यह थूक जिहाद वर्तमान की सच्चाई है

आखिर ये सभी थूकने की इस प्रथा को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं?

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    17-Jan-2022
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जाबेद हबीब
 
सिद्धार्थ शंकर गौतम
 
देश में लगातार ऐसे मामलों की बाढ़ आ रही है जहाँ मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग कभी रोटी में थूक लगा रहे हैं तो कभी खाने में थूक रहे हैं। कोई फलों पर तो कोई फूलों पर थूक लगाते दिख रहा है। मुस्लिम समुदाय के ऐसे कृत्य साम्प्रदायिक माहौल को भंग करने की कवायद करते दिखते हैं। याद कीजिये, कैसे नौशाद थूक लगी रोटियाँ तंदूर में सेंक रहा था।
 
ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के इंदौर में भी आया था जहाँ एक मुस्लिम बुजुर्ग फलों पर थूक लगाकर बेच रहा था। निम्न व् मध्यम वर्ग के व्यक्तियों द्वारा किया जाने वाला यह अशोभनीय कृत्य अब उच्च वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भी किया जाने लगा है।
 
हाल ही में एक तथाकथित प्रसिद्ध हेयर एक्सपर्ट ने सरेआम लोगों के सामने ही हिंदू महिला की मांग में थूक दिया। उसके इस कुकृत्य ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वर्तमान में थूक जिहाद चल रहा है।
 
मामला उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का है। मुजफ्फरनगर में एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया था जिसमें जावेद हबीब नाम के हेयर एक्सपर्ट ने एक महिला की मांग में उस समय थूक दिया जब वह वहां उपस्थित लोगों को उसके बाल काट कर दिखा रहा था। वायरल वीडियो में जावेद हबीब उस महिला के अच्छे भले बालों को गंदा बताते हुए उसे शैंपू करने को बोल रहा था और इसके बाद उसने कहा कि यदि पानी कम है तो.... इसके बाद उसने हिंदू महिला के सर में ठीक उस जगह थूक दिया जहां पर हिंदू महिलाएं मांग भरती हैं। जावेद हबीब यहीं नहीं रुका। उसने यह तर्क दिया कि इस थूक में जान है।
 
हालांकि संताप तो इस बात का है कि वहां उपस्थित लोग भी उसकी इस हरकत पर तालियां पीटते और हंसते हुए दिखाई दिए। जब सोशल मीडिया पर उक्त वीडियो वायरल हुआ तो पीड़ित महिला अपना दर्द बताने सामने आयी। महिला ने अपना नाम पूजा गुप्ता बताया है। उसने बताया कि वह बड़ोत की रहने वाली है और एक ब्यूटी पार्लर चलाती है तथा वह जावेद हबीब के सेमिनार में गई थी, जहां जावेद हबीब ने उसे मंच पर बाल कटवाने के लिए बुलाया था।
 
इसके पूर्व जियो मामी मुंबई फिल्म फेस्टिवल में ‘जो जीता वही सिकंदर’ फिल्म पर चर्चा के दौरान फिल्म निर्देशक फराह खान ने बताया कि सिने अभिनेता आमिर खान अपने करियर की शुरुआत में अपनी फिल्म की अभिनेत्रियों के हाथ पर थूक दिया करते थे।
 
वो कहते थे कि लाओ मैं तुम्हारा हाथ पढ़ता हूं और उनके सेट पर मौजूद अभिनेत्री हाथ आगे करती थी तो वे उनके हाथ पर थूक देते थे। उन्होंने कहा कि ऐसा वो हर किसी के साथ करते थे और वो आज भी यह कर रहे हैं। वहीं उपस्थित आमिर खान ने भी फराह की इस बात पर अजीबोगरीब तर्क के साथ सफाई देते हुए कहा कि वो ऐसा ‘अच्छी किस्मत’ के लिए करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने जिस हीरोइन के हाथ पर थूका है वो नंबर वन बन गई। माधुरी दीक्षित और जूही चावला तो आमिर की इस हरकत से इतनी गुस्सा हुई कि माधुरी उन्हें मारने दौड़ीं तो जूही ने उनसे लम्बे समय तक बात ही नहीं की।
 
चाहे नौशाद हो या जावेद हबीब या अमीर खान, ये सभी उसी विचारधारा को पुष्ट कर रहे हैं जो जिहाद को किसी न किसी रूप में बढ़ावा दे रही है। नौशाद निम्न वर्ग का था तो उसे जेल हुई किन्तु आमिर पर ऐसी किसी कार्रवाई की अपेक्षा की जा सकती है? हालांकि जावेद हबीब की नीच हरकत पर महिला आयोग ने तो स्वतः संज्ञान लिया ही है, उस पर पुलिस ने भी केस दर्ज कर लिया है। अब डरता हुआ जावेद हबीब सार्वजनिक माफ़ी मांग रहा है।
 
आखिर ये सभी थूकने की इस प्रथा को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं? बचपन में सुनी एक बात याद आती है कि मुस्लिम के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि वे हिन्दुओं को पानी पिलाते समय उसमें थूक देते हैं। यह बात भले ही झूठ हो किन्तु वर्तमान में थूक जिहाद की हरकतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह सच ही होगी और किसी भुक्तभोगी ने कही होगी।
 
ऐसी घटनाओं से देश का सांप्रदायिक माहौल तो बिगड़ता ही है, कानून-व्यवस्था पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ता है। ऐसे मामलों में हिन्दू समुदाय में एकता की कमी का भाव भी सामने आता है। जावेद हबीब के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में हिन्दू उपस्थित थे। पीड़िता स्वयं भी हिन्दू थी। जावेद की नीच हरकत पर यदि पीड़िता उसी समय प्रतिकार कर देती तो ऐसी घटनाएं करने वालों को कठोर सन्देश जाता। बाद में रोने-धोने का क्या लाभ? वहां उपस्थित हिन्दुओं को भी तत्काल प्रतिक्रिया देना चाहिए थी। हिन्दू स्त्री की मांग सुहाग का चिन्ह होती है और किसी विधर्मी द्वारा उस पर थूका जाना सनातन का अपमान है। हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है और भविष्य में यदि ऐसी किसी घटना पर हिन्दू समुदाय का गुस्सा फूट पड़ा तो यह कथित सामाजिक ताने-बाने के लिए ठीक नहीं होगा।
 
मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वह जिहाद का असली अर्थ समझे न कि वह जो मुल्ले-मौलवी समझाकर उन्हें भड़काते हैं। आखिर कुरान पर चलने की कसमें खाने वाला इतना नीचता पूर्ण कर्म कैसे कर सकता है?
 
क्या हिन्दू समुदाय द्वारा सामाजिक, आर्थिक व् राजनीतिक बहिष्कार ही ऐसी घटनाओं की कड़ी प्रतिक्रिया है? मुस्लिम समुदाय स्वयं आगे आये और अपने ही सम्प्रदाय को बदनाम व् अलग-थलग करने में लगे ऐसे नीचों को बहिष्कृत करे ताकि बहुसंख्यकों में अच्छा सन्देश जाये और धार्मिक विभेद की खाई अधिक गहरी न हो।