महाराणा के जीवन प्रसंग हमें हर विपत्ति से लड़ने का हौसला देते हैं - लोकसभा अध्यक्ष

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    14-Jun-2021
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चित्रकूट/ वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 481 वीं जयंती पर उनके पराक्रम एवं पुरुषार्थ का स्मरण दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा वर्चुअल रूप में नाटिका की माध्यम से यूट्यूब पर लाइव किया गया। इस आयोजन में मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्रकार ओमप्रकाश सोनी 'बिजोलिया' द्वारा कैनवास पर रंगों को उकेरकर कथानक रुप में प्रस्तुति दी गई, जिसे मुंबई के प्रसिद्ध संगीत कलाकार मोहित चौहान द्वारा महाराणा प्रताप की गौरव कथा को अपने संगीत के साथ प्रस्तुत किया गया।
इस आयोजन के मुख्य अतिथि के रुप में लोकसभा के अध्यक्ष माननीय ओम बिरला रहे, अध्यक्षता दीनदयाल शोध संस्थान के अध्यक्ष वीरेन्द्रजीत सिंह द्वारा की गई। वर्चुअल रुप में आयोजन का संयोजन करते हुए दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री अतुल जैन द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। उसके बाद प्रख्यात कलाकार मोहित चौहान के संगीत के साथ
नीले घोड़े रा असवार,

म्हारा मेवाड़ी सरदार,

राणा सुणता ही जाजो जी,

मेवाड़ी राणा सुणता ही जाजो जी।

राणा थारी डकार सुणने,
अकबर धूज्यो जाय,
हल्दीघाटी रंगी खून सु,
नालो बहतो जाय।
चाली मेवाड़ी तलवार,
बह गया खूणा रा खंगाल,
राणा सुणता ही जाजो जी,
मेवाड़ी राणा सुणता ही जाजो जी।

राजस्थानी प्रस्तुति दी गई।
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का नाम जुबां पर आते ही रग-रग में शौर्य और स्वाभिमान की लहर दौड़ने लगती है। वीरता का भाव जागने लगता है। राष्ट्र प्रेम हिलोरें मारने लगता है। भुजाएं तलवार की मूठ खोजने लगती है। जब याद आता है लंबी चोड़ी कद काठी वाला नीले घोड़े पर सवार हाथ में भाला लिए एक ऐसा शूरवीर जिसके विशाल नयन मानों अपने विरोधी को ढूंढ रहे हों। एक ऐंसा योद्धा जिसकी तनी हुई मूंछें स्वयं उसकी वीरता का बखान कर रही हों।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री वीरेंद्रजीत सिंह ने कहा कि भारत रत्न पूज्य नानाजी देशमुख ने अपने प्रचारक जीवन में गांव-गांव प्रवास करके वनवासियों के दुख दर्द को जाना समझा है। बलरामपुर क्षेत्र में थारु वनवासियों ने जब महाराणा प्रताप वन-वन भटक कर अपनी सेना का पुनर्गठन कर रहे थे, उस समय ये जनजातियां राणा की सेना में प्रशिक्षण ले रही थी। यह जनजातियां आज भी अपने आप को महाराणा की प्रजा ही मानती है‌। इनके प्रेरणा स्रोत महाराणा प्रताप की जयंती को नानाजी ने एक उत्सव का रूप दिया।
लोकसभा के माननीय अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने अपने उद्बोधन में कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान बधाई का पात्र है कि मेवाड़ की धरती से सैकड़ों कोस दूर महाराणा प्रताप की जयंती पर उनके पराक्रम और शौर्य को स्मरण कर रहा है। श्रद्देय नानाजी देशमुख भी पुरुषार्थ की प्रतिमूर्ति थे। आज पूरा देश दुनिया अत्यंत विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है। हम सब भी कितनी दूर दूर से इस कार्यक्रम से जुड़ पा रहे हैं, टेक्नोलॉजी के चलते सब लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं लेकिन फिर भी सामाजिक दूरियां कहीं ना कहीं हम सबको कचोरती है। ऐसी परिस्थितियों में अपने महान पूर्वजों का स्मरण हमें कितना संबल प्रदान करता है यह हम महाराणा के प्रसंगों से समझ सकते हैं। महाराणा प्रताप के जीवन काल की विपत्तियों को याद करते हैं तो हमें आज की विपत्तियां छोटी दिखाई पड़ती है। विपत्ति काल में हम कैसे मिल बांटकर रह सकते हैं, कैसे खा सकते हैं, कैसे सेवा कर सकते हैं यह प्रेरणा हमें उनके जीवन प्रसंगों से मिलती है।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने कहा कि गोंडा प्रकल्प की जब श्रद्देय नानाजी ने 77-78 में स्थापना की, वहां नेपाल के सीमावर्ती इलाके से जुड़े इमलिया कोडर में थारु जनजाति का केंद्र है। वहां से नानाजी का बहुत गहरा लगाव रहा है। थारु जनजाति के लोग महाराणा प्रताप के वंशज ही है, और उनकी वीर परंपरा का वह निर्वहन कर रहे हैं। वहां पर जब से संस्थान का काम प्रारंभ हुआ तब से दीनदयाल शोध संस्थान उनकी जयंती और पुण्यतिथि का कार्यक्रम मनाता आ रहा है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में शौर्य और त्याग का पर्याय, पराक्रम और पुरुषार्थ का बेजोड़ मेल हैं महाराणा प्रताप। हम सब इसी तरह महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व अर्पण करने की प्रेरणा लेते रहेंगे।