परिसर में हो रही खुदाई के फलस्वरूप बलुआ पत्थर निर्मित पिलर कैपिटल प्रकाश में आया है, जिसने चार भरवाहकों की मूर्तियां भी हैं. प्रतिहार कालीन (9वीं-10वीं) इस पिलर केपिटल में बनी चारों मूर्तियों के मुंह खण्डित हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि 13वीं शताब्दी में हुए मुस्लिम आक्रमण में मंदिर व मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया था. यह पिलर केपिटल भी उसी मंदिर का भाग था. वर्तमान महाकाल मन्दिर में भी प्रतिहार कालीन मूर्तियां स्थापित हैं. इसके साथ ही बलुआ पत्थर से निर्मित एक खण्डित मूर्ति का निचला भाग भी मिला है.
खुदाई में मंदिर के विभिन्न भाग यत्र-तत्र बिखरे हुए पाए गए हैं. इन भग्नावशेषों पर अंकित अलंकरण सिद्ध करते हैं कि काले पत्थर से बने यह स्तम्भ, आमलक आदि भाग परमार कालीन हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिहार काल के अवशेषों का प्रयोग परमार शासकों ने अपने द्वारा बनाए मंदिर में किया था क्योंकि उज्जैन प्रतिहार शासकों का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था. जिनका शासन यहाँ ९वीं-१०वीं शताब्दी ईस्वी में था.
खुदाई में ही प्राप्त विशाल पत्थरों की जमावट प्राचीन दीवार जैसी है, यह कहा जा सकता है कि यह दीवार भी परमार कालीन है. पर अभी इसे निश्चित तौर पर दीवार मानना जल्दबाज़ी होगी. इतना ही नहीं तो विभिन्न प्रस्तरों को जोड़ने के लिए उपयोग में आने वाले लोहे के क्लिप भी कुछ प्रस्तर खंडों के साथ ही प्राप्त हुए हैं. जिस प्रकार से परमार एवं प्रतिहार कालीन प्रस्तर खंड प्राप्त हुए हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक ही मंदिर के भाग हैं. जिसका विध्वंस 13वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने किया था. वैसे तो मुस्लिम आक्रमण का उल्लेख मंदिर में स्थित नागबन्ध अभिलेख में है, परंतु वह 11वीं शताब्दी का है. जिसके अनुसार उदयादित्य नामक शासक ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.
जहां एक ओर 1200 वर्ष पूर्व के स्थापत्य (आर्किटेक्चर) सम्बन्धित अवशेष प्राप्त हुए हैं. वहीं दूसरी ओर गुप्त कालीन मिट्टी के बर्तन (रेड वेयर) भी देखे जा सकते हैं, शुंगकालीन पुरावशेषों के प्राप्त होने से इस क्षेत्र का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पीछे चला जाता है. इसके अतिरक्त यहां से मिट्टी की बनी छोटी मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं. कुषाण काल व गुप्त काल की ईंटें प्रकाश में आने से यह संकेत मिलते हैं कि इस क्षेत्र में 2000 वर्ष पूर्व भी स्थापत्यकला विद्यमान थी.