'भारत के मूल विचारों का प्रत्यक्ष प्रमाण है भारतीय संविधान'

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    26-Nov-2022
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सनी राजपूत-
 
‘हम भारत के लोग – हम भारत के लोगो ने भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और अपने सभी नागरिकों को सुरक्षित करने का संकल्प लिया है’। भारत के महापुरुषों के द्वारा यह संकल्प संविधान की प्रस्तावना में लिया गया था। संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा है। संविधान की इसी प्रस्तावना में भारत के मूल विचार समाहित है। 26 नवम्बर 1949 को संविधान का निर्माण पूरा कर लिया गया था। भारत का संविधान पूरी तरह से हाथ से लिखा गया संविधान है, जिसके निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा था। भारत के संविधान को 26 जनवरी 1950 को सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया गया था। भारत के संविधान के लागू होने के समय में इसके अंतर्गत कुल 8 अनुसूचियों के अधीन 22 भाग के साथ कुल 395 अनुच्छेद में विभाजित था। लेकिन वर्तमान में भारत के संविधान में कुल 100 से अधिक संशोधन के साथ कुल 12 अनुसूचियों में 25 भाग है जिसके अंतर्गत लगभग 470 अनुच्छेद है।
 
संविधान निर्माताओं द्वारा इसके निर्माण के समय भारत के सम्पूर्ण इतिहास को ध्यान में रखते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के चित्र को दर्शाया गया है। जो भारत के संविधान में उसकी मूल भावना को प्रदर्शित करता है और भारत की आत्मा को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद को चित्र के रूप में दर्शाया गया है। जिसमे भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन को श्रीमद् भागवत गीता सुना रहे है। रामायण और महाभारत, महान भारत के इतिहास है, जो भारत के हर एक नागरिक की आत्मा में बसे है। भारत के इसी महान इतिहास को भारत के संविधान में समाहित किया गया है। जो यह बताता है कि भारत के संविधान की आत्मा पूर्ण रूप से भारतीय है।
 
भारत के संविधान में भले ही विभिन्न देशों के संविधान के विशेष प्रावधानों का प्रभाव हो किन्तु इसके निर्माण के समय इसके निर्माताओं की भावना पूर्ण रूप से भारत के निर्माण की रही थी जो भारत के संविधान में दिखाई देती है। संविधान में दिए गए नागरिकों के मौलिक अधिकार हो या मौलिक कर्तव्य, सभी कुछ भारत के शास्त्रों में वर्णित है। जैसे सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार, उसी प्रकार भारतीय शास्त्रों में सभी प्राणियों को उनके जीवन यापन के लिए स्वतंत्रता प्रदान की गयी है और सभी के सुख और कल्याण की बात कही गयी है जैसे इस श्लोक में कहा गया है - 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुखभात भवेत्।
 
इसी प्रकार संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की व्यवस्था की गयी है जिससे भारत को सुचारू रूप से चलाया जा सकें। यह व्यवस्था भारत का आधार है और यह व्यवस्था भारत के शास्त्रों में वर्णित त्रिशक्ति को दर्शाता है। भारत के संविधान में वर्णित विधायिका त्रिशक्ति में ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका काम नियमों और व्यवस्था का निर्माण करना होता है, कार्यपालिका भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करती है अर्थात शास्त्रों के अनुसार संसार को चलाने का कार्य भगवान विष्णु करते है, उसी प्रकार भारत को चलाने का काम कार्यपालिका करती है और अंत में भारत की न्यायपालिका, महादेव शिव का प्रतिनिधित्व करती है। भारत के संविधान में उल्लेखित यह तीनों प्रकार की व्यवस्था भारत की शास्त्रीय परम्परा को प्रदर्शित करती है।
 
भारत के संविधान में वर्णित चुनाव प्रक्रिया भारतीय इतिहास के महाजनपद काल से जाकर जुड़ती है। तो इसी के भीतर लोकतंत्र में नेतृत्व के समान अवसर भारत की देवीय परम्परा का प्रतिनिधित्व करते है। जिस प्रकार भारत की देवीय परम्परा में प्रकृति के पंचमहाभूतों को उनके गुण के अनुसार उपाधि दी गयी है।
 
उसी प्रकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आए प्रतिनिधियों में से योग्य को चुनकर कार्य विभाजन और विस्तार किया जाता है। प्रत्येक भारत के संविधान में ऐसे अनेक प्रावधान है जो भारत के मूल विचारों के आधार पर सम्मिलित किए गए है। जिसके कारण भारतीय संविधान पर अन्य देशों के संविधान के प्रभाव होने के बाद भी उसकी आत्मा पूर्णतः भारतीय है क्योंकि इसको बनाने वाले लोग भारतीय थें, जिनके भीतर भारत की शास्त्रीय परम्परा विद्यमान थी।