भारत की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ( NDA ) में प्रतिवर्ष बैच के सर्वश्रेष्ठ सैनिक को एक मेडल दिया जाता है। जो कि एक गुमनाम भारतीय महान योद्धा "लाचित बडफुकन" के शौर्य से प्रेरित है। अतैव उन्ही के नाम पर दिया जाता है। 1661 में असम के राजा जयध्वज सिंघा को हरा असम को औरंगजेब ने अपने आधीन कर लिया। इस हार को जयध्वज सहन नही कर पाए और स्वर्ग सिधार गए। उनके बाद वहाँ के राजा बने चक्रध्वज़ सिंघा ।चक्रध्वज़ सिंघा ने लाचित की बहाददूरी से प्रभावित होकर 1665 में लाचित बडफुकन को अपनी सेना का सेना पति बनाया। लाचित के मन में अभी तक अहोम राज्य के मुग़ल के आधीन होने का आक्रोश समाया हुआ था । लाचित ने बिना मुग़ल सल्तनत को पता चले, 4 साल तक अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने का काम किया ।
1667 में मुग़ल सल्तनत ने अपना असम का फौजदार बदला, नया फौज दार फ़िरोज़ खान, अपनी अय्याशी के लिए जाना जाता था । उसने चक्रध्वज़ सिंघा को आदेश दिया की को अपने राज्य की लडकियों को उसके पास भेजे । इस से लाचित और अहोम राज्य के लोगो के गुस्से मे आग में घी का काम कर दिया। और लाचित की तैयार की हुई सेना ने, बाग हजारिका की अगुवाई में अपने गुरिल्ला युद्ध निति से मुगलों पर आक्रमण कर के गुवाहटी का किला जीत लिया ।
जब औरन्गज़ेब को पता चला तो उसने अपने 70000 सैनिको की फौज को लाचित से लड़ने भेजा लेकिन लाचित के रहते इस युद्ध में कड़ी टक्कर मिलने पर मुगल भाग खड़े हुए। इस के बाद लाचित बीमार पड़ गए और मौका देखकर 1671 में मुग़ल सेना ने फिर से आक्रमण कर दिया। मुगल सेनापति रामसिंह ने लाचित को मुगलों का साथी बताते हुए अफवाह फैला दी। लेकिन लाचित अपनी निष्ठा के कारण जाने जाते थे। इस बार युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी में लड़ा गया । जिसे की सराय घाट का युद्ध कहा जाता है। जिसमें मुगल सेना के पास 30000 पैदल सैनिक, 15000 तीरंदाज, 8000 घुड़सवार सैनिक 5000 बंदूक धारी, और लगभग 1000 तोपों के साथ हमला बोला।
जहा अहोम सेना कमजोर पड़ने लगी. लेकिन बीमार लाचित को जब ये पता चला तो वो बीमार हालत में भी युद्ध करने के लिए राजा से आज्ञा मांगने पहुंचे, बमुश्किल राजा ने आज्ञा दी। पुनः लाचित ने कमान अपने हाथों में ले ली जिसके चलते अहोम सेना युद्ध जीत गई, परन्तु युद्ध के कुछ समय बाद बीमारी के चलते लाचित मर्त्यु को प्राप्त हो गए। उसके बाद 1682 में फिर मुग़ल ने असम पर आक्रमण किया परंतु फिर हार मिली। जिस पर मुगलों को समझ आ गया की अहोम सेना को जीतना नामुमकिन है और फिर कभी मुगलों ने असाम की तरफ नज़र उठा कर नही देखा।
अंग्रेज भी इस बात को जानते थे इसलिए उन्होंने अपने ब्रम्हास्त्र अर्थात मिशनरीज को सेवा की आड़ में वहां भेजा। धीरे धीरे वह वहां फैल गए। लेकिन जब असमियों को इस बात का अहसास हुआ तो....प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व ही 1828 में अहोम लोगों ने कुंवर गोमधर के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। पिटते-कूटते अंग्रेज वहां से भागने पर मजबूर हुए।
1830 में अहोम लोगों ने पुनः विद्रोह की योजना बनाई लेकिन उससे पहले ही ब्रिटिशों ने उनके सामने आत्म समर्पण करते हुए...अहोम राज्य राजा पुरंदर सिंह को सौंप दिया। क्योकि वहां की मिट्टी में लाचित का रक्त मिला है, जो अदम्य साहस, वीरता और निष्ठा के लिए जानी जाती है। 24 नवंबर उनकी जयंती को प्रतिवर्ष असम में लाचित दिवस के रूप में मनाया जाता है।