हिंदुत्व पर ज्ञान बांटना आवश्यक नहीं

38,000 गांवों में 8000 गांव में नहीं रहते हिन्दू परिवार

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    22-Nov-2021
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राजेश पाठक
 
बागपत में जैन समाज का ‘त्रिलोकतीर्थ धाम’ स्थित है. ज्यादा दिन नहीं हुए जब पार्श्वनाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक पर्व पर कुछ तीर्थयात्री इस स्थल पर दर्शन हेतु पहुंचे. परिसर के बाहर ‘जैन-शिकंजी’ नाम के ठेले से उन्होंने शिकंजी ली. शक होने पर उनमें से किसी नें जैसे ही बोर्ड पर लगा बैनर फाड़ा तो देख कि चिकन बिरयानी लिखा था. विरोध करने पर संप्रदाय विशेष का वो शिकंजी बेचने वाला ठेला छोड़ अपने साथ 70-80 साथीयों को लेकर बापस आ गया. अब क्या था, बस पर पथराव कर पेट्रोल डालकर हमलावर आग लगाने पर उतारू हो उठे. बड़ी मुश्किल से कमेटी नें पुलिस वा स्थानीय हिन्दू ग्रामीणों की सहयता से स्थिती पर काबू पाने में सफलता पायी. इन घटनाओं का होना अब न दुर्लभ सयोंग जैसी कोई बात बची है, न देश के कुछ ही स्थान विशेष की प्रकृति. अब देखें कि त्रिपुरा में बंगलादेशी मुसलमान और उनके धर्मालयों के विरूद्ध होने वाली हिंसा की अफवाह को लेकर जबकि महाराष्ट्र को मजहबी उन्मदीयों द्वार आग और तोड़फोड़ के हवाले किया जा रहा था, तो वहीँ चीन के हांथों पीड़ित उईघर मुसलमानों के पक्ष में बांग्लादेश में मानवाधिकार संगठन, सामाजिक संगठन और धार्मिक संगठनों के कई शहरों प्रदर्शन चल रहे थे. और, वो भी तब जबकि वहाँ रह रहे हिन्दु और उनके पूजा -स्थलों पर जमके हमले हुए ये अभी की ही बात है.
 
स्वाभाविक है उनकी सुध लेने वाला बंगला देश में कोई नहीं. दुनिया किस ओर जा रही है ये इन घटनाओं से समझना आसान है. हिंदुत्व को लेकर अपनी तरह की व्याख्या से युक्त सलमान खुर्शीद की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर पी चिदाम्बरम के साथ नज़र आने वाले दिग्विजय सिंह को इस पर गौर करने की जरूरत है.
 
प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहिये कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। वीरभूमि जिले का कान्गलापहाड़ी ऐसे गाँव है जहां ३०० घर हिन्दुओं के और २५ परिवार मुसलामानों के हैं. इस गाँव में दुर्गा-पूजा पर पाबन्दी है, और इसलिए कि मुसलमानों को ये मंजूर नहीं. कुछ वर्ष पहले मुसलमान परिवारों नें जिला-प्रशासन से लिखित शिकायत करी कि दुर्गा-पूजा ‘बुतपरस्ती है’, जिससे उनकी भावनायें आहत होती हैं इसलिए इस पर पाबन्दी लगायी जाए . टीएमसी नेताओं के दवाब में स्थानीय प्रशासन तत्काल हरकत में आया और पाबन्दी लगा दी गयी.
 
हमारे पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान की दास्तान भी अलग नहीं. मुस्लिम बहुसंख्यक अफगानिस्तान के बामियान में तालिबानियों ने किस प्रकार 1,400 वर्ष पुरानी भगवान बुद्ध की प्राचीन दुर्लभ मूर्तियाँ ज़मीदोज़ कर दी थीं उसको भूल पाना मुश्किल है. आगे बढ़ते हुए अब इन खंडित मूर्तियों को तालिबानी निशाने साधने के उपयोग के रूप में ले रहें हैं! ये खबर उस घटना के बाद आयी है जबकि कुछ दिन पूर्व काबुल में सिखों के ‘करता परवन गुरूद्वारे’ में तालिबान के अधिकारीयों नें हमला कर तोड़फोड़ करी, लोगों को बंधक बनाया. ये घटनाएं जिहादी मानसिकता को समझने के लिया काफी है.
 
पर ध्यान देने कि बात ये है कि भारत में लोगों के एक वर्ग नें अमेरिका के लौट जाने पर इसको अफगानिस्तान की आज़ादी, लोकतंत्र की बहाली बताया था. और आज जबकि पत्रकारों; महिला अधिकारवादीयों – खिलाडियों -पॉप स्टारों - कर्मचारीयों के बाद अब महिला मामले के मंत्रालय को बंद करते हुए छात्रोंओं पर भी प्रतिबन्ध धीरे-धीरे और कढ़े होते जा रहे हैं, देश ये जानना चाहता है कि उन ‘तालिबानपरस्त’ भारतीय तबके के पास अब क्या कहना बाकि है. वैसे इस वर्ग की इस बात की भी तारीफ करनी होगी कि चाहे पाकिस्तान पोषित जिहाद हो, आईएसआई हो, लश्करे तोएबा हो, दाउद इब्रहिम हो इन को लेकर वे बड़ी मजबूती के साथ मौन धारण किये रहता है.
 
कुछ दिनों पूर्व ही केरल में एक चर्च के बिशप नें देश को सावधान करते हुए कहा था कि ‘लव-जिहाद’ और ‘ ‘नारकोटिक- जिहाद’ एक-दूसरे के पूरक हैं, जिनका उपयोग एक हथियार की तरह होता है जिससे कि गैर मुसलमानों को बर्बादी के रास्ते पर डालकर उनसे गैर कानूनी कार्य कराया जा सके. किसी और की नहीं तो टीम राहुल गाँधी इन्हीं की बात पर ध्यान दे ले तो उन्हें हिंदुत्व पर ज्ञान बाटनें की आवश्यकता ही नहीं पड़े.