दो बहनें, जिन्होंने कोरोना काल में उठाई बच्चों के पढाई की जिम्मेदारी

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    23-Feb-2021
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     - सौमिल जैन     
 
यह कहानी है टीकमगढ़ के पास बसे छोटे से गांव डूंडा में रहने वाली दो जुड़वा बहनों की। जिन्होंने कोरोना काल में भी शिक्षा को महत्वता देते हुए अपने गाँव में बच्चों को एकत्रित करके निशुल्क शिक्षा देने का कार्य किया। दोनों बहनों ने घर-घर जाकर कोरोना काल दौरान भी बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की। स्कूल कॉलेज बन्द थे इसलिए घर-घर जाकर शिक्षा प्रदान करने की दोनों बहनों ने ठानी और निकल पड़ी बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने इसलिए ग्रामीण बच्चे कोरोना के चलते भी अपनी पढ़ाई आसानी से कर पा रहे हैं।

अदिति-अर्पिता जैन ने सागर के कॉलेज से ग्रेजुएशन की और उसके बाद बीएड करके अतिथि शिक्षक के लिए कोशिश की लेकिन नौकरी नहीं लगी इसलिए गाँव में आकर 4 वर्षों तक निशुल्क शिक्षा प्रदान करती रहीं। सिर्फ कोरोना के समय ही नहीं बल्कि पहले से ही वह दोनों बहनें निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही थीं। गाँव की वर्तमान स्थिति को देखकर उनके स्कूल के हेड मास्टर राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान से सम्मानित संजय जैन सर से दोनों बहनों ने कहा कि हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं इसलिए जब भारत सरकार ने थोड़ी छूट दी तो लोगों को जागरूक किया मास्क सेनीटाइजर का ज्ञान कराया और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

स्मार्टफोन नहीं थे, पढ़ने के लिए कोई जरिया भी नहीं फिर

आवश्यकता आविष्कार की जननी है इस बात को चरितार्थ किया है दोनों बहनों ने । जैसे कि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से क्लासेस लगना शुरू हुईं थीं।गाँव में स्मार्टफोन न होने से और कोई ज़रिया न होने ऑनलाइन क्लासेस का लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा था। इसके लिए दोनों बहनों ने शिक्षा को "घर-घर शिक्षा, हर घर शिक्षा" का ध्येय रखते हुए घर से बच्चों को एकत्रित कर उनको शिक्षा से जोड़ा। गाँव में चौपाल लगाकर बच्चों को पढ़ाया और बच्चों की पढ़ाई संबंधित समस्याओं को हल कराया।

गाँव में विद्यालय के हेड मास्टर संजय सर के द्वारा या पड़ोसी द्वारा अपने घर का एक कमरा दे दिया जाता था। वहीं दोनों लोग बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग से बैठाकर पढ़ाते थे।एक्टिंग, पेंटिंग और रेडियो के द्वारा भी बच्चों को पढ़ाकर उन्हें समझा देते थे। नए-नए नवाचार करके बच्चों को पढ़ाया। शिक्षा को एक फन के हिसाब से करवाते थे, एक्टिविटी के माध्यम से पढ़ाते थे जिससे बच्चों का मन शिक्षा ग्रहण करने में लगा रहे।एक जग प्रसिद्ध उदाहरण है कि जब छोटे से बच्चे को कड़वी दवाई पिलाई जाती है तो वो बताशा के साथ दी जाती है जिससे बच्चे को दवा कड़वी न लगे। लेकिन इसका उद्देश्य यही रहता है कि बच्चा दवाई को ग्रहण करे। इसी तरह से इन एक्टिविटीज के माध्यम से बच्चों को शिक्षा मिले, सही जानकारी पहुँचें भले माध्यम कुछ भी हो।उस कठिन समय में यही दोनों बहनें गाँव में शिक्षा का आधार रहीं हैं।

दोनों ही समय-समय पर बच्चों को प्रेरित भी करती थीं कि बच्चे आगे आकर शिक्षा ग्रहण करें और शिक्षा की महत्वता को भी समझें। गाँव में बच्चों के अभिभावकों को भी बताया की बेटियों को पढ़ने अवश्य भेजें क्योंकि गाँव में बालिकाएँ ही टॉप करती हैं।


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बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का बनाया ब्रांड एम्बेसडर

शिक्षा के प्रति इतनी जागरुकता को देखकर अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर अदिति जैनऔर अर्पिता जैन को शिक्षा के क्षेत्र में एक अलग अलख जगाने के लिए टीकमगढ़ जिले की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा टीकमगढ़ जिले की "बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ" का महिला ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया तथा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर "कॉफी विद कमिश्नर" में सम्मानित भी किया गया।

अफसर बनकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने का है मन

दोनों बहनों का कहना है कि वे लोगों के बीच जाकर उनसे जुड़ना चाहती हैं। इसलिए अधिकारी बनकर हर क्षेत्र में जा पायेंगी इसलिए अफसर बनने की पढ़ाई भी कर रही हैं। उन्हें पैसों के लिए नहीं, घर वालों के लिए नहीं बल्कि लोगों से संपर्क बन सके उनको शिक्षा के प्रति जागरूक कर सकें इसलिए उनको अधिकारी बनना है इसके लिए वो दिन रात मेहनत भी कर रही हैं। उनका कहना है कि लड़कियों को इतनी छूट नहीं मिलती पर जब अधिकारी बनेंगे तो हर क्षेत्र में जाने का उसे समझने का मौका मिलेगा।

नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि "शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है जिससे हम पूरी दुनिया को बदल सकते हैं" यह वाक्य इस कहानी को पढ़कर एक दम चरितार्थ होता हुआ दिख रहा है। आज समाज को सिर्फ रोटी कपड़ा और मकान की ही नहीं बल्कि शिक्षा की भी बहुत ज़रूरत है। देश के विकास के लिए देश की लड़कियों को इन दोनों बहनों से प्रेरणा लेनी चाहिए और आगे आकर शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।