नई देह और नई ऊर्जा लेकर पुनः आएंगे अमीरचंद जी

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    18-Oct-2021
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   महामना जगदीश गुप्त   

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संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री वरिष्ठ प्रचारक श्रीमान अमीरचंद जी का नॉर्थईस्ट प्रवास के दौरान ऑक्सीजन की कमी की वजह से निधन हो गया।
संस्कार भारती में सहकर्ता के रूप में विभिन्न प्रवासों और कार्यक्रमों में साथ बिताए पल और उनकी शुगर की बीमारी के चलते हमारे घर में हुआ उनका दीर्घ प्रवास स्मृतियों में रह गया है । संस्कार भारती को विभिन्न रुपों में स्थापित करने की उत्कट ललक के चलते संस्कार मंजरी के वास्तविक प्रणेता के रूप में वे हमेशा याद रहेंगे। मुझे याद है जब महामाया कुछ विश्वस्तों के आघातों के चलते विचलन की स्थिति में थी तब अमीरचंद जी उनसे अपना नया कार्य एनजीओ खड़ा करने का लगातार आग्रह कर रहे थे। और मैं इसका विरोध कर रहा था कि यह एक समानांतर शक्ति संचयन समझा जाऐगा। अतः यह ठीक नहीं होगा। तब बड़े स्वप्नों को साकार करने के अभिलाषी अमीरचंद जी ने कहा था
 
कि संगठन में नए लोग आएंगें तो पुरानों को विदा लेनी ही होगी । ऐसे में पुराने कार्यकर्ताओं को अपने आप में एक मित्रमंडल के रूप में रूपांतरित करके संस्कार भारती के या अन्य संगठन के कार्यो से जीवन में प्राप्त सुंगध से समाज को महकाते रहना होगा I उन्हें वर्तमान में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं के समक्ष एक आदर्श प्रकाश स्तंभ के रूप में अपने आप ज्योतित रखना होगा । ताकि यदि झ्न वर्तमान कर्णधारों को कभी लगे कि वे भटक रहे हैं तो वे स्वयं को सही राह पर |लाने के लिए आपकी ओर देख कर अपनी दिशा व मार्ग प्रशस्त कर सकें I लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर संस्कार भारती द्वारा आरंभ किए बलिदान मेले के आयोजनों को अन्य मित्र संगठनों द्वारा द्वारा अपना लिए जाने पर , मातृशक्तिशौर्य दिवस के रूप वृहद रूप से हुए आयोजन से वे प्रभावित थे और उसके आकल्पन में मेरी भूमिका जानकर वे मुझे लगातार कहा करते थे कि मैं आपसे कुछ ऐसे ही बड़े कार्यक्रमों को साकार करने की अपेक्षा रखता हूं । मैं तो वह नहीं कर पाया किंतु उन्होंने अपने स्वप्नों को साकार किया । संस्कार भारती के हर मेगा कार्यक्रम के पीछे उनका संकल्प बल होता था ।
 
जी समूह के प्रमुख श्री सुभाष चंद्रा जी के साथ आरंभ किया उनका कार्य संस्कार नैमिष्य कितना बड़ा हो चुका है । इसका प्रत्यक्षदर्शी तो नहीं हो सका किंतु विभिन्न प्रदेश सरकारों के साथ कुंभ जैसे मेलों में भी वे संस्कारभारती की अपनी लकीर बनाने में सफल रहे। परमवरिष्ठ परम आदरणीय योगेन्द्र बाबा के स्वप्नों को नए भारत के अनुकूल बनाने के उनके महत् कार्यों को सदा याद रखा जाऐगे । पूरी बेबाकी से सपाटबयानी करने वाले अमीरचंद जी को महाप्रयाण के लिए पुरानी सीमाओं के उल्लंघन के पर्व दशहरा को प्रकृति व ईश्वर ने चुना । जिस पूर्वोत्तर विशेषकर अरूणाचल को ईसाई मिशिनरियों के जाल से निकालने के लिए उन्होंने संस्कार भारती के माधयम से सांस्कृतिक चेतना को बंधन काटने का हथियार बना दिया उनके उसी प्रिय प्रदेश पावित्र अरूणाचल की ऊंची और प्रेरक राष्ट्रभक्त नूरा और सैला बहनों में से एक के स्थान सैला टाप को चुना कर उन्होंने अपनी अंतिम यात्रा को भी महान ऊंचाई प्रदान की । उनके साथहुई अनेक चर्चाओं के रूप में अनेक समाजोपयोगी पाथेय स्मृति में कौंध रहे हैं ।
बलिया के एक न्यूनआय परिवार में जन्म लेकर सनातन राष्ट्रसाधना के लिए ,सन 1981 में संघधर्म के प्रचारक सन्यासी का व्रत लेने वाले वय में भले ही वे छोटे रहे हों किंतु उनको संघ साधना का जो पथ मिला, उसमें अपना समर्पण मिला कर, उन्होंने एक विशाल यशकाया और पुण्यआकाश प्राप्त किया । अभी कोरोना काल के ठीक पहले माता पिता के महाप्रयाण के अवसर पर सांत्वना देने आए थे तब उनका कहा संघ का वह वाक्य "अविचल अनथक" साधना का उनका संकल्प व संदेश मस्तिष्क में गूंज रहा है । परमात्मा उन्हें भारत माता की सेवा के लिए स्वस्थ देह और विकट जीवनी शक्ति देकर शीघ्र ही भारतभूमि पर पुनः भेजेगा ।
ऊँ शांति