पौराणिक मान्यतानुसार आस्था, प्रेम, सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक पर्व तीज भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के स्मरण में मनाया जाता है। इसमें श्रावण शुक्ल तृतीया से लेकर भाद्रपद शुक्ल तृतीया तक शिव- पार्वती की पुनर्मिलनास्मृति में विधि- विधान से शिव- पार्वती उनके पुत्र गणेशादि देवताओं की उपासना- आराधना किये जाने की परिपाटी है।
इस व्रत में श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन से सभी महिलाएं व्रत की शुरुआत करती हैं, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाई जाने वाली हरितालिका तीज तक चलता है, और इस काल में आने वाली शिव, शिव पत्नी और उनसे सम्बन्धित विभिन्न व्रत- पूजन दिवसों में उनकी उपासना व आराधना किये जाने की परिपाटी रही है, परन्तु वर्तमान में यह व्रत सिर्फ दो दिन का व्रत बनकर रह गया है।आज- कल बस दो दिन – हरियाली तीज और हरितालिका तीज के दिन यह कठिन व्रत रखने की परम्परा चल पड़ी है।
हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीज को आती है, जबकि भाद्रपद शुक्ल तीज को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। दोनों ही पर्व और उसके व्रत माता पार्वती से जुड़े हुए हैं। इस दौरान महिलाएं व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा और आराधना करती है। इस प्रकार माता पार्वती के व्रत की शुरुआत हरियाली तीज से होकर हरतालिका तीज को समाप्त होती है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को कुंवारी कन्याएं और सौभाग्यवती स्त्रियां क्रमश: मनोवांछित वर अर्थात अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए माता गौरी व भगवान शंकर की उपासना करती हैं।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र में किया जाने वाला माता गौरी व भगवान शंकर की उपासना का यह व्रत हरतालिका व्रत के नाम से प्रसिद्ध है। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व होने के कारण हरतालिका तीज व्रत कर शिव- पार्वती की पूजार्चना कुंवारी कन्याओं के साथ ही सौभाग्यवती स्त्रियां भी करतीं हैं। हरतालिका तीज व्रत कठिन है तथा इस व्रत को निराहार और निर्जला उपवास कर किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था।
लोक मान्यतानुसार भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र मेंमनाई जाने वाली सुहागिनों के सबसे बड़े पर्वों में से एक हरतालिका तीज व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवी पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया और वरदान में उन्हें ही मांग लिया। मान्यता यह भी है कि इस दिन पार्वती की सहेली के द्वारा उनका हरण कर घनघोर जंगल में ले जाए जाने के कारण इस दिन को हरतालिका के नाम से जाना जाता है।
हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ है- हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र अर्थात सहेली तथा तीज का अर्थ तृतीया तिथि।पार्वती के सहेली द्वारा पार्वती की हरण कर लिए के दिन भाद्रपद शुक्ल तृतीया की तिथि होने के कारण इसे हरतालिका तीज अथवा हरतालिका तृतीया के नाम से जाना जाता है।
सन्दर्भ -स्वदेश