हम दान नहीं ले रहे, समर्पण मांग रहे हैं – चंपत राय

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    19-Jan-2021
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श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए देशभर में निधि समर्पण अभियान प्रारंभ हो गया है. मंदिर की नींव को लेकर विशेषज्ञ मंथन कर रहे हैं. जल्द ही निर्माण कार्य प्रारंभ होने की आशा है. निधि समर्पण अभियान और श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर एक चैनल ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय जी से बातचीत की, कुछ संपादित अंश……

चंपत राय जी ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण में सारे हिंदुस्तान की भागीदारी होनी चाहिए. गरीब से गरीब भी हो और उच्च पदस्थ व्यक्ति भी हो. इसके प्रारंभ की अवधि हमने मकर संक्रांति निर्धारित की थी. इसलिए दिल्ली के कार्यकर्ता बंधु सबसे पहले भारत के प्रथम नागरिक, संविधान के रक्षक महामहिम राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे. भिन्न-भिन्न राज्यों के लोग अपने-अपने स्थानों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पास पहुंचे थे. मैं भी लखनऊ में मुख्यमंत्री के पास गया था. परन्तु मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम ये दान नहीं मांग रहे हैं. भगवान के काम के लिए दान नहीं है.

समाज स्वयं मंदिर में जाता है. अपने घर में पूजा करता है. आरती होती है, आरती की थाली घूमती है. समाज स्वेच्छा से उसमें कुछ डालता है. भगवान का ये घर बन रहा है. मंदिर यानि भगवान का घर, इसके लिए दान नहीं, समर्पण है.

इसलिए राष्ट्रपति महोदय ने स्वेच्छा से समर्पण किया है. दान मांगा जाता है. दान मांगने वाले लोग दान की राशि तय करते हैं. इस पूरे अभियान में मांगने की बात नहीं है. समर्पण को आदरपूर्वक स्वीकार करने की बात है. हमने राष्ट्रपति महोदय का समर्पण स्वीकार किया. देश का प्रथम नागरिक, प्रथम समर्पण.

हमने धन संग्रह कहीं नहीं लिखा है. हमने लिखा है – निधि समर्पण. सारा समाज नहीं आ सकता है अयोध्या. सारा समाज बैंक में लाइन नहीं लगा सकता. सिस्टम फेल हो जाएगा. जिस प्रकार देश का प्रत्येक बालक स्कूल नहीं जा सकता, तो विवेकानंद जी ने कहा कि स्कूल बच्चे के घर जाए. हमने भी सोचा है कि गरीब-मजदूर तक कैसे पहुंचा जाए. महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल महोदय बैंक के काउंटर तक कैसे जाएं. इसलिए हम ही घर-घर तक जाएंगे.

हमने सोचा था कि यदि जून से प्रारंभ कर देंगे, तो हम 39 महीने में पूरा कर लेंगे. लेकिन अभी 7 महीने से तकनीकी, वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, स्टडी, एक्सपेरिमेंट, ट्रायल और टेस्टिंग हो रहा था. अब लगभग देश की बड़ी-बड़ी आईआईटी के प्रोफेसर सब एक मत हो गए हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के एक्सपेरिमेंट करके. अब मैं ऐसा कह सकता हूं कि वहां फाउंडेशन की तैयारियां शुरू हो गई हैं. फाउंडेशन बनने से पहले कहीं मिट्टी हटाई जाती है, ये काम प्रारंभ हो गया है. अगर मैं 01 फरवरी, 2021 से मान लूं, तो जो हमने प्रारंभ में 39 महीने सोचा था, उसी कार्यावधि में समाज को समर्पित हो जाएगा.

