भारतीयता का विरोध है शिशु मंदिरों का विरोध

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    05-Mar-2021
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शिशु मंदिरों का विरोध_1&n

   विवेक कुमार पाठक   
 
राजनीति में हाशिए पर चले जा रहे देश के पुराने दल के नेता और वायनाड के सांसद राहुल गांधी ने आरएसएस को लेकर फिर जहर उगला है। अपनी कुंठा प्रदर्शित करते हुए वे कह रहे हैं कि आरएसएस अपने स्कूलों में एक खास तरह की दुनिया दिखाता है। इन नेता के बचकाने बोल कुछ इस तरह हैं कि वे विद्या भारती द्वारा संचालित किए जा रहे विद्यालयों को पाकिस्तान में संचालिए किए जाने वाले कट्रवादी मदरसों की तरह खतरनाक बता रहे हैं।

सबसे पहले तो यह बात कि कुछ खंडित और भ्रमित मानसिकता वाले प्राणियों की बात पर गौर न करना ही उनके लिए समुचित जवाब होता है। ऐसा विचारशील भारतीय समाज बहुत समय से कर रहा है। हम सब देख रहे हैं कि इन भ्रमित नेता और उनका कुनबा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर निरंतर अभद्र और घृणास्पद टिप्पणियां करता रहा है। आमतौर पर इन टिप्पणियों को संघ परिवार नजरअंदाज करता आया है। वह सकारात्मक धारा की ओर अग्रसर है। भारतीय समाज में संघ की स्वीकृति और संघ के विचार, मूल्य और कार्यक्रमों की अपार स्वीकार्यता ही इसका जवाब है। देश में चुनावों के दौरान निरंतर की जाने वालीं ये कुंठित टीका टिप्पणियां अब काफी सतही हो गयीं हैं और इनमें अनर्गल आरोप लगाने वालों की कुंठा झलकती है। चूंकि भारत में राष्ट्र्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार जिस तरह से निरंतर हुआ है उससे कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत भूमि में रहने वाले लोग संघ को लेकर क्या सोचते और क्या विचार रखते हैं मगर देश की सबसे पुरानी पार्टी का पीढ़ीगत वंशज अगर ऐसे आरोप लगाता है तो कुछ न कुछ लोग उसे सुनते ही हैं। प्रोपेगैण्डा चलाने वाली बिग्रेड इन आरोपों को विदेशी मीडिया में छपवाकर भारत के संबंध में एक छद्म धारणा बनाती है इसलिए उन षड़यंत्रों को रोकने इस पर चर्चा फिलहाल जरुरी है।

तो सबसे बड़ी आपत्ति का विषय है आरएसएस की इकाई विद्या भारती द्वारा संचालित शिशु मंदिरों पर लगाए घृणित आरोपों का। सबसे पहले तो बार बार संसद में अपनी गलतियों पर माफी मांगन वाले नेता को पता होना चाहिए शिशु मंदिरों की भारतीयता और मदरसों की कट्टरता कहीं से भी तुलना योग्य नहीं है। संसद में बैठने वाले राहुल गांधी से यह अपेक्षा की जाती है कि उनका ज्ञान भारत और भारत के मूल्य और संस्कृति के विषय में थोड़ा बहुत तो होगा ही। जो नेता करीब 20 साल से राष्ट्रीय राजधानी में राजनीति कर रहा हो जिसे सबसे पुरानी पार्टी अपना भविष्य मानकर आगे आगे लेकर चल रही है अगर वह इस तरह के हास्यास्पद आरोप लगाता है तो बहुत आश्चर्य होता है। सवाल उठता है क्या भारत देश में भारतीय संस्कार आचार विचार और जीवन मूल्यों को अपनाती शिक्षण पद्धति को आतंकवाद की ट्रेनिंग कहा जाना चाहिए। जिन विद्यालयों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सहित हर वर्ग और हर धर्म का बालक पढ़कर भारतीय मूल्य सीखता है क्या वे आतंकवाद का पाठ पढ़ाते हैं।
 
ये आरोप कांग्रेस पार्टी की वैचारिक दरिद्रता और भारतीयता के बारे में कुंठित धारणा को प्रदर्शित करते हैं।
चिंतन कीजिए कि क्या विपक्षी धारा का विरोध करते करते आप भारत का विरोध करने लगेंगे। क्या भारतीयता को समर्पित विद्या भारती की शिक्षण पद्धति, संस्कार की पाठशालाओं, शिशु मंदिर में अध्ययनशील बालकों एवं उनमें अपने बच्चे का भविष्य देखने वाले पालकों के प्रति ये वैचारिक हिंसा नहंी है। कहा जाता है कि राजनीति में जब तक आप जमीन से न जुड़े हों तब तक आप आप जनभावनाएं समझ सकते हैं और न ही अपनी एक गंभीर राय रख सकते हैं। अगर ऐसे घृणित धाराणाएं सबसे बड़े विपक्षी दल के अग्रणी नेता की हैं तो इससे उस दल विशेष की वर्तमान धारणाओं पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं आखिर संस्कार और संस्कृति को समर्पित इन विद्यालयों पर हमले करके यह दल असल में किसकी खिलाफत कर रहा है। क्या यह भारतीयता पर हमला नहीं है।
 
