"कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो" दुष्यंत की यह पंक्तियां मध्य प्रदेश की चंद्रकली मरकाम के कृतित्व पर सटीक बैठती हैं मध्य प्रदेश की चंद्रकली मरकाम ने अपने कार्यों से 23 गांव की तस्वीर बदली है वह माइक्रो इंटरप्राइजेज के जरिए कितने ही लोगों को अब तक आत्मनिर्भर बना चुकी हैं ।
38 साल की चंद्रकली डिंडोरी जिले के ग्रामीण क्षेत्र की रहने वाली हैं यह इलाका ऐसा है डिंडोरी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बॉर्डर से लगा हुआ भाग है क्षेत्र में भौतिक सुविधा भी नाम मात्र की है इलाके में घने जंगल होने के कारण मोबाइल कनेक्टिविटी भी ठीक तरह से नहीं पहुंच पाती इन सबके बाबजूद भी चंद्रकली अपने आस-पास के गांवों जो की घने जंगलों के बीच बसे हुए है वहां जाकर ग्रामीण महिलाओं से मिलती है व उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की एवं खुद का व्यवसाय करने की नई तकनीकों को सिखाती है ,जिससे महिलाएं महिलाये आत्मनिर्भर बन सके।
आपको बता दे कि चंद्रकली मरकाम एक उद्यमी है ,जो की सिर्फ पांचवी पास है। उन्हें 2020 में कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री( सीआईआई ) ।जो भारत की एक गैर-सरकारी, गैर-लाभ, उद्योग नेतृत्व तथा उद्योग प्रबंधित संगठन है),के फाउंडेशन द्वारा उन्हें उद्यमिता कौशल और ग्रामीण क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए माइक्रो एंटरप्राइज श्रेणी में वुमन एक्जेम्प्लर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
शुरूआती जीवन
चंद्रकली मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के एक गाँव बरगा में भारिया जनजाति से है,और उनकी प्रारंभिक जिंदगी भी अन्य आदिवासी महिला की तरह ही रही है । मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी ।घर का खर्च चलने के लिए मात्र 20 रुपए दिन कि मजदूरी भी बमुश्किल से मिल पाती थी ।
ऐसे स्थिति में जब घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था । तो 19 साल की उम्र में उन्होंने जिंदगी में कुछ अलग करने के इरादे से बिना घर वालों को बताये हुए एक सामाजिक संस्था (social institution) "प्रदान"के स्व - सहायता(self help) समूह से जुड़ गई।
जीवन को बदलने वाला अनुभव
प्रदान समूह से जुड़ना इनकी जिंदगी में एक नया बदलाव लाया। और इन्होने अपने अनुभव से कुछ समय बाद बचत का रास्ता अपनाया और एक-एक रूपए जोड़ना शुरू किया। और साथ ही अपने साथ जुड़े ग्रामीण महिलाओं को भी बचत योजना के साथ राह दिखाई एवं बचत की प्रेणा दी।
डिंडौरी के इस आदिवासी बाहुल्य इलाके में आय के बहुत ज्यादा साधन नहीं है ।
अब चंद्रकली मरकाम ने अपना खुद का व्यापार शुरू करने के लिए कदम बढ़ाया और 2006 में सरकारी सहायता से एक मुर्गी पालन खोला,और अन्य ग्रामीण लोगों को उनके साथ जोड़ने के लिए एक पोल्ट्री फार्म कोऑपरेटिव बनाई ।
प्रारम्भ में उनके समूह के साथ 60 लोग जुड़े ,परन्तु आज उनके इस समूह के साथ 23 गांवों से अधिक महिलाये जुड़ चुकी हैं। उनके इस पहल से ग्रामीण जनजाति के लोगों की जिंदगी में भी बदलाव आया है। चंद्रकली कहती हैं कि शुरुआत यानि की पहला कदम हमेशा कठनाई भरा होता है,और साथ ही कहती है की एक बदलाव की पहल हो गयी है। आज भी उनका जीवन सामान्य है वह एक कमरे के घर में रहती है व् उनकी खुद की बचत 20000 रूपए है।
पांचवी पास महिला देखती है करोड़ों का बिज़नेस
चंद्रकली पांचवी पास महिला है व् सिर्फ अपना सिग्नेचर करना जानती हैं , लेकिन वे कर्मठ और मेहनती है जिसके कारन आज वह 23 गावों की लगभग 500 महिला साथियों के साथ मिलकर poultry farming का कारोबार संभाल रही हैं उनके साथ अन्य गांव की महिलाशक्ति ने अपने कदम बढ़ाये है और अपनी रोजी-रोटी कमेटी है। आज उनके पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय का टर्नओवर लगभग 18 करोड़ के पार हो गया है , 2018-19 में 14.5 करोड़ था।बढ़ते व्यवसाय को देखते हुए उन्होंने अब अपने साथ एक अकाउंटेंट व् एक प्रबंधक भी रखा हुआ है। और काम का सारा लेखा-जोखा हिंदी में किया जाता है जिससे उन्हें समझने में आसानी होती है।
चंद्रकली अपने आदिवासी पृष्ठ्भूमि में व्यवसाय के साथ-साथ सामाजिक कार्य भी करती है , वे महिलाओं और ग्रामीण लड़कियों को पढाई और उच्च शिक्षा जैसे मुद्दों को उठाती है और उनको शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरित करती है। अब उन्होंने मुर्गीपालन के आलावा आय के स्रोत को बढ़ाने के लिए मशरूम व् सब्जी का बाग़) पर काम करना शुरू कर दिया है।इन्होने छोटी -छोटे 507 स्व - सहायता समूहों को मिलाकर एक फेडरेशन बनाया है। चंद्रकली कहती है की महिलाये पुरुषों से ज्यादा परिश्रम करती है परन्तु उन्हें किसी तरीके का भी श्रेय नहीं दिया जा जाता ।
जिसे देखते हुए इन्होने अब "हलचलित महिला किसान" नाम से एक कोऑपरेटिव सोसायटी भी बनाई है।