राजेश पाठक
किसी पौधे की सरंचना, उसके गुणकारी किस्म व सरंक्षण के लिए आवश्यक तत्व को समझने के लिए उसकी जीनोम सिक्वेंसिंग या अनुक्रम होना आवश्यक है. खबर आयी है कि कोरोना महामारी के समय जिसकी बड़ी चर्चा रही उस गिलोय की जीनोम सिक्वेंसिंग करने में सफलता पा ली गयी है. और इस महान कार्य के पीछे जिनका योगदान रहा वो हैं भोपाल स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) के वैज्ञानिक बताया जाता है कि तमाम औषधीय गुणों से युक्त गिलोय के माध्यम से अब इस उपलब्धि के द्वारा आगे कैंसर, डायबिटीज़ और चर्मरोगों के निदान का नया मार्ग खुलेगा. एक समय ऐसा भी था कि आयुर्वेद दवाओं में भले ही गिलोय का उपयोग होता रहा हो, लेकिन लोगों का इससे परिचय तब ही जाकर हुआ जब बाबा रामदेव ने अपने मंच से इसके दुर्लभ गुणों को बता कर इसके दैनिक उपयोग पर बल देना शुरू किया.
वैसे सच तो ये है कि दुनिया भर में पायी जाने वाली जड़ी-बूटीयों में आधे से अधिक भारत में पैदा होतीं हैं. लेकिन इसकी सही मायने में सुध तभी जाकर ली गयी, जब सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीऐ सरकार नें पहली बार भारतीय चिकत्सा पद्धतियों के लिए अलग से राष्ट्रीय नीति बनायी. जिसके अंतर्गत आयुर्वेद तथा यूनानी चिकत्सा पद्धति को हरित उद्धोग की श्रेणी में लाने का अभूतपूर्व कार्य किया गया. और तभी जाकर आंवला, अश्वगंधा, चन्दन आदि आयुर्वेद में उपयोग होने वाली जड़ी-बूटीयों को नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड नें पहली बार उनके संरक्षण-संवर्धन को लेकर योजना बनाने पर ध्यान देना शुरू किया. और अटलजी की सरकार के दौरान ही कोच्ची (केरल) में प्रथम ‘विश्व आयुर्वेदिक सम्मेलन व हर्बल मेला’ आयोजित कर दुनिया को बताया कि उसके पास उसे देने को उसकी अपनी क्या बेमिसाल निधि है.
पंचभौतिक (धरती, अग्नि, जल, वायु और आकाश) अवधारणा पर आधारित आयुर्वेद में मनुष्य जीवन के भौतिक व अध्यात्मिक दोनों ही पक्षों का संतुलित विचार होता है. इसलिए इसके अंतर्गत होने वाले उपचार में स्वास्थ शरीर के साथ-साथ मन के निग्रह व आत्मा के उत्थान को भी ध्यान रखा जाता है. और, इसी कारण से योगासन को आयुर्वेद से जोड़ा गया है. महर्षि सुश्रुत नें स्वस्थ व्यक्ति की व्याख्या ऐसे व्यक्ति से की है जिसके शरीर त्रिदोष वात, पित, कफ़ संतुलित अवस्था में हों, प्राणभूत द्रव पदार्थ सामान्य अवस्था में हों और साथ ही आत्मा, मन, और इन्द्रिय शांत अवस्था में हों . यही आयुर्वेद का एकात्म दृष्टिकोण है. सम्पूर्ण रोग-प्रतिरोधक क्षमता (आरोग्य) को प्राप्त करने में शाकाहार की बड़ी भूमिका है, जिसे आयुर्वेद नें प्रधानता से स्वीकारा है. दूसरी ओर गिलोय, शतावरी, अश्वगंधा, तुलसी, काली मिर्च में निहित इम्युनिटी बढ़ाने के गुणों से दुनिया अब अनजान नहीं, इसी के कारण से आज आयुर्वेदिक औषधियों के निर्यात में इतनी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. आज लगभग ९० देशों में आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने वालों की अच्छी-खासी संख्या है. पिछले वर्षों की तुलना में आज आयुर्वेदिक-उत्पादों का निर्यात ४५% तक बढ़ा है, जो ये समझने के लिए काफी है कि आयुर्वेद पर दुनिया के देशों नें कितना भरोसा दिखाया है.
आयुर्वेद के द्वारा देश को प्राप्त इस गौरव के पीछे एनडीए सरकार की भूमिका को सदेव स्मरण किया जाता रहेगा. जब केंद्र में नरेंद्र मोदी नें सत्ता संभाली तो आयुर्वेद को पृथक आयुष मंत्रालय मिला. प्रधान मंत्री विदेश में जहां भी गए उन्होंनें नें भारतीय पारंपरिक ओषधियों को प्रोत्साहित करने के लिए करार किये. साथ ही भारतीय दूतावासों में आयुष सूचना केंद्र भी स्थापित किये.
वैसे एक समय वो भी था जब १५-२० वर्ष पूर्व तक हम आरोग्य को लेकर अपनें पारंपरिक ज्ञान को—कई लोगों की दृष्टि में तिरस्कार की हद तक—भरोसा करने लायक मान कर चलते ही नहीं थे. मुझे याद है कुछ वर्ष पूर्व मेरा दांतों के इलाज के लिये एक डेंटिस्ट के पास जाना हुआ. रूट-कनाल थेरेपी करने की सलाह देते हुए, उसने मुझसे पूछा, ‘कौनसा टूथ-पेस्ट इस्तेमाल करते हो’. जैसे ही मैंने एक आयुर्वेदिक टूथपेस्ट का नाम लिया, उन्होंने तुरंत कहा, ‘उसे बाथरूम की खिड़की से हाँथ ऊंचा करके बाहर फैंक दो’. और उन्होंने हिदायत के साथ कोलगेट टूथपेस्ट करनें को कहा. पर आज बात बदल चुकी है. बड़े और स्थापित ब्रांड के टूथपेस्टों तक को बाज़ार में बने रहने के लिए हर्बल-ब्रांड निकालते हुए गृहकों को बताना पड़ रहा है कि उनके टूथपेस्ट में भी लौंग, तुलसी जैसे तत्व मौजूद हैं.