प्रजा हित में कार्य करने वाली थीं रानी दुर्गावती

मातृभूमि की खातिर दे दिए अपने प्राण

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    11-Nov-2021
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कालिंजर दुर्ग के राजा कीर्तिसिंह के महल में 5 अक्टूबर 1524 को एक बच्ची जन्मी। दुर्गाष्टमी पर मानो माँ जगदम्बा प्रकटी थी, दुर्गाष्टमी के कारण उस पुत्री का नामकरण भी दुर्गावती किया गया। दुर्गावती बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी, भाला युद्ध, तैराकी आदि में निपुण हो गईं। 1540 में उनका विवाह गोंडवाना राज्य के युवराज दलपत शाह से हुआ, तत्कालीन गोंडवाना राज्य में 52 गढ़ (किले) थे। उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई, अपने तेज और पराक्रम के कारण उसका नाम वीरनारायण रखा गया।परंतु सन 1548 में राजा दलपतशाह का आकस्मिक निधन हो गया, जिसके बाद उन्होंने अपने पुत्र वीरनारायण सिंह को उत्तराधिकारी घोषित करके संरक्षक के रूप में राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
 
तब तक देश में मुगल प्रभाव काफी बढ़ चुका था एक बार उनके देवर ने मुगलों से प्रभावित होकर उन्हें घूंघट करने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने उसे गोंड परंपरा के विरुद्ध बताते हुए नकार दिया। राज्य संभालने के बाद रानी दुर्गावती ने प्रजा हित में कई कार्य आरंभ किए। उन्होंने अपनी दासी के नाम से चेरीताल, अपने नाम से रानीताल, वह प्रधान सलाहकार अधारसिंह के नाम से अधारताल सहित 52 तालाबों, धर्मशालाओं, मंदिरों का निर्माण कराया।
 
वह स्वयं अपने राज्य के किसानों से खेतों में जाकर मिलती थीं। उनके किए गौदान, भूदान, धातुदान आदि कार्य आरंभ किए। उनके राज्य में गोंडवाना राज्य काफी समृद्ध और शक्तिशाली हो चला था। उनकी सेना में 20 हजार घुड़सवार, 1 हजार हाथीदल सहित हजारों पैदल सैनिक थे. जो उनकी सामरिक शक्ति का प्रतीक थे। परंतु एक छोटे से राज्य की यह समृद्धि मुगल साम्राज्य को कभी रास नहीं आई। एक महिला द्वारा कुशल राज्य संचालन अकबर की आंखों को चुभता था। सबसे पहले मालवा के मुस्लिम शासक बाज बहाददुर ने उनपर हमले की नाकाम कोशिशें कीं, उन्होंने बाज बहाददुर को 3 बार हराकर वापस उल्टे पांव भागने को मजबूर किया।
 
नतीजतन अकबर ने अपने विश्वस्त आसफ खां को गोंडवाना पर अधिकार करने विशाल सेना के साथ भेजा। लेकिन पहली ही भिड़ंत में आसफ खां को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा. उसके 3000 सैनिक मारे गए, हालांकि गोंडवाना राज्य को भी काफी क्षति हुई। लेकिन 23 जून 1564 को आसफ खां ने दोगुनी सेना व अन्यान्य संसाधन शस्त्रादि लेकर पुनः गोंडवाना राज्य पर चढ़ाई कर दी। रानी दुर्गावती ने जबलपुर के नरई नाले के पास अपना मोर्चा संभाला।
 
23 को रानी की सेना मुगलों पर भारी पड़ी। सैकड़ों मुगल सैनिक मारे गए, अन्य सैकड़ों गम्भीर घायल हुए। लेकिन युद्ध के अगले दिन आसफ खां ने एक क्रूर षड्यंत्र रचते हुए मुगल सैनिको के बीच एक हरावल/आत्मघाती दस्ता भी भेजा जिसमें शातिर तीरंदाज थे। 24 को युद्ध शुरू होने पर ज्यों रानी आगे बढ़ीं इन आत्मघाती सैनिक ने अन्य मुगल सैनिकों के बीच छिपकर रानी दुर्गावती को लक्ष्य बनाया, युद्धरत रानी को अचानक ही एक तीर आकर भुजा पर लगा। रानी ने तुरंत वह तीर अपनी भुजा से निकाला, लेकिन तभी दूसरा तीर उनकी आंख पर लगा। उन्होंने वह भी निकाला लेकिन तभी एक और तीर उनके गले पर जाकर लगा।
 
अब रानी असहाय हो चलीं थीं, लेकिन उन्होंने मुगलों के हाथ न आने की अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा को स्मरण करते हुए अपने सलाहकार अधारसिंह को आदेश दिया कि वह उनका मस्तक अपनी तलवार से काट दे। अधारसिंह के एक और अपनी ही रानी की हत्या का धर्मसंकट था तो दूसरी ओर अपने राज्य की नारी अस्मिता बचाने का धर्मसंकट आखिर अधारसिंह ने रानी के आदेश का पालन करते हुए अपनी तलवार से उनका मस्तक काट दिया। उसी युद्ध में उनके पुत्र वीरनारायण भी वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह रानी दुर्गावती ने अपने साथ साथ भारतीय नारी अस्मिता के किए लड़ते हुए अपना सर्वोच्च्य बलिदान दिया।