अगर पत्थर की आयु सीबीआरआई (Central Building Research Institute) की लेबोरेटरी में जांच कराएंगे या जो भी देश में इस प्रकार के पत्थरों की उम्र को स्टडी करते हैं, तो वे बताएंगे कि हवा, धूप और पानी का जो पत्थर पर परिणाम होता है, जिस कारण पत्थर का क्षरण होता है. ये प्रारंभ हो जाता है, तो पत्थर 1000 साल की आयु के माने जाते हैं. प्राचीन मंदिर जो पत्थरों के बने हैं, वो टिके हैं.  महत्वपूर्ण बात ये थी कि पत्थर का वजन, जिस नींव के कंधों पर रहना है, उसकी आयु कैसी हो? दूसरी बात की ड्रॉइंग किस ढंग से बनाया जाए कि वो लंबे काल तक उस वजन को सहन कर सके. अब उसका प्रारूप आ गया है. इसलिए ये कार्य अब होगा. एक ऐसी नींव देश के इंजीनियर्स ने प्रस्तुत कर दी है. ऐसी ड्रॉइंग्स और ऐसे प्रपोजल्स दे दिए हैं, जो निश्चित ही शताब्दियों के लिए होंगे और भारतीय इंजीनियरिंग ब्रेन के लिए दुनिया में उदाहरण बनेंगे.

पहले मैं विदेशों में रहने वाले राम भक्तों की बात पर आता हूं. विदेश का मतलब, भारत के लिए नेपाल भी विदेश है. लंका-भूटान ये विदेश में आएंगे. बांग्लादेश और पाकिस्तान भी आएंगे. लेकिन भारतवर्ष में भारत के बाहर की मुद्रा में अगर कोई धन आता है, तो उसके लिए कोई कानून है, व्यवस्था है, सिस्टम है. उसमें हमें पंजीकरण कराना होता है. अभी हमारे पास उस काम के लिए समय नहीं है. उस पंजीकरण की जो शर्तें हैं, उसको पूरा करने में अभी हमको समय लगेगा. इसलिए भारत के बाहर अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में रहने वाले भारतीयों से निवेदन करूंगा कि कुछ दिन और धैर्य रखना होगा. दूसरी बात आई, धन. अभी भगवान का घर है और लक्ष्मी भगवान के चरणों में बैठती है. तो ये सोचना इसमें कोई कमी पड़ेगी, ये अपने ऊपर ही अविश्वास करना होगा. परमात्मा के काम में मनुष्य की बाधा नहीं पड़ सकती है. बुद्धि का देना और बुद्धि का छीन लेना, उसी के हाथ में है. धन का देना, धन कम देना और अधिक देना ये भी उन्हीं के हाथ में है. जो कुछ है उन्हीं का है.

निधि समर्पण अभियान

कोई कल्पना ही नहीं हो पा रही है. अकल्पनीय लग रहा है. कल मैं लखनऊ में रहा. सवेरे रायबरेली के एक कार्यक्रम में गया. एक महीने पहले से एक व्यक्ति का निजी आग्रह था कि मेरे घर आइए, मैं कुछ देना चाहता हूं. वो चाहते थे कि अयोध्या आएं. मैं कहता था कि मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे. मैं कल घर चला गया. एक आदमी ने 1 करोड़, 11 लाख, 11 हजार, 1 सौ 11 रुपये का चेक दिया. लखनऊ के कार्यकर्ताओं के साथ अंतिम टोली में रहा. रात्रि को 6:30 पर, मैंने पूछा क्या है आज का पुरुषार्थ?  राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले साथ में थे. 12 परिवारों में गए और 87 लाख का चेक लेकर आए. हमें, तो कल्पना भी नहीं हो रही है कि क्या आएगा. मैं कुछ भी नहीं कह सकता. अनंत के कार्य में लगे हैं. जिनकी बुद्धि और शक्ति सीमित है, वो कार्य कर रहे हैं. कितने करोड़ लोग कार्य कर रहे हैं. कितने लाख लोग कार्य कर रहे हैं. सब अपने-अपने मन से बोल सकते हैं. लेकिन कोई अनुमान नहीं कर सकते. जो अनुमान करोगे, भगवान हो सकता है सब फेल कर दे.