उपरोक्त कार्यक्रम में श्री माहेष्वरी ने अपने उद्बोधन में संस्कारों के जीवन में प्रभाव का उदाहरण देते हुये कहा कि पुदुच्चेरी आश्रम में श्री मां ने पौधों के दो समूह पर प्रयोग किया। एक समूह को अच्छा शास्त्रीय संगीत सुनाया तथा पौधों के दूसरे समूह को पाॅप म्यूजिक सुनाया। कुछ समय बाद देखा कि जिन पौधों को शास्त्रीय संगीत सुनाया था उनकी पत्तियाॅ एक समान व पूर्ण विकसित थी तथा दूसरे समूह के पौधों की पत्तियाॅ छिन्न भिन्न कटी व अर्धविकसित पाई गई। इसी प्रकार अच्छे संस्कारों का मनुष्य के जीवन में प्रभाव पड़ता है। इसी उद्देष्य को ध्यान में रखकर सरस्वती शिशु मंदिरों में बसंत पंचमी के दिन तीन से पांच वर्ष के षिषुओं का विद्यारंभ संस्कार का कार्यक्रम किया जाता है।
कार्यक्रम में भोपाल विभाग के विभाग समन्वयक श्री गुरूचरण जी गौड़ ने बताया कि प्राचीन गुरू-शिष्य पंरपरा के अनुसार माता-पिता इसी दिन अपने शिशु को गुरूकुल में सौंपते थे। जिस तरह सैनिकों के लिए उनके शस्त्र और विजयादशमी पर्व महत्व है, उसी तरह और उतना ही महत्व विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का है। शिशु को बचपन से जो संस्कार दिये जाते हैं, वह उसके सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। विद्याभारती का लक्ष्य शिक्षा के साथ संस्कार देना है।
विद्यालय समिति के अध्यक्ष श्री राघवेन्द्र जी गौतम ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा के साथ संस्कार ग्रहण करने पर ही मनुष्य भावी जीवन में अपने दायित्वों का निर्वहन कर समाज में अपनी पहचान बनाने का काम कर सकता है।
कार्यक्रम के अंत में उपरोक्त सभी अधिकारियों ने 150 बच्चों के साथ हवन में भाग लिया, माँ सरस्वती की पूजन की गई और प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।