आत्मनिर्भर भारत- देश का पहला प्राइवेट रॉकेट लॉन्च

2 भारतीय और 1 विदेशी पेलोड के साथ उड़ा Vikram-S

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    19-Nov-2022
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विक्रम s
 
देश का पहला प्राइवेट रॉकेट ‘विक्रम-एस (Vikram-S)’ तीन सैटेलाइट्स के साथ सफलता पूर्वक प्रक्षेपित हुआ। इसी के साथ प्राइवेट स्पेस सेक्टर में भारत ने इतिहास रच दिया है। इसरो (ISRO) और हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) के इस मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ रखा गया है। इस मिशन के तीन पेलोड थे और यह एक उप कक्षीय मिशन था।
 
पृथ्वी की सतह से 101 किलोमीटर की दूरी पर पहुँच कर ‘विक्रम-एस (Vikram-S)’ समंदर (बंगाल की खाड़ी) में गिरा। 300 सेकेंड्स के ‘मिशन प्रारंभ’ से प्राइवेट स्पेस सेक्टर में भारत ने दमदार एंट्री की है। इसरो ने पहले इस मिशन के प्रक्षेपण के लिए स्काईरूट एयरोस्पेस को 12 नवंबर से 16 नवंबर का समय दिया था। लेकिन खराब मौसम के कारण 18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे का समय तय हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताया है।
 
Vikram-S की उड़ान 2 भारतीय और 1 विदेशी पेलोड के साथ
 
विक्रम-एस को हैदराबाद की कंपनी ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ ने विकसित किया है। इसका नाम स्पेस प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। देश के लिए नई शुरुआत के प्रतीक के तौर पर इस मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया है।
 
विक्रम-एस (Vikram-S) ने 2 भारतीय और 1 विदेशी पेलोड के साथ उड़ान भरी। इनमें चेन्नई के स्टार्टअप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्टअप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्टअप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के सैटेलाइट्स शामिल थे।
 
इस लॉन्च के बाद इसरो ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मिशन ‘प्रारंभ’ के सफलता की जानकारी दी और स्काईरूट एयरोस्पेस व देश के लोगों को बधाई दी।
 
विक्रम-एस को तैयार करने में लगे 2 वर्ष
 
स्काईरूट एयरोस्पेस के मुताबिक, इस मिशन पर काम साल 2020 में शुरू हुआ था। विक्रम-एस को बनाने में सिर्फ दो वर्षों का समय लगा है। विक्रम-एस सॉलिड फ्यूल्ड प्रोपल्शन, कटिंग एज एवियोनिक्स और कार्बन फाइबर कोर स्ट्रक्चर से लैस है। स्काईरूट एयरोस्पेस ने जानकारी दी है कि इसका बॉडी मास 545 किलो, लेंथ 6 मीटर और डायमीटर 0.375 मीटर है।
 
अब तक इसरो अपने रॉकेट्स का प्रक्षेपण करता रहा है लेकिन यह पहली बार था जब इसरो ने किसी निजी कंपनी का मिशन अपने लॉन्चिंग पैड से प्रक्षेपित किया। जानकारों की मानें तो सरकार चाहती है कि छोटे मिशन का भार जो इसरो पर रहा है, वह अब प्राइवेट सेक्टर के भागीदारी को दिया जाए। ऐसा इसलिए ताकि इसरो से छोटे मिशन का लोड कम हो जाए और भारत की स्पेस एजेंसी इसरो बड़े-बड़े मिशन पर ध्यान केंद्रित कर सके।