नर्मदापुर में संघकार्य की भावगंगा के भगीरथ स्वर्गीय डॉ. राजकुमार जैन

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    06-May-2021
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- चाणक्य बख्शी 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से नर्मदापुर विभाग में श्री विनायक राव जी मोढ़े के उपरांत विभाग प्रचारक के दायत्वि में डॉ. राजकुमार जी जैन आए। उस समय संघ की रचना में शासकीय जिला नर्मदापुर बुधनी तहसील सहित एक जिला था और जिला प्रचारक अनिल जी अयाचित थे। 1996 में विभाग में अखिल भारतीय अधिकारी प्रवास था और मा. सोहन सिंह जी और मा. उत्तम चन्द जी ईसराणी आने वाले थे। जिला प्रचारक कोई नहीं था। मैं जनप्रतिनिधि हो छावनी परिषद में उपाध्यक्ष था और इसके साथ ही संघ कार्यों में भी सतत सक्रिय था। मा. राजकुमार जी ने पूछा कि पचमढ़़ी में कार्यकर्ता विभाग सम्मेलन कर सकते हो क्या? राजकुमार जी से सहज स्नेह और अपनत्व के कारण मना न कर सका। हमारी टोली को संघ कार्यक्रमों की व्यवस्था करने का कोई अनुभव न था। उन्होंने आनन्द जी मुजूमदार को पन्द्रह दिन के लिए विस्तारक निकालकर पचमढ़़ी भेज दिया और एक सप्ताह पूर्व से हरदा जिला प्रचारक निरंजन जी शर्मा को भी भेजा। ऐतिहासिक कार्यक्रम हुआ। पचमढ़़ी की पहाडिय़ाँ ओम, स्वस्तिक और भगवा ध्वज से सज गईं, पहली बार नगर में संघ का पथ संचलन निकला।

संघ की भावगंगा में बहते हुए अनौपचारिक बैठक में मेरे मुँह से निकल गया- ‘कहाँ राजनीति के पचड़े में आ गया, वास्तविक आनंद तो संघ कार्य में ही है’। राजकुमार जी को जाने क्या लगा, वे बोले- ‘यहीं आ जाओ’। मैंने कहा- ‘ठीक है बुला लीजिए’।

स्थानीय निकाय में भाजपा के बहुमत दल का नेता होते हुए समारोप सत्र के पहले उन्होंने बुलाकर कहा कि सत्र में उपस्थित रहना। और घोषणा हो गई चाणक्य बख्शी, सह जिला कार्यवाह। राजकुमार जी के बहुत अच्छे मित्र और संभागीय संगठन मंत्री सौदान सिंह जी निर्णय से क्रोधित हो कार्यक्रम अधबीच छोड़ चले गए। पर राजकुमार जी अपने इस सुविचारित निर्णय के प्रति दृढ़ रहे। छावनी चुनाव टल जाने से मैं डेढ़ वर्ष तक जनप्रतिनिधि और सह जिला कार्यवाह, दोनों रहा पर राजकुमार जी भाई साहब ने इस परिस्थिति में भी सहजता से कार्यकर्ता को निभाया। राजकुमार जी बहुत साफ-सफाई पसंद थे। वे करीने से कपड़ों को धोकर और प्रेस कर ही पहनते थे। उन के कमरे में हर एक वस्तु यथास्थान सलीके से जमी रहती।

कार्यकर्ता निर्माण एवं उनकी संभाल :

उनका सहज आत्मीयतापूर्ण व्यवहार सभी कार्यकर्ताओं को आकर्षित करता और उनके सान्निध्य में अधिक देर तक रहने को प्रेरित करता। वे बातों-बातों में वे कार्यकर्ताओं को जीवन जीने का ढंग सिखाते जाते। एक ध्येय समर्पित प्रचारक के नाते राजकुमार जी ने नर्मदापुर विभाग में मनमौजी शैली बदल केन्द्र और प्रांत की योजना अनुरूप संघ कार्य को ढालने सँवारने में अनुपम योगदान दिया है। नर्मदापुर जिले में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का उन दिनों सर्वथा अभाव था। परंतु, राजकुमार जी ने नर्मदापुर के इस अभाव को खत्म कर दिया। उनकी प्रेरणा से अनेक कार्यकर्ता तैयार हुए, जिन्होंने समाज क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। कार्यकर्ता तैयार करना ही उनकी कुशलता नहीं थी अपितु कार्यकर्ता की संभाल कैसे करना, यह भी उनके जीवन एवं व्यवहार से सीखा जा सकता है।

साधु-सा स्वभाव, अपरिचित से भी आत्मीयता :

राजकुमार जी के लिए संपूर्ण समाज ही उनका अपना परिवार था। मंगलौर की प्रतिनिधि सभा के उपरांत हम उडुपी मठ घूमने टैक्सी में गए। उन्होंने चालक से उसके घर-परिवार की कुशलक्षेम पूछी। चालक ने बताया कि उसकी सगाई हो गई है और मंगेतर पास में ही रहती है। तब एक राजकुमार जी ने उस वाहन चालक को अधिकारपूर्वक कहा कि फिर तो तुम्हारी ससुराल में ही चाय पिएँगे। मानो, उस वाहनचालक से उनका कोई गहरा नाता हो। अचकचा कर मैं, निरंजन जी और पुरुषोत्तम जी पटेल एक-दूसरे को देखने लगे। अब उन्होंने कहा- ‘चाणक्य जी आप और पुरुषोत्तम जी मिलकर होनेवाली बहू के लिए एक साड़ी ले लो, खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लगेगा’। हम भी मरते क्या न करतेवाले भाव से चालक से बोले- ‘भाई, चल साडिय़ों की दुकान ले चल’।

हम सबने एक झुग्गी बस्ती में टैक्सी ड्राइवर की होनेवाली ससुराल में जाकर चाय पी, सब से परिचय किया और घर के बुजुर्ग के जैसे बच्ची को स्मृति कार्यालय का फोन नंबर लिखा दिया कि कभी भी कोई परेशानी हो तो फोन लगा लेना। इस घटनाक्रम के डेढ़-दो वर्ष बाद मुझ से बोले- ‘चाणक्य जी, वो बड़ा दुष्ट निकला, बच्ची को दारू पीकर मारता-पीटता है’। मैं समझ ही न सका और पूछा कि कौन? वे बोले- ‘वो मैंगलौर वाली बच्ची का रोते हुए फोन आया था’। उस दिन उनका चेहरा पढ़कर समझ सका कि कैसे वह समाज के सब बंधुओं के साथ आत्मीय संबंध स्थापित कर लेते थे।

प्रशिक्षित चिकित्सक एवं जिज्ञासु :

राजकुमार जी स्वयं होम्योपैथी के प्रशिक्षित चिकित्सक होने के साथ आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाता और परामर्शदाता थे। आरोग्य भारती का काम मिलने के उपरांत तो जैसे संसार की सारी चिकित्सा पद्धतियों, प्राकृतिक चिकित्सा, योग, रैकी, थैरेपीज़, हीलिंग और जड़ी-बूटी, सभी कुछ जानने का भूत सवार हो गया था। वे विभिन्न साधना पद्धतियों तथा अनेकानेक ध्यान योग के मार्गों का व्यक्तिगत रसास्वादन कर तुलनात्मक विश्लेषण से निष्कर्ष निकालने का उपक्रम करते रहते थे। उनके पास सबसे अच्छी दवा थी, उनकी मुस्कान।

 
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)