क्रांतिकारी शंकरशाह और रघुनाथशाह जिन्हें कविता लिखने पर तोप से उड़ा दिया

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    18-Sep-2021
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   रंजना चितले    
 
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वर्तमान में जबलपुर नगर का हिस्सा बना पुरवा ग्राम जो जबलपुर से चार मील दूर स्थित था, इसी गांव में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का निवास था। यहीं रहकर उन्होंने गुप्त रूप से 1857 महासंग्राम में सैनिकों को क्रांति में भाग लेने के लिये प्रेरित किया। क्रांति योजना राजा शंकरशाह के निवास पर ही बनी। जबलपुर की 52वीं रेजीमेंट के सिपाही इस सिलसिले में अक्सर राजा शंकरशाह के घर जाया करते थे। अपने क्रांतिकारी साथियों और 52वीं रेजीमेंट के सैनिकों के साथ मिलकर पिता-पुत्र ने क्रांति योजना बनायी।
मुहर्रम के दिन केन्टोनमेंट पर आक्रमण करना सुनिश्चित किया गया। लेकिन भारतीय इतिहास का नकारात्मक पक्ष पुन: प्रभावी हुआ। देश के गद्दार ने यह सूचना अंग्रेजों तक पहुंचा दी। जबलपुर डी.ब.क., पॉलिटिकल के स फाइल क्रमांक 19, 1857 पृ. 246-247, पैरा 2-3 संदर्भ अनुसार डिप्टी कमीशन ने बताया कि ”जबलपुर का खुशहाल चन्द सेठ पहला देसी व्यक्ति था जिसने मुझे यह सूचना दी कि राजा शंकरशाह और उसका बेटा रघुनाथशाह कई जमींदारों, उनके अनुयायियों और 52वीं रेजीमेंट के कुछ सिपाहियों के साथ मिलकर मुहर्रम के दिन केन्टोनमेन्ट पर आक्रमण करके उसे जलाने व खजाने को हथियाने वाले हैं।
गद्दार खुशहाल चन्द के अलावा अन्य दो जमीदारों ने भी गद्दारी की। कुल मिलाकर योजना में सेंध लगी और डिप्टी कमीश्नर ने षड्यंत्र रचा। उसने एक तरफ सुरक्षा बढ़ाई, दूसरी ओर सैनिकों के असंतोष के स्त्रोत का पता लगाने के लिये गुप्तचरों का जाल बिछाया, तीसरा राजा शंकरशाह के विरुद्ध प्रमाण तलाशना शुरु किया।
सुनियोजित योजना बनाकर फकीर वेश में एक गुप्तचर राजा के पास भेजा। चूंकि 1857 के महासंग्राम में संन्यासी फकीरों की महत्वपूर्ण भूमिका थी अत: राजा ने उस फकीर को क्रांति मार्ग का पथिक मान अपनी संपूर्ण योजना बना दी। गुप्तचार से सूचना मिलते ही 14 सितम्बर 1857 को डिप्टी कमीश्नर अपने लाव-लश्कर के साथ राजा शंकरशाह के गांव पुरवा पहुंचा। कमीश्नर के साथ आये 20 सवारों और अन्य सिपाहियों ने गाँव की घेराबंदी कर राजा, उनके पुत्र व अनुयायियों सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया।
राजा के घर की तलाशी ली गयी। इसमें क्रांति संगठन के दस्तावेजों के साथ राजा शंकरशाह द्वारा लिखित एक कविता मिली। यह कविता अपनी आराध्य देवी को संबोधित कर लिखी गयी थी वह कविता थी-मूंद मुख डंडिन को चुगलौं को चबाई खाई/ खूंद डार दुष्टन को शत्रु संघारिका /मार अंगरेज, रेज कर देई मात चंडी, बचै नाहिं बैरी-बाल-बच्चे संघारका॥ संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर, दीन की पुकार सुन आय मात कालका/ खाइले मलेछन को, देर ना करौ मात, भच्छन कर तच्छन बेग घौर मत कालिका॥ इसी तरह की प्रार्थना उनके बेटे रघुनाथशाह की हस्तलिपि में भी थी। दोनों क्रांतिवीर पिता-पुत्र को बन्दी बनाकर सैनिक जेल में रखा गया।
राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह की गिरफ्तारी से सैनिकों और जनता में आक्रोश बढ़ गया। उन्हें छुड़ाने की कोशिश भी की गयी लेकिन सफल नहीं हो सके। अंग्रेजों को भय था कि यदि राजा शंकरशाह आजाद हो गये तो उनके नेतृत्व में क्रांतिकारी पुन: एकत्र हो जायेंगे। तुरंत डिप्टी कमिश्नर और दो अंग्रेज अधिकारियों की एक औपचारिक सैनिक अदालत बैठायी गयी। अदालत में न्याय का नाटक चला। अदालत में देशद्रोही रूपी कविता लिखने के जुर्म में राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गयी।
दुनिया में साहित्य सृजन को लेकर दी जाने वाली यह अमानवीय, अनोखी सजा थी। क्रांतिकारी राजा और उनके पुत्र को मृत्युदण्ड फांसी पर चढ़ाकर न दिया जाकर तोप से उड़ाना सुनिश्चित किया गया। इसे लेकर इतिहासकार चार्ल्स बाल ने लिखा है कि ”फाँसी देने के बदले तोप से उड़ाने का फैसला इसलिये लिया गया कि जबलपुर की 52वीं रेजीमेंट में इस घटना के परिणामस्वरूप जो उत्तेजना थी उससे लगा कि बन्दियों को छुड़ाने की कोशिश की जा सकती थी यदि फाँसी देने के लिये तख्ता बनाया जाता तो उसमें लगने वाले समय से वह कोशिश सुगम हो जाती।