कृष्णमोहन झा
वनवासियों के भगवान वीर बिरसा मुंडा की जयंती को अब सारे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक सुखद संयोग ही था कि इस बार विरसा मुंडा की पावन जयंती के शुभ अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं संघ के सरसंघचालक पूज्यनीय डॉ मोहन भागवत जी ने छत्तीसगढ़ के जनजाति बहुल क्षेत्र जशपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वनवासी समुदाय के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था।
वनवासियों के दिलों में स्व दिलीप सिंह जूदेव के लिए इतना आदर और सम्मान था कि वे आपस में एक दूसरे का अभिवादन जय जूदेव कहकर करते थे। वनवासी समुदाय के लोगों से उन्हें राजाजी, कुमार साहब, बाबा और मामा संबोधन मिले हुए थे जो उनके प्रति वनवासियों के अगाध प्रेम और आदर के परिचायक है।आज भी इस वनवासी बहुल क्षेत्र के लोग यह मानते हैं है कि स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव के जीवन काल में वनवासियों के हित में किए गए कार्यों के फलस्वरूप ही उनके जीवन स्तर में उल्लेख परिवर्तन हुआ और उन्हें सामाजिक उपेक्षा के दंश से छुटकारा मिल सका।
डॉ भागवत ने स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव की भव्य प्रतिमा के अनावरण समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में जो उद्गार व्यक्त किए उनमें संघ प्रमुख ने वनवासी समुदाय के सामाजिक आर्थिक उन्नयन के लिए स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव के विशिष्ट योगदान को सभी के लिए प्रेरणास्पद बताते हुए कहा कि उनके पास राजपाट, संपत्ति , मान-सम्मान और यश की कोई कमी नहीं थी परन्तु वे जीवन भर विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने रहे। वे हमेशा जनजातीय गौरव की रक्षा के लिए दृढ़ता पूर्वक खड़े रहे।
अपने देश, संस्कृति और देशवासियों के लिए उनके मन में बहुत प्रेम था। इसी प्रेम ने भगवान विरसा मुंडा को भी हम सबके लिए संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया था। डॉ भागवत ने अपने इस कार्यक्रम में महान देशभक्त वीर विरसा मुंडा की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया।
डॉ भागवत ने अपने प्रभावी भाषण में रामायण और पंचतंत्र के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि जनजातीय गौरव हमारे गौरव का मूल है। उनकी जीवन-पद्धति हमारी जीवन पद्धति का मूल है। हमारे रीति-रिवाजों का मूल भी वहीं है। भारत का मूल हमारे वनों और कृषि में है। हमारी संस्कृति का आविर्भाव वहीं से हुआ। डॉ भागवत ने कहा कि हमारे पूर्वजों से हमें जो पवित्रता, आत्मीयता और वीरता विरासत में मिली। विरासत में मिली वह महान परंपरा ही जनजातीय गौरव है। इस गौरव को हमें सहेज कर रखना है।
डॉ मोहन भागवत ने कहा कि वनों में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग छल कपट से दूर भोले भाले लोग हैं जिनके मन में सबके लिए प्रेम और करुणा रहती है। हमें बताया गया है कि परहित सरिस धर्म नहिं भाई। यह धर्म हमें वनों और जंगलों में मिलता है।
यदि कोई अनजान व्यक्ति जंगल में भटक जाए तो जनजातीय समुदाय के लोग तब तक उसका पूरा ख्याल रखते हैं जब तक कि वह अपने गंतव्य तक न पहुंच जाए। अनजान अपरिचित व्यक्ति भी आदिवासी समुदाय के बीच भूखा प्यासा नहीं रह सकता। यह करुणा और प्रेम जनजातीय समाज की पहचान है। हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
परम पूज्यनीय डॉ भागवत ने इसके साथ ही उन तत्वों से सतर्क रहने की सलाह भी दी जो हमारे भोलेपन का लाभ उठाकर हमें ठगने की कोशिशों में लगे रहते हैं। डॉ मोहन भागवत ने अतीत में स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव से हुई भेंट का जिक्र करते हुए बताया कि वे सदैव वनवासियों के हितैषी बने रहे।
