधीनता संग्राम में महत्पूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले योद्धाओं के सम्मान में स्वाधीनता का 75 वां वर्ष मनाया जा रहा है. इसी के तहत आज बात तिलका मांझी की, जिन्होंने जल, जंगल और जमीन के लिए कार्य करते हुए अपने जीवन को बलिदान कर दिया।
बिहार के सुल्तानपुर के तिलकपुर गाँव में 11 फरवरी 1750 को जन्में तिलका मांझी बचपन से ही ब्रिटिश अत्याचार देखे और सहे. इन्हीं ने ही बालक तिलका को क्रांति के पथ पर अग्रसर किया. किशोरावस्था में ही उनके सामने ब्रिटिशों को वनवासियों के जल, जंगल, जमीन हथियाते हुए देखा. वनवासियों और अंग्रेजों के बीच के संघर्ष ने तिलका को क्रांतिकारी बनाया।
तिलका माँझी के नेतृत्व में वनवासी लोग कदम, भागलपुर, सुल्तानगंज में ब्रिटिशों से लड़ रहे थे। वे राजमहल की भूमि पर अंग्रेज सैनिकों से टक्कर ले रहे थे। 1767 में इनके द्वारा संचालित चुहाड़ प्रतिकार के कारण परेशान हुई थी। जब वनवासी ब्रिटिशों पर भारी पड़ने लगे तो ब्रिटिश राज ने क्लीव लैंड को उनसे युद्ध के लिए चुना, अपनी सेना और पुलिस के साथ राजमहल की पहाड़ियों में तैनात हो गया।
सन 1781-84 के बीच योद्धा तिलका माँझी के नेतृत्व में हुए अनेक प्रकार के संघर्षों के दौरान उन्होंने अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा था कि - "यह भूमि धरती माता है, हमारी माता है, इस पर हम किसी को लगान नहीं देंगे।" राजमहल सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड और आयर कूट की अंग्रेजी सेना के साथ वीर तिलका माँझी का कई स्थानों पर संघर्ष भी हुआ। 13 जनवरी, 1784 को उनका सामना क्लीवलैंड से हुआ, जिसे उन्होंने अपने तीरों से मार गिराया।
क्लीवलैंड की मौत का समाचार पाकर अंग्रेज सरकार में डर फैल गया। अंग्रेजी हुकूमत ने हर हाल में तिलका को ढूँढकर फाँसी देने का निर्णय लिया। एक रात तिलका माँझी और उनके क्रांतिकारी साथी जब एक पारंपरिक उत्सव में नृत्य-गान कर रहे थे, तभी अचानक एक गद्दार सरदार जाउदाह ने आक्रमण कर दिया।
इस अचानक हुए आक्रमण से तिलका माँझी तो बच गये, किन्तु कई क्रांतिकारी वीरगति को प्राप्त हुए, कुछ को बन्दी बना लिया गया। तिलका माँझी के नेतृत्व में संथाल जनजाति ने अंग्रेज सेना पर प्रत्यक्ष रूप से धावा बोल दिया। लेकिन क्लीव लैंड की जगह उन्हें वारेन हेस्टिंग से लड़ना पड़ा। उसके पास बहुत अधिक अस्त्र-शस्त्र से लैस सेना थी।
तिलका माँझी के पास कम संसाधन थे और वे युद्ध के दौरान धोखे से पकड़ लिए गए। तिलका माँझी को गिरफ्तार कर अंग्रेज भागलपुर ले आये एवं अमानवीय व्यवहार करते हुए उन्हें 4 घोड़ों के पीछे मोटी रस्सियों से बाँधकर घसीटा गया। सन् 1785 में एक वट वृक्ष में रस्से से बांधकर तिलका माँझी को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी। ऐसे क्रांतिवीर तिलका जी की जयंती पर सहस्त्र नमन।