स्वाधीनता संग्राम में डॉ हेडगेवार की अग्रणी भूमिका और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना

14 Oct 2021 17:50:40
 

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अखिलेश श्रीवास्तव
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई । तब डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार ने बाल और तरुण युवकों को साथ लेकर संघ का प्रारंभ किया , पर संघ की स्थापना के पहले से ही सामाजिक कामों में लगे हुए अप्पाजी जोशी जैसे व्यक्तियों को भी साथ लिया इन सभी ने आजीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम किया। आज आरएसएस जिस रुप में दिखता है वैसा 1925 में नहीं था। संघ के नाम का निर्णय भी संघ की स्थापना के पश्चात हुआ ।
अब जबकि संघ अपनी स्थापना की शताब्दी से मात्र 4 वर्ष दूर है । तब मन में कई सवाल उठते हैं कई प्रश्न उठना स्वाभाविक है संघ के प्रारंभिक काल में देश की और समाज की क्या स्थिति थी उस स्थिति को यदि ध्यान में रखा जाए तो संघ की स्थापना का कारण समझने में आसानी होगी 1925 में कांग्रेस का लगभग देशव्यापी संगठन था । यद्यपि उसके अध्यक्ष हर साल बदलते रहते थे। पर सभी सूत्र गांधी जी के हाथों में थे। गांधीजी स्वाधीनता के पुरुस्कर्ता थे साथ ही अहिंसा और हिंदू मुस्लिम एकता के पुरुस्कर्ता भी थे । 1920 में लोकमान्य तिलक जी के अवसान के बाद गांधी जी कांग्रेस के सर्वे सर्वा बन गए थे।
इधर डॉ हेडगेवार 1911 से 1913 तक कोलकाता में डॉक्टरी पढ़ते समय प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता पुलिन बिहारी दास के साथ संपर्क में रहकर क्रांतिकारी कार्यों में संलग्न थे वे कोलकाता में शांतिनिकेतन में रहते थे
और अनुशीलन समिति जिसके नेता उन दिनों प्रसिद्ध क्रांतिकारी त्रिलोक्य नाथ चक्रवर्ती थे, उनके निर्देश अनुसार शस्त्र संग्रह बगैरा के काम करते रहते थे, उस समय उनके साथ ही डॉक्टर नारायणराव सावरकर जो वीर सावरकर के भाई थे वह भी रहे । जब वे कोलकाता में डॉक्टरी पढ़ रहे थे तो उनके एक सहपाठी नलिनी किशोर ने अनुशीलन समिति में भर्ती होने के उद्देश्य उन्हें त्रिलोकनाथ चक्रवर्ती से मिलवाया था। इस बात की पुष्टि त्रिलोकनाथ चक्रवर्ती जी ने भी अपनी पुस्तक "जेले त्रिश बछर" जेल में 30 वर्ष में की है. डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार के क्रांतिकारी जीवन के विषय में उन्होंने न केवल अपनी इस पुस्तक में जानकारी दी वरन डॉक्टर हेडगेवार का फोटो भी छापा। अनुशीलन समिति के प्रमुख पुलिन बिहारी दास और त्रिलोकनाथ चक्रवती को अंडमान में काले पानी की सजा हुई थी। डॉ केशव राव बड़ी मात्रा में क्रांतिकारी साहित्य गुप्त रूप से कोलकाता से नागपुर के युवाओं के लिए भेजते थे।
 
सन 1920 में डॉ हेडगेवार पांडिचेरी में श्री अरविंद घोष से मिले और उनसे आग्रह किया कि वे नागपुर कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष पद स्वीकार करें। डॉ केशव ने कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में गांधी जी से यह निवेदन किया कि कांग्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता ही हमारा लक्ष्य है इसका प्रस्ताव पारित करना चाहिए। इस अधिवेशन की व्यवस्था का दायित्व डॉक्टर हेडगेवार को ही सौंपा गया था। बाद में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो डॉ केशव राव ने अपनी पूरी शक्ति से इस आंदोलन में सक्रियता दिखाई । मध्य प्रांत के गांव-गांव तक दौरा करके सभाओं द्वारा आंदोलन का प्रचार किया। उन दिनों वहां के जिलाधिकारी अंग्रेज सिरिलजेम्स इर्विन ने डॉक्टर हेडगेवार के ऊपर 23 फरवरी 1921 से 1 महीने तक सभा न करने और भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया । यह कार्यवाही धारा 144 के अंतर्गत की गई पर डॉक्टर हेडगेवार भाषणों और सभाओं का काम करते रहे । परिणाम स्वरुप 1921 की मई में उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। उनके भाषणों को ब्रिटिश सरकार ने आपत्तिजनक माना । 31 मई 1921 को यह मुकदमा प्रारंभ हुआ और मिस्टर स्माइली की अदालत में 14 जून को उनकी पेशी हुई । डॉक्टर जी ने अदालत में भी उत्तेजना पूर्ण भाषण दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 19 अगस्त को हजार हजार रुपये की दो जमानत वह एक हजार का मुचलका और 1 वर्ष तक राजद्रोह आत्मक भाषण ना देने का लिखित वचन देने के लिए उनसे कहा । पर उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया और कहा कि हमें पूर्ण स्वतंत्र चाहिए और वह लिए बिना हम चुप नहीं बैठेंगे । परिणाम स्वरूप उनके लिए 1 साल का सश्रम कारावास सुनाया गया और वे जेल के लिए विदा हो गए।
 