इसी मौके पर स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र प्रबल सिंह ने बताया कि उनके स्वर्गीय पिता ने आदिवासियों के पैर धोने के काम को राजा के काम का हिस्सा बताकर उनकी घर वापसी अभियान को नया मोड़ दिया था जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए थे। प्रबलसिंह ने कहा कि उनके पिता वित्त पोषित विदेशी ताकतों के सामने मजबूती के साथ खड़े रहे।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषंगिक संगठन वनवासी सेवा आश्रम की नींव भी जशपुर में ही रखी गई थी जिसने कालांतर में अखिल भारतीय वनवासी सेवा आश्रम का रूप ले लिया। इस संगठन का उद्देश्य आदिवासी और जनजातीय समाज के लोगों के हितों की रक्षा करना और उनके सामाजिक आर्थिक उन्नयन के माध्यम से उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करना है। वनवासी कल्याण आश्रम की शाखाओं का विस्तार अब देश के सभी राज्यों में हो चुका है। इस संस्था का ध्येय वाक्य है " नगरवासी ग्रामवासी वनवासी ,हम सब हैं भारतवासी।
वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा देश के 247 वनवासी जिलों के 9 हजार से अधिक गांवों में लगभग 12 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं। वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना 1952 में वनवासी समाज की पहचान, स्वाभिमान और आत्मगौरव को अक्षुण्ण बनाए रखने और शहरवासी और वनवासी के बीच सामंजस्य और स्नेहिल बंधुत्व की भावना विकसित करने के पावन उद्देश्य के साथ की गई थी।
इसका एक उद्देश्य सेवा के छद्म आवरण के पीछे चलाई जाने वाली अराष्ट्रीय गतिविधियों से वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले भोले-भाले लोगों को आगाह करना भी था। वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा वनवासी क्षेत्रों के लोगों के आर्थिक सामाजिक उत्थान हेतु जो सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेलकूद से जुड़ी गतिविधियां शामिल हैं। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि वनवासी कल्याण आश्रम ने पिछले लगभग सात दशकों में अपनी सेवाभावी गतिविधियों से वनवासियों के अंदर विश्वास जगाकर उनके दिल जीत लिए हैं।
वनवासी कल्याण आश्रम के पदाधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने गत अगस्त माह में नई दिल्ली में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु से भेंट कर उनसे संविधान में आदिवासियों के हितों की सुरक्षा करने वाले कानूनों का त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का आग्रह किया था।
गौरतलब है कि संविधान के तहत, अनुसूचित जातियों से जुड़े भूमि संबंधी लेन-देन को विनियमित और प्रतिबंधित करने के लिए राज्यपालों को विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं। अनेक राज्यपालों ने इन शक्तियों के प्रयोग में रुचि भी दिखाई है जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल विद्यासागर राव ने इस दिशा में काफी दिलचस्पी दिखाई थी।
गौरतलब है मध्यप्रदेश भी अब उन राज्यों में शामिल हो गया है जहां वनवासियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला पेसा एक्ट लागू हो चुका है। कि वीर बिरसा मुंडा की पावन जयंती के अवसर पर मध्यप्रदेश के शहडोल में आयोजित जनजातीय गौरव दिवस समारोह में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु , राज्यपाल मंगूभाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में मध्यप्रदेश में भी पेसा एक्ट लागू करने की घोषणा की गई है।
राज्य में यह एक्ट लागू हो जाने से मध्यप्रदेश में छल से वनवासियों की जमीन पर कब्जा करने, जनजाति बहुल गांवों में उनकी मर्जी के बिना शराब दुकान खोलने और अन्य अवैध गतिविधियों के संचालन पर रोक लगाने का अधिकार राज्य सरकार को मिल गया है।