पाकिस्तान के गठन के बाद से ही वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों की स्थिति नर्क से भी बदतर रही है. आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं. धार्मिक उन्माद के फलस्वरूप जनित पाकिस्तान की पूरी जनसंख्या का लगभग एक चौथाई हिस्सा रहे अल्पसंख्यक अब तथाकथित लोकतांत्रिक पाकिस्तानी इस्लामिक गणतंत्र का केवल एक प्रतिशत रह गए हैं.
अल्पसंख्यकों की स्थिति इतनी विभत्स है कि दिन दहाड़े हिन्दू बहन बेटियों की इज्जत लूट ली जाती है. कानून व्यवस्था जिहादियों की पक्षधर है और तथाकथित न्यायपालिका परोक्ष रूप से जिहाद का बाना ओढ़े बैठी है.
ताजा मामले में 19 वर्षीय हिन्दू युवती हरियान मेघवार को जिहादियों द्वारा दिनदहाड़े घसीटते हुए गाड़ी से अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म करने के उपरांत 31 वर्षीय व्यक्ति से जबरन निकाह करवा दिया गया.
हरियान, बर्बर सामूहिक दुष्कर्म एवं निकाह का शिकार होने वाली कोई पहली हिन्दू युवती नहीं है. इस क्रम में सिक्ख जत्थेदार की बेटी से लेकर रिंकू, जिहादी बर्बर अत्याचार को माथे पे ओढ़े रोती बिलखती रीना मेघवार सहित न जाने कितने नाम हैं जो इस कट्टरपंथी जिहादी व्यवस्था की बर्बरता का शिकार होने के उपरांत भी यातनाएं झेल रही हैं.
सामूहिक दुष्कर्म एवं माल-ए-गनीमत
मध्यकालीन युग में जब अखंड भारत पर इस्लामिक बर्बर हमलावरों ने आक्रमण किया तो हर गिरते हुए शहर के साथ उन्होंने लूटपाट के साथ काफिर माने जाने वाले हिन्दू महिलाओं के साथ भी अकल्पनीय बर्बरता की. इस दौरान तब के इस्लामिक धर्मगुरुओं द्वारा इन सामूहिक दुष्कर्मो को माल-ए-गनीमत कह कर परिभाषित किया गया.
इसमें कोई संदेह नहीं कि आज इतने वर्षों के उपरांत भी पाकिस्तानी मस्जिदों से इसी अवधारणा को पोषित किया जा रहा है. यही कारण है कि पाकिस्तान के अंदर हिन्दू अल्पसंख्यक युवतियों को अगवा कर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म एवं किसी अधेड़ व्यक्ति के साथ निकाह कोई अपवाद नहीं, जिहादी बंदूक के जोर पर मनमर्जी से सरेआम इस जघन्य कुकर्म को अंजाम देते हैं.
फिर जबरन बंदूक के जोर पर पीड़ित के साथ निकाह कर पूरे प्रकरण पर आसानी से लीपापोती कर दी जाती है. इस संदर्भ में परिजनों द्वारा थाने के चक्कर काटने पर अगर प्राथमिकी दर्ज कर भी ली जाए तो पाकिस्तान के इस्लामिक कानून को इस्लामिक न्यायालय में चुनौती देना नामुमकिन ही है.
सत्ता व्यवस्था का दोहरा चरित्र
इसमें भी कोई संदेह नहीं कि यह सब कुछ बात-बात पर कश्मीर के लोगों के मानवाधिकार का रोना रोने वाले बाहर से लोकतांत्रिक व्यवस्था का बाना ओढ़े कट्टरपंथी जेहादी सत्ता व्यवस्था की सह पर होता है.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के जबरन धर्म परिवर्तन और बर्बरता संबंधित आँकड़ों पर गौर करें तो प्रतिवर्ष लगभग 2000 हिन्दू युवतियों को जबरन अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म के उपरांत उनका धर्मान्तरण करवा जबरन इस्लाम स्वीकार करवाया जाता है.
इस संदर्भ में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रतिवर्ष इतने बड़े पैमाने पर हो रहे कुकृत्य को बिना प्रशासनिक सहयोग के अंजाम नहीं दिया जा सकता.
रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि ये सब कुछ जिहाद और माल-ए-गनीमत की अवधारणा से प्रेरित है और इस कुकृत्य में धार्मिक उन्माद के नाम पर स्थानीय कट्टरपंथी समूह, पुलिस प्रशासन एवं न्यायपालिका तक की सहभागिता है.
‘कहते हैं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं’, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिन्दू, वर्ष 1947 में लाखों लोगों के नरसंहार से रक्तरंजित बंटवारे का दंश अब तक झेल रहे हैं, पर इससे भी बड़ी विडंबना तो ये है कि पाकिस्तान के अस्तित्व तक ‘माल-ए-गनीमत’ की अवधारणा से पोषित इस कट्टरपंथी जिहाद की आग की आंच से हिन्दू बेटियों की अस्मिता की रक्षा करने वाला कोई नहीं. जिहादी बर्बरता की शिकार इन बेटियों की पीड़ा अकल्पनीय है, लेकिन वास्तविकता यही है कि वर्तमान में दूर तक इसका निदान नहीं.