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारतीय जनमानस में स्थापित गरिमापूर्ण प्रभाव से बौखलाए इन भ्रमित नेता को समझना चाहिए कि ये समय बौखलने का नहीं चिंतन का है। संघ का विचार अगर भारत के जनजन का विचार बना है तो यह भारतीयता को समर्पित विचारधारा का प्रभाव है। भारतीयता और हिन्दू जीवन पद्धति के लिए आग्रह का प्रभाव है। क्यों आजादी के बाद देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने इस देश के आचार विचार और संस्कार की उपेक्षा की। आज सवाल उठते हैं कि कई दशकों तक राज करते हुए कांग्रेस की विचारधारा ने सत्ता पर राज करने के अलावा समाज को कौनसा विचार दिया। इनके नेतृत्व ने किस तरह के नागरिकों का निर्माण किया। अपने राष्ट्र, महापुरुषों, वेदों, ऋषि मुनियों की श्रेष्ठता के भाव का नागरिक समाज को बोध क्यों नहंी कराया। इन तीखे सवालों के जवाब शून्य हंै। आज भारत में कांग्रेस पार्टी की अखिल भारतीय स्तर पर अस्वीकारता इसी विचारशून्यता के कारण हो रही है। इस स्थिति से उबरने के लिए अपने स्वतंत्र विचार और श्रेष्ठ मूल्यों को स्थापित करने की जगह कांग्रेस के युवराज भारतीयता को समर्पित संघ के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं। वे संघ के शैक्षिक इकाई विद्या भारती पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। 1977 में स्थापित विद्या भारती ने देश भर में शिक्षा में भारतीयता के भाव को पुर्नस्थापित किया है। जो कांग्रेस के युवराज आज तक इस्लामिक कट्टरता पर कभी नहीं बोले, जो वंदे मातरम के विरोध पर नहीं बोले जो ईसाई मिशनरी स्कूलों के धर्मान्तरण अभियानों पर नहीं बोले जो मदरसों में मौलवियों की कट्टरता पर नहीं बोले वे संघ के शिशु मंदिरों को पाकिस्तानी कट्टरवादी मदरसों की तरह बता रहे हैं।
 
ये गैरजिम्मेदाराना और घृणा से भरा हुआ बयान साफ करता है कि राहुल गांधी अपने समाज, देश और भारतीयता के भाव को कितना जानते समझते हैैं। उन्हें पता होना चाहिए शिशु मंदिर में लाखों बालक जेहाद की घृणा की बजाय भारतमाता, मां सरस्वती की प्रतिमा, विद्या देने वाले आचार्यजी और दीदी को प्रतिदिन शीश नवाते हुए बढ़े होते हैं। हर रोज वे भारत की महान संस्कृति और महापुरुषों की वंदना और प्रार्थना करते हैं। यहां विभाजन नहीं वसुधैव कुुटुम्बकम का भाव जगाया जाता है। भोजन से पहले ऊं सह नाववतु, सह नौ भुनुक्तु, सहवीर्यं कर्वावहै का गंुजन करना सिखाया जाता है। सर्वारिष्ट शांति और सर्वेसन्तु निरामया की कामना की जाती है। शिशु मंदिरों में भारतीयता और प्राचीन जीवन मूल्यों के प्रति आदर सम्मान को एक एक बालक के मनमंदिर में स्थापित किया जाता है। वे आजीवन भारतमाता की वंदन करते हुए प्रगति पथ पर बढ़ते हैं। युवराज को याद न हो मगर हमें जरुर याद है कि जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े के नारे विद्या भारती के शिशु मंदिर में शिक्षित युवाओं ने नहीं युवराज समर्थकों ने ही लगाए थे।
 
 
असल में तो ये शिशु मंदिर चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर धाम है का भाव एक एक बालक में जगाते हैं। उसे भारतीय संस्कृति के गौरव का बोध कराते हुए जीवन पथ दिखलाते हैं। कोरोनाकाल की आपदा में विद्या भारती के ये विद्यालय सेवाकार्यों के लिए काम कर रहे थे। शिशु मंदिरों के बालक अपनी गुल्लक फोड़कर पीएम फंड में दान कर रहे थे। विद्या भारती क्या सिखाती है ये खुद मैंने सरस्वती शिशु मंदिर गोरखी ग्वालियर में अध्ययन करते हुए अंगीकार किया है। कारगिल युद्ध के समय हम बालकों की टोलियां समाज में देशभक्ति के भाव से निकली थीं। बालकों के डिब्बे में व्यापारी और परिजन पीएम राहत कोष के लिए धन दान कर रहे थे। ऐसे तमाम कठिन समय में शिशु मंदिर के बालक भारतमाता की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यहां से निकले बालक बालिकाएं अपने अपने क्षेत्रों में भारतमाता की सेवा कर रहे हैं। अपने परिवार, विद्यालय और आचार्यजी और दीदी का मान बढ़ा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के युवराज की वैचारिक कुंठा और उनके घृणापूर्ण आरोप उनकी वैचारिक दरिद्रता को देश के सामने पेश कर रहे हैं। हमें आपसे घृणा नहीं आपके प्रति सहानुभूति का भाव आ रहा है। इतने दशकों की राजनैतिक विरासत के बाद भी आप भारत और भारतीयता को नहीं समझ सके। ईश्वर आपको सद्मति और सद्बुद्धि दे हम यही प्रार्थना बारंबार करते हैं।