आखिर साढ़े चार सौ साल के बाद हिन्दू जनमानस के धैर्य का बांध टूट गया।

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    06-Dec-2021
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हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है.... निःसंदेह उसमें देश/काल/परिस्थितियों के अनुसार समय कम या ज्यादा हो सकता है।
लेकिन होगी ही होगी यह निश्चित है... 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचों का ढहाया जाना एक ऐसी ही घटना थी।
464 सालों तक एक समाज ने इस दिन के लिए संघर्ष किया, निःसंदेह उस काल में वह कहीं न कहीं उतना सामर्थ्यवान नहीं हो पाया जितना आक्रमण/अतिक्रमणकारी थे। लाखों बलिदान हुए संघर्षों के कई दौर चले, लेकिन उस समाज ने अपने साथ हुए इस अन्याय को विस्मृत नहीं किया वरन पीढ़ी दर पीढ़ी उस अत्याचार का इतिहास एक दूजे को हस्तगत किया।
और पुनः एक समय आया 20 वीं सदी का उत्तरार्ध जब वह आक्रमणकारी/अतिक्रमणकारी समाज कुछ कमजोर हुआ शोषित पीढ़ित समाज सैकड़ों वर्ष बाद सबल और संगठित हुआ।
हालांकि तब भी इस सहिष्णु समाज ने संवाद का ही मार्ग चुना यहां भी कई दौर हुए न्यायालयों में लेकिन हमलावर/अतिक्रमणकारी लोगों के पास उक्त विवादित स्थल के स्वामी होने के कभी कोई प्रमाण नहीं थे, अतएव जब भी बात खंडन/मंडन की आती वह समाज न्यायालय के साथ साथ इस सहिष्णु समाज को भी चकमा दे जाता और उपस्थित नहीं होता।
स्वाधीन भारत में ऐसे धोखे देने/खाने का दौर भी लगभग 35 वर्षों तक चला स्वाधीन भारत में भी रामभक्तों की 2 पीढियां प्रतिदिन एक ऐसे दिन की प्रतीक्षा में बैठी रहीं की जिस दिन न्यायालय उनके आराध्य श्रीराम के जन्मस्थान के लिए कोई निर्णय देगा।
हर बार लाखों रामभक्त अयोध्या पहुंचते इसी उम्मीद में कई आज न्यायालय निर्णय देगा लेकिन शनैः शनैः उनके धैर्य का तटबंध दरकता रहा और वह दिन आ ही गया जब उस तटबंध को तोड़कर विशाल रामभक्तों का सैलाब समस्त सीमाएं लांघते हुए सैकड़ों वर्षों से उनके वक्ष में शूल की भांति चुभ रहें उस नुकीले निर्माण को ध्वस्त करने बह चला।
कहते हैं उस रोज अयोध्याजी में जितनी उस नगर की जनसंख्या थी उससे कई गुना ज्यादा रामभक्त वहां उपस्थित थे। मातृशक्ति ने रामभक्तों के पुरुषार्थ को ललकारा यह उनके धैर्य के बांध पर की गई अब तक कि सबसे कठोर चोट थी, जिसके बाद कुछ ही घंटों में वहां उक्त मैदान समतल नजर आ रहा था, त्वरित अवस्था में वहां जो भी साधन/संसाधन उपलब्ध थे उनसे रामलला के लिए एक अस्थायी मंदिर का प्रबंध किया गया।
इस सब के लिए भी उस दौर में हजारों रामभक्तों ने अपना सर्वस्व होम किया था, सैकड़ों भक्तों को अमानवीय अत्याचारों/ सुनियोजित नरसंहारों का सामना करना पड़ा। कई कारसेवक फिर कभी लौट कर अपने घर नहीं पहुंचे क्योंकि वह इस धर्मयुद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
ऐसे अगणित बलिदानों के बाद आज हम अपने आराध्य श्री रामलला का एक भव्य मंदिर निर्माण को देख पा रहे हैं। आज का दिन उन अगणित रामभक्त बलिदानियों के स्मरण का दिन है.... यह दिन हिन्दू समाज के पुनः जागृत/प्रकट हुए शौर्य के स्मरण का दिन है। जिसे हम शौर्य दिवस कहते हैं।
आज उन सभी ज्ञात/अज्ञात कारसेवक रामभक्तों को श्रद्धापूर्वक नमन जिनके बलिदानों से हम आज अपने आराध्य के जन्मस्थान पर शीघ्र ही एक भव्य मंदिर का दर्शन करेंगे।