इन दिनों कांग्रेस की भूमिका अंग्रेज सरकार से औपनिवेशिक राज अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत ही स्वराज की मांग था तब तक कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य की मांग निश्चित नहीं कर सकी थी। राष्ट्रीय जागृति लाने के लिए डॉक्टर हेडगेवार ने एक संस्था राष्ट्रीय उत्सव मंडल भी बनाई। सन 1920 में डॉ केशव राव ने भारत स्वतंत्र सेवक मंडल स्थापित किया। इस संस्था के माध्यम से डॉक्टर हेडगेवार ने 26 दिनों में 27 स्थानों पर प्रवास कर के सोलह हजार लोगों के समक्ष व्याख्यान दिए। इन सभी संस्थाओं का उद्देश्य देश को अंग्रेजो की गुलामी से स्वतंत्र करना तथा जन जागृति लाना था। नागपुर में ही सन 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन होना था। इसलिए डॉक्टर जी ने बारह सौ सेवादल स्वयंसेवक तैयार करना प्रारंभ कर दिया था।
 
डॉ हेडगेवार आजादी की लड़ाई में लगातार सक्रिय रहे। चाहे क्रांतिकारी गतिविधियां हो या सामाजिक कार्य हो। इस बीच में देश भर के अलग-अलग लोगों से मिलते रहे इसी समय में उनके मन में यह संकल्प पनप रहा और दृढ़ हो रहा था की उन्हें समाज के संगठन का काम प्रारंभ करना है और उनके इसी संकल्प से विजयादशमी के दिन 20 युवकों के साथ मिल कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को डॉक्टर हेडगेवार रुप दिया। उनके साथ वहां भाऊजी कावरे, अन्ना जी सोहनी, विश्वनाथ राव केलकर, बालाजी खुद्दार, बापूराव बेदी जैसे लोग थे। उसी बैठक में संघ के कार्यक्रम आदि पर भी विचार विमर्श हुआ । धीरे-धीरे संगठन बड़ा और बना । आज जिस नाम से हम इस संगठन को जानते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह 27 अप्रैल 1927 में तय हुआ। 28 मई 1926 संघ में लाठी का नियमित प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ। नागपुर के बाद संघ की पहली शाखा सन 1926 में 18 फरवरी को वर्धा में शुरू हुई। इस प्रकार धीरे-धीरे संघ बढ़ता गया और आज संघ अपने तीन दर्जन संगठनों से ज्यादा उपक्रमों के साथ समाज के काम में लगा हुआ है । आज संघ की शक्ति है वह पूरे भारतीय समाज की शक्ति है। यह शक्ति पूरे देश में दिखाई पड़ती है सन 1929 में डॉ हेडगेवार को सरसंघचालक माना गया।
सन 1930 में जब कांग्रेस ने अपना ध्येय पूर्ण स्वतंत्रता घोषित किया तो संघ की सब शाखाओं में भी 26 जनवरी 1930 को शाम ठीक 6 बजे सभा करके सवतंत्रता दिवस मनाया गया। इसके बाद डॉ केशव राव हेडगेवार ने यवतमाल में 21 जुलाई को वहां से 6 मील दूर लोहारा जंगल में दस हजार लोगों की उपस्थिति में सत्याग्रह किया ।उसी समय उनको गिरफ्तार कर लिया गया और यवतमाल जेल में मुकदमा करके नो महीने का सश्रम कारावास दे दिया गया । ये डॉक्टर हेडगेवार की दूसरी जेल यात्रा थी। पर संघ चलता रहा ,अनथक , अविराम, संकल्पित भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने के पथपर , डॉक्टर हेडगेवार 1940 में नहीं रहे। उसके बाद दूसरे सरसंघचालक के रूप में माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर श्री गुरुजी जिनका उपाख्य था सरसंघचालक बने। उसके बाद मधुकरराव दत्तात्रेय बाला साहब देवरस तीसरे सरसंघचालक बने । चौथे सरसंघचालक के रूप में प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया सरसंघचालक बने , उसके बाद के एस सुदर्शन जी सरसंघचालक बने और आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक के रूप में डॉ मोहन राव भागवत जी हैं। संघ चारों दिशाओं में एक साथ बढ़ रहा है। इसका अर्थ चारो दिशाओं में समाज का संगठित होना है।
धनुष से जो छूटता है, बाण कब मग में ठहरता,
देखते ही देखते वह, लक्ष्य का ही वेध करता।
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