संघ शाखा में आने से नेतृत्व, स्व अनुशासन, सेवा, के गुण विकसित होने लगते हैं

चन्नी के बयान से उपजा विवाद

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    17-Nov-2021
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सुखदेव वशिष्ठ
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी अपने जीवनकाल में राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिये चल रहे सामाजिक, धार्मिक, क्रांतिकारी व राजनैतिक क्षेत्रों के सभी समकालीन संगठनों व आंदोलनों से सम्बद्ध रहे व अनेक आंदोलनों का नेतृत्व भी किया. समाज के स्वाभिमानी, संस्कारित, चरित्रवान, शक्तिसंपन्न, विशुद्ध देशभक्ति से ओत-प्रोत, व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त व्यक्तियों का संगठन जो स्वतंत्रता आंदोलन की रीढ़ होने के साथ ही राष्ट्र व समाज पर आने वाली प्रत्येक विपत्ति का सामना कर सके. इस कल्पना के साथ संघ का कार्य शुरू हुआ.
  
संघ शाखा के संपर्क में आये बिना कार्य की वास्तविक भावना समझ में आना संभव नहीं. संघ शाखा में आने से नेतृत्व, स्व अनुशासन, सेवा, के गुण पहले से ही विकसित होने लगते हैं. विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से स्वयंसेवकों का बौद्धिक स्तर भी निखरता है. शाखा में अपने क्षेत्र में प्रत्येक परिवार किस प्रकार आदर्श परिवार बन सके, उसके सभी सदस्य संस्कारवान व देशभक्त हों, इसकी चिंता बराबर होती है.
  
विभाजन के दौरान पंजाब में संघ
 
प्रोफेसर बाली विभाजन के समय आपबीती पर आधारित किताब में लिखते हैं – ‘ऐसी कठिन घड़ी में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने, उनकी रक्षा की. उसने प्रांत के हर नगर के हर मोहल्ले में हिन्दू और सिक्ख महिलाओं तथा बच्चों को निकालने का बीड़ा उठाया. उन्हें संकटपूर्ण क्षेत्रों से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया. उन्होंने उनके लिए खाने पीने, चिकित्सा सहायता और कपड़ों का प्रबंध किया तथा उनकी देखभाल की. ट्रेनों पर सुरक्षा दल तैनात किए गए. हिन्दू और सिक्ख बस्तियों में रात-दिन का पहरा लगाया गया. जब विभाजन की पूर्व संध्या पर स्थिति बड़ी गंभीर हो गई, तो इन नवयुवकों ने पीडित हिन्दू और सिक्ख जनों का प्रारंभ से अंत तक साथ दिया. अनुशासन, शारीरिक क्षमता और निःस्वार्थ भावना के बल पर संकट मोल लेकर उन्होंने पंजाब के लोगों की रक्षा की. उस समय समूचा प्रांत धू-धू कर धधक रहा था. कांग्रेसी नेता सामने टिक नहीं पा रहे थे. गवर्नर जनरल अपने हठ पर अड़ा हुआ था और शांति एवं व्यवस्था हेतु और कड़े उपाय करने के उनके प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दे रहा था.’
 
02 अक्तूबर, 1949 के जालंधर से प्रकाशित ‘आकाशवाणी’ साप्ताहिक के पृष्ठ छह-सात पर संविधान सभा के सदस्य तथा भारतीय विद्याभवन के संस्थापक व मूर्धन्य विद्वान कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का एक प्रेस वक्तव्य छपा. इस वक्तव्य में मुंशी ने संघ के स्वयंसेवकों की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘देश विभाजन के दिनों में संघ के नवयुवकों ने पंजाब और सिंध में अतुलनीय वीरता प्रकट की. उन नवयुवकों ने आतताई मुसलमानों का सामना करके हज़ारों स्त्रियों और बच्चों का मान और जीवन बचाया. अनेक नवयुवक इस कर्तव्य पालन में काम आए.’ 1947 के विभाजन के समय राजकुमार सहगल, सरदार हरी सिंह, सरदार केसर सिंह चावल वाले जैसे हजारों स्वयंसेवकों ने राष्ट्र हित में अपना जीवन बलिदान कर दिया.
 
भाषा आंदोलन और संघ
 
राधे श्याम बांका द्वारा लिखित श्री गुरुजी जीवन प्रसंग, भाग-1 के अनुसार संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह माधवराव मूले ने पंजाब से सम्बन्धित अपने संस्मरण में लिखा है – “पंजाबी और हिंदी का भाषाई आंदोलन चल रहा था. श्री गुरूजी पंजाब दौरे पर आये तो उन्होंने स्पष्ट किया कि पंजाब में पंजाबी मातृभाषा है और इसे सभी को स्वीकार करना चाहिये.” जस्टिस एम. रामा जोयस द्वारा लिखित ‘श्री गुरुजी और सामाजिक समरसता’ में लिखा है – “1961में कुछ लोगों ने एकत्र होकर पंजाब में हिंदी रक्षा समिति का निर्माण किया और पंजाब में पंजाबी के अध्यापन का विरोध किया. द्वितीय सरसंघचालक गुरू गोलवलकर जी ने उन्हें बुलाया और यह परामर्श दिया कि वह अपना आंदोलन बंद कर दें. उन्होंने यह भी कहा कि सभी भाषाएं राष्ट्र भाषाएं हैं और हिंदी सब की संपर्क भाषा है. उन्होंने कहा कि पंजाबी वैसे ही राष्ट्र भाषा है जैसे हिंदी. अतः उन्हें स्कूलों और कॉलेजों में पंजाबी के अध्यापन और पठन पाठन पर कोई आपत्ति नहीं करनी चाहिये. गुरुजी के इस दृष्टिकोण से आंदोलन चलाने वाले लोगों की आंखें खुल गयी और उन्होंने आंदोलन समाप्त कर दिया. इससे राष्ट्रीय एकता की भावना बढ़ाने में भी सहायता मिली.”
 
स्वयंसेवक राष्ट्रीय एकता हेतु बलिदान देने से पीछे नहीं हटे. चाहे मोगा में शाखा पर हमला हो या प्रांत सह संघचालक ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा की हत्या हो, संघ ने कभी भी केशधारी और गैर-केशधारी में खाई बढ़ने नहीं दी.
 

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चन्नी के बयान से उपजा विवाद
 
बुधवार को विधानसभा के दूसरे व आखिरी दिन मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने बयान में आरएसएस को पंजाब की दुश्मन जमात करार दे दिया. कांग्रेस से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव लड़ चुके चन्नी की किसी भी विचारधारा के प्रति निष्ठा संदेह के घेरे में ही है. दुर्भाग्यपूर्ण तो यह भी है कि पंजाब में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के स्थान पर उस व्यक्ति का चुनाव किया है, जिस पर एक महिला अधिकारी को आपत्तिजनक संदेश भेजने का आरोप है. “मीटू” अभियान के अंतर्गत इस मामले का खुलासा हुआ था. यह विडंबना है कि जब अक्तूबर 2018 में बतौर केंद्रीय राज्यमंत्री एमजे अकबर पर एक महिला पत्रकार ने मीटू संबंधित आरोप लगाया था, तब उन्हें मंत्रिपद छोड़ना पड़ा था. किंतु पंजाब में कांग्रेस ने मीटू आरोपी चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का पद दे दिया. चन्नी का बयान उनके जन्म से पहले स्थापित और पंजाब में स्थापित संघ के बारे में जानकारी का अभाव ही दिखाता है. अच्छा हो कि वह संघ की शाखा या अन्य गतिविधियों में आकर समझने का प्रयास करें.