आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा मासिक शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। मासिक श्रृंखला की यह कड़ी इस बार जीवन्मुक्त उड़िया बाबा (स्वामी पूर्णानंद तीर्थ) पर केंद्रित रही। इस विषय पर महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रणवानंद सरस्वती , संस्थापक आचार्य - श्री अखंड वेदांत आश्रम, श्री अखंड प्रणव योग वेदांत पारमार्थिक न्यास, इंदौर, ने व्याख्यान दिया।
विषय पर व्याख्यान देते हुए स्वामी श्री प्रणवानंद सरस्वती ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कोई न कोई उद्देश्य बना लेता है और वह अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए निरंतर प्रयास करता है लेकिन व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य भौतिक पदार्थों का संकलन करना मात्र नही है। इन कार्यों को करने का मुख्य रूप से उद्देश्य सुख की प्राप्ति करना होता है, लेकिन सत्य तो ये है कि उस व्यक्ति को भी मालूम नही होता कि वो जिसके पीछे भाग रहा है वो सुख नहीं केवल ऐंद्रिक संवेदना है।
उड़िया बाबा का नाम सुना तो लगा कि वो कोई सिद्ध बाबा होंगे और वो उड़ते होंगे इस लिए उनका ऐसा नाम पड़ा है। संन्यास लेने के बाद उनका नाम पूर्णा नंद तीर्थ रखा गया और उड़ीसा क्षेत्र से होने की वजह से भाषा के आधार पर लोगों ने उन्हें संक्षेप मे उड़िया बाबा कहने लगे। वे अत्यंत विद्वान महापुरुष और उन्हें वेदांत की चरम प्रक्रिया का ज्ञान था।
मात्र 5 वर्ष की आयु मे उन्होंने गृह त्याग कर दिया था और वेदांत का ज्ञान प्राप्त करने के लिए निकल पड़े और कामाक्षी (गुवहाटी) जा कर साधना की। बढ़ती उम्र के साथ उनकी साधना भी बढ़ती गयी। वे निरंतर गुरु की खोज करते रहे। अंत: करण और चित्त की निरंतर शुद्धि करते हुए उन्होंने वैराग्य धारण किया। उन्होंने जगन्नाथ पुरी गोवर्धन पीठ के आचार्य जी द्वारा उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। उनके जीवन में आत्मबोध को ग्रहण करने की समस्त सामग्री निर्मित होती गयी।
भगवान शिव से प्रभावित हो कर उन्होंने समाधि को अपनाया और घंटो समाधि में रहने लगे। कहा जाता है कि ध्यानावस्था में उन्हें भगवान शिव और महर्षि वशिष्ठ के दर्शन हुए और इसके बाद उन्हें आत्मबोध हुआ। बाबा ने वैराग्य धारण करके उस साधना को जिया और सदैव एकांतवास में रहते थे।
बाबा गंगा के किनारे रहते थे और घूमते ही बनारस से रामघाट पर एक छोटी सी कुटिया में रहने लगे। उनका जीवन निर्विकल्प समाधि मे रहने लगा। वे जीवन मुक्त ही गए। उन्होंने सर्व खल्विदं ब्रह्म के सार को जान लिया था। उन्होंने समस्त जीवन वेदांत ज्ञान को समर्पित कर दिया था। वो अपने आप को शरीर से अलग समझते थे और दिव्य भाव में स्थित रहते थे। वे भक्ति की चर्चा अवश्य करते थे लेकिन वो आत्ममृद्ध और आत्मबुद्ध पुरुष थे।
व्याख्यान का सीधा प्रसारण न्यास के यूट्यूब चैनल पर किया गया। इसमें चिन्मय मिशन, आर्ष विद्या मंदिर राजकोट, आदि शंकर ब्रह्म विद्या प्रतिष्ठान उत्तरकाशी, मानव प्रबोधन प्रन्यास बीकानेर, हिन्दू धर्म आचार्य सभा, मनन आश्रम भरूच, मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद आदि संस्थाएँ भी सहयोगी रहीं। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला के अंतर्गत वेदान्त विषयक व्याख्यान का आयोजन किया जाता है।