भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्राण देकर भी पार्टी शक्ति को परवान चढ़ाया

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    04-May-2021
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    -  रमेश शर्मा      
पश्चिम बंगाल सहित पाँच प्रांतों में चुनाव संपन्न हो गये । नयी निर्वाचित सरकारों का स्वरूप भी सामने आ गया है । इन चुनावों में एक बात बहुत स्पष्ट रूप से सामने आई वह यह कि भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिये सभी ताकतें एक जुट हो गयीं थीं । इसमें दो प्रकार की शक्तियां थीं । एक वे जो राष्ट्रभाव एवं भारतीय संस्कृति को कमजोर करने में लगीं हैं । और दूसरी वे ताकतें जो ऐन केन प्रकारेण सत्ता हथियाना चाहतीं हैं । यह ठीक वैसा ही गठबंधन बना था जैसा मध्यकाल में कुछ देशी ताकतों ने सत्ता के लिये कूछ विदेशी आक्रांताओं से गठजोड़ किया था । इसकी झलक असम में भी दिखी, केरल में भी दिखी और पश्चिम बंगाल में भी । फिर भी यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा और अन्य राष्ट्र सेवी संगठनों के समर्पण से भरे काम का परिणाम है कि भारतीय जनता पार्टी ने सभी प्रांतों में अपनी शक्ति बढ़ाई ।असम और पांडिचेरी में तो भारतीय जनता पार्टी सरकार बना ही रही है और पश्चिम बंगाल में भाजपा की शक्ति तीन सदस्यों से बढ़कर 78 तक पहुँची ।
 
पश्चिम बंगाल की पिछली विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के पास 3 सीटें थी,वह 78 हो गई। वामपंथी पार्टियों के पास पचहत्तर सीटें थी , अब वह शून्य हो गये हैं । कांग्रेस भी 0 पर पहुँच गई । यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी को वहां अपनी सरकार बनाने की आशा थी संभावना भी थी । चुनाव परिणाम पूर्व के अनैक सर्वेक्षणों ने भी संकेत दिये थे पर भाजपा ने अपनी शक्ति तो कयी गुना बढ़ाई पर सरकार बनाने से काफी पीछे रही । पर यह स्थिति किसी निराशा की नहीं है । बल्कि इसे उपलब्धि ही माना जाना चाहिए । भाजपा ने बंगाल में पिछले पाँच साल में 16 गुना शक्ति बढ़ाई है क्या सरल है ? क्या इतनी शक्ति बढ़ जाना कोई क्या आसान काम था ? जहाँ लगभग 50 वर्ष कम्युनिस्टों की सरकारें रही, जहाँ से देश में मार्क्सवाद फैला, जो नक्सलवाद का उद्गम है उस प्रांत में भगवा लहर असाधारण है । जिस बंगाल में कभी तीस पैंतीस साल कांग्रेस ने शासन किया, उसका शून्य पर उतर आना भी असाधारण नहीं है । और यह भी विचारणीय है कि आखिर ये सब शून्य में कैसे पहुँचे और जिस तृणमूल कांग्रेस शासन का लगभग क्रूरता और हिंसा से भरा था उसे इतनी बड़ी सफलता कैसे मिली । इसका कारण यही है कि भाजपा को सत्ता से रोकने के लिये सभी ताकतें एकजुट हो गयीं हैं ।
 
दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा और अन्य राष्ट्र सेवी संगठनों की सेवा और समर्पण था कि इतनी हिंसा और तनाव के बीच भगवा ध्वज लहराया भाजपा तीन सीट से 78 तक पहुँची ।
 
पिछले पाँच वर्षों में ही तीन सौ से अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हुईं । यह उन कार्यकर्ताओं का तप है जो वर्षों से जान की बाज़ी लगाकर काम में जुटे रहे । ,उसके बाद ही आज यह स्थिति आयी है .इतनी बड़ी संख्या में हिंदु पहली बार एक जुट हुए हैं. मन बदला है बहुत बड़ी जनसंख्या का । अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में काम खड़ा किया । केवल पाँच वर्षों में प्रत्येक ब्लॉक और ज़िले में नेतृत्व खड़ा कर लिया और कार्यकर्ता खड़े हो गए । इतनी बड़ी उपलब्धि निसंदेह यह भाजपा नेतृत्व के मार्गदर्शन और कार्यकर्ताओं के समर्पण से ही संभव हो सकी है । बंगाल में 5 -10 वर्ष की मेहनत में इतना बड़ा परिणाम आया है । इन अठत्तर विधायकों सेअब राज्यसभा में भी भाजपा को लाभ मिलेगा । बंगाल में यह उपलब्धि तब है जब वहाँ भाजपा का कोई बड़ा नेता ही नहीं था । कैडर था, राष्ट्रीय नेतृत्व का आकर्षण तो था पर स्थानीय स्तर पर नेतृत्व का अभाव था । जबकि ममता बनर्जी का अपना जितना आकर्षण तो था ही तमाम भाजपा विरोधी राजनैतिक शक्तियों ने अपनी ताकत भी उनके साथ लगा दी थी । भाजपा ने स्थानीय स्तर पर ज्यादातर लड़ाई उन नेताओं के भरोसे लड़ी जो ममता को छोड़कर आये थे । उनमें से अधिकांश चुनाव हारे । इसका अर्थ है कि बंगाल में राष्ट्र भाव अंगडाई ले रहा है । भाजपा का अपना केडर मजबूत हो रहा है ।
 
भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं की भी प्रशंसा की जाना चाहिए जो अन्य प्रांतो से वहां गये । विशेषकर मध्यप्रदेश के कैलाश विजयवर्गीय के कार्य की भी प्रशंसा होनी चाहिए । उन्होंने अपना अधिकाँश समय वहां दिया । जिससे भाजपा ने वहां यह उल्लेखनीय उपलब्धि हांसिल की, कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं का समर्पण, मोदी जी का चेहरे पर और मध्य प्रदेश से गए कैलाशजी की मेहनत से इतनी बड़ी सफलता मिली है. एक मौक़ा मिला है कि अब हर छोटे से छोटे गाँव तक कैडर खड़ा हुआ है।
 
 
प बंगाल के अतिरिक्त भाजपा की शक्ति असम में भी बढ़ी है । पांडिचेरी में पहली बार अपनी सरकार बनाने जा रही है कोई सौ साल भी नहीं हुए,संघके काम को खड़ा किए हुए, और आज हिंदुत्व का विचार तमिलनाडु और केरल को छोड़कर पूरे देश में फैल गया है. वहाँ काम करना अभीबाक़ी है,लगातार मेहनत हो ही रही है । राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयंसेवकों द्वारा जो श्रम किया तप किया यह उसी का प्रतिफल है । बंगाल और केरल में कितने स्वयंसेवकों ने अपने प्राण दिये हैं । बंगाल और केरल में स्वयंसेवकों की हत्याओं का दौर अभी थमा नहीं है । शंकाओं के बाद भी आसाम भाजपा के पास वापस आ गया । भाजपा पॉन्डिचेरी में पहलीबार सरकार में आई । ,केरल और तमिलनाडु में वोट का प्रतिशत बढ़ा है । पश्चिम बंगाल में भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी हो गई ।पश्चिम बंगाल कम्यूनिस्ट और कांग्रेस मुक्त हो गया । यह परिणाम भविष्य में बड़े राजनैतिक संकेत दे रहे हैं ।