भारतीय संस्कृति में महिला व पुरूष एक समान: श्रीमती मोनिका अरोड़ा

भारतीय विचार संस्थान न्यास की तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के अंतिम दिन ‘मातृशक्ति: कल, आज और कल’ विषय पर हुआ व्याख्यान

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    15-Dec-2022
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Monika aroda ji
 
भोपाल। भारत में नारी की सदैव गरिमा रही है। नारी ने विद्वानों, ऋषि, महर्षि, शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया लेकिन उस पर कभी पत्थर नहीं फेंके गए। यह इसलिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में महिलाओं को सदैव सम्मान का दर्जा दिया गया है। उसे विदुषी कहा गया। यह विचार सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने भारतीय विचार संस्थान न्यास की ओर से आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के अंतिम दिन व्यक्त किए। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सैम ग्लोबल विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती प्रीति सलूजा एवं भारतीय विचार संस्थान न्यास के अध्यक्ष श्री सतीश पिंपलीकर मंच पर उपस्थित रहे।  
 
Monika Aroda  
‘मातृशक्ति: कल, आज और कल’ विषय पर उद्बोधन में श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने कहा कि सावित्री यमराज से अपने पति के प्राणों को वापस लाई, देवी भारती ने अपने पति मंडन मिश्र के लिए शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया। तब किसी ने यह नहीं कहा कि महिलाएं शंकराचार्य को चुनौती दे रही हैं। द्रोपदी ने भीष्म पितामह को जो वचन कहे वह आज भी लोकतंत्र के मंदिर पर अंकित हैं। उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई, चेन्नम्मा, लोपामुद्रा को हम कितना जानते हैं? इनका कभी विरोध नहीं हुआ क्योंकि यह भारतीय संस्कृति में जन्मी थीं।
 
श्रीमती अरोड़ा ने कहा कि आत्मा का लिंग नहीं होता तो परमात्मा का लिंग कैसे होगा? जब ब्रह्मा विष्णु महेश को लगता है कि हम क्या करें तो देवी दुर्गा का सृजन होता है। उन्होंने कहा कि हम उस संस्कृति में नहीं ‌जन्मे जहां गॉड एडम से कहता है कि मैंने तुम्हारे मनोरंजन के लिए ईव को बनाया है। पश्चिम के जगत में माना गया कि स्त्री के अंदर आत्मा ही नहीं है, आत्मा सिर्फ पुरुषों की है। यह वही पश्चिमी समाज है जो नारी मुक्ति की बात करता है। लेकिन भारत में नारी मुक्ति जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है क्योंकि भारतीय संस्कृति में शिव और शक्ति का ऐसा संतुलन है कि इसकी आवश्यकता ही नहीं रही। 1920 तक अमेरिका में औरतों को मताधिकार नहीं था, 1928 तक इंग्लैंड में महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं था। स्विट्जरलैंड में 1959 में जनमत संग्रह कराया गया कि महिलाओं का मताधिकार दिया जाए या नहीं और 1971 में वहां महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया जा सका। कारण यह है कि पश्चिम के जगत में महिला और पुरुष कभी बराबर नहीं रहे।
 
उन्होंने कहा कि भारत से टूट कर पाकिस्तान और बांग्लादेश की स्थिति आज क्या है। यह इसलिए क्योंकि उनमें भारतीय संस्कृति नहीं है। भारत का संविधान कहता है कि सबको बराबरी, बोलने, गरिमा पूर्ण जीवन जीने का हक है। उन्होंने कहा कि भारत की पांच विशेषताएं हैं जो भारत को भारत बनाती हैं। सर्वे भवंतु सुखिनः यानी इस संस्कृति का उद्देश्य केवल भारत का नहीं बल्कि विश्व का सुख हो। कोरोनाकाल में इसीलिए भारत दुनिया को वैक्सीन भेज रहा था। तत्वमसि यानी प्रकृति में। सब एक हैं। अहम् ब्रह्मास्मि कहने वाली हमारी संस्कृति है। उन्होंने वर्तमान में महिलाओं के समक्ष खड़ी चुनौतियों के बारे में भी चर्चा की। नारी को इन सब बुराइयों को दूर करने के लिए जागृत होना पड़ेगा।
 
श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने कहा कि पांच बातें हैं जो नारी को सशक्त बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि सपना देखो और बड़े सपने देखो। निर्भीक बनो हम कितना डर कर जीते हैं हम प्रतिस्पर्धा में खुशियों को पीछे छोड़ देते हैं। जागो आपके अंदर दिव्य शक्ति है, अपने आप को पहचानिए। चरित्र निर्माण करें। वर्चुअल संसार में हैं तो रोज 5 पेज पढ़िए और एक पेज लिखिए।
 
Priti salooja  
कार्यक्रम कि अध्यक्षता कर रही श्रीमती प्रीति सलूजा ने कहा कि भारतीय नारी आज से नहीं बल्कि वैदिक काल से सशक्त रही है। आज भारतवर्ष में नारी को पुनः गरिमा प्राप्त हो रही है। ‌अब यह जिम्मेदारी भी हम सब की बनती है कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिला सकें। हमने संस्कृति को पीछे छोड़ दिया था इसलिए नारी की गरिमा कम हुई। जब तक नारी सशक्त नहीं होगी समाज भी सशक्त नहीं होगा। आज गर्व का विषय है कि देश की प्रथम नागरिक महिला है। उन्होंने कहा कि नारी आज स्वतंत्र है पर स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की बारीक लकीर को हम कहीं लांघ ना जाएं। श्रीमती सलूजा ने कहा कि हम सब आजादी के अमृत काल में हैं। एक मुहिम चल रही है और भारत करवट ले रहा है। हम इस बात का प्रयास करें कि कैसे भारत को विश्व का श्रेष्ठतम राष्ट्र बनाया जा सकता है।
 
Vandana gandhi
Nivedita sharma
 
कार्यक्रम का संचालन डॉ वंदना गांधी ने किया। विशाखा पाठक और मधुर ने गीत प्रस्तुत किया। आभार निवेदिता शर्मा जी द्वारा किया गया। व्याख्यानमाला में बड़ी संख्या में मातृशक्ति उपस्थित रहीं। 
 
तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का समापन
 
तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के प्रथम दिन मंगलवार को ‘श्रेष्ठ भारत बनाने में प्रबुद्धजन की भूमिका’ विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने अपने‌ विचार व्यक्त किए। दूसरे दिन बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री दीपक विस्पुते ने ‘ध्येयनिष्ठ जीवन की दिशा’ विषय पर विचार व्यक्त किए।  

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