भारतीय शिक्षक दिवस : शिक्षा, जिम्मेदारी और राष्ट्रीय पुनर्जागरण

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    05-Sep-2025
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डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
शिक्षा केवल ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि मानवता और समाज की दिशा तय करने वाला आधार है। भारत में शिक्षक दिवस इसी विचार के साथ मनाया जाता है कि शिक्षक समाज के निर्माता हैं। वर्तमान समय की चुनौतियों और अवसरों के बीच यह दिवस हमें स्मरण कराता है कि शिक्षक किस प्रकार बदलते परिवेश में भी संस्कृति और राष्ट्र की आत्मा को जीवित रखते हैं।
 
शिक्षक दिवस का ऐतिहासिक महत्व
भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह दिन महान दार्शनिक, शिक्षक और राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति को समर्पित है। जब उनके विद्यार्थियों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की, तो उन्होंने कहा – “इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाना मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।”
इस प्रकार यह दिन शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और उनके योगदान की मान्यता का प्रतीक बन गया।
 
भारतीय परंपरा में गुरु का स्थान
भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। वेदों और उपनिषदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के समान बताया गया है –
 
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु का दायित्व केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों, अनुशासन और राष्ट्रधर्म की शिक्षा देना भी है। प्राचीन गुरुकुल परंपरा में शिक्षा का उद्देश्य आत्मा और समाज का संतुलित विकास था।
 
बदलता समय और शिक्षा का नया प्रवेश
21वीं सदी में शिक्षा का स्वरूप तेजी से बदला है। इंटरनेट और डिजिटल तकनीक ने शिक्षा को वैश्विक मंच पर ला दिया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और ई-लर्निंग ने शिक्षा को सीमाओं से परे पहुँचा दिया है। परंतु साथ ही इसमें मानवीय संवेदनाओं का संकट भी उत्पन्न हुआ है। आज शिक्षक को केवल विषय का ज्ञाता ही नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, मूल्य संरक्षक और नवाचार प्रेरक बनना आवश्यक है।
 
शिक्षकों की जिम्मेदारी
* चरित्र निर्माण – विद्यार्थी को केवल ज्ञानवान नहीं, बल्कि नैतिक, जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनाना।
* नवाचार और शोध – विद्यार्थियों में जिज्ञासा और प्रयोग की भावना जगाना।
* भारतीयता का संवर्धन – शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और जीवन मूल्यों को शामिल करना।
* तकनीकी अनुकूलन – डिजिटल माध्यमों को अपनाकर शिक्षा को उपयोगी और प्रभावी बनाना।
* सामाजिक समरसता – जाति, भाषा और धर्म से ऊपर उठकर समरसता और राष्ट्रीय एकता की शिक्षा देना।
 
शिक्षकों की उपलब्धियाँ
भारत ने ऐसे महान शिक्षकों को जन्म दिया जिन्होंने शिक्षा को समाज परिवर्तन का साधन बनाया।
* डॉ. राधाकृष्णन – दर्शन और नैतिकता को शिक्षा में शामिल किया।
* डॉ. भीमराव अंबेडकर – शिक्षा को सामाजिक न्याय और समानता का हथियार बनाया।
* डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम – विज्ञान और तकनीक को शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण से जोड़ा।
* महात्मा गांधी और विनोबा भावे – बुनियादी शिक्षा और नैतिकता पर बल दिया।
आज भी हजारों शिक्षक ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और शिक्षा में योगदान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वतंत्रता के बाद शिक्षा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
 
* विद्या भारती – संघ का सबसे बड़ा शैक्षिक संगठन, जिसके अंतर्गत देशभर में लगभग 13,000 से अधिक विद्यालय संचालित हैं। इन विद्यालयों में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रभक्ति और आधुनिक शिक्षा का समन्वय कराया जाता है।
 
* *गुरुजनों का सम्मान* – संघ शिक्षा को केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का मूल मानता है।
 
* समरसता और संस्कार – विद्या भारती के विद्यालयों में प्रार्थना, योग, संस्कृत और भारतीय इतिहास का समावेश किया गया है, ताकि बच्चों में आत्मगौरव और स्वाभिमान का विकास हो।
 
* गुरु दक्षिणा परंपरा – संघ में प्रत्येक स्वयंसेवक अपने गुरु (संघ) के प्रति समर्पण की भावना से योगदान करता है। यह शिक्षा के सनातन मूल्य की पुनर्स्थापना है।
 
* शिक्षक निर्माण – संघ ने शिक्षकों को केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि समाज सुधारक और राष्ट्र के सेवक के रूप में गढ़ने का प्रयास किया है।
इस प्रकार संघ ने शिक्षा में भारतीय दृष्टि का समावेश करके आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का कार्य किया है।
 
वर्तमान चुनौतियाँ
1. व्यावसायिकता – शिक्षा केवल रोजगार और पैसे तक सीमित होती जा रही है।
2. मूल्यों का अभाव – नैतिकता और संस्कार शिक्षा से गायब हो रहे हैं।
3. तकनीकी निर्भरता – विद्यार्थी तकनीक पर निर्भर होते जा रहे हैं, परंतु मानवीय संवेदना कम हो रही है।
4. समानता की कमी – ग्रामीण और शहरी, अमीर और गरीब के बीच शिक्षा का असमान वितरण।
 
समाधान और आगे की दिशा
* भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करना – वेद, उपनिषद, गीता और रामायण जैसे ग्रंथों को शिक्षा का हिस्सा बनाना।
* चरित्र आधारित शिक्षा – केवल नौकरी के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए शिक्षा।
* प्रौद्योगिकी का संतुलित उपयोग – तकनीक को साधन मानना, साध्य नहीं।
* शिक्षक सशक्तिकरण – शिक्षकों को शोध, प्रशिक्षण और सामाजिक सम्मान प्रदान करना।
* संघ के अनुभव का अनुकरण – विद्या भारती जैसे मॉडल को व्यापक स्तर पर लागू करना।
भारतीय शिक्षक दिवस केवल औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र को यह याद दिलाने का अवसर है कि शिक्षक ही भविष्य की धुरी हैं।
 
आज आवश्यकता है कि हम शिक्षकों को केवल ज्ञानदाता न मानें, बल्कि उन्हें राष्ट्र निर्माता के रूप में स्वीकार करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विद्या भारती जैसे संगठनों ने यह साबित किया है कि शिक्षा का सही उद्देश्य तभी पूरा होगा जब वह भारतीयता, समरसता और नैतिकता से जुड़ी हो।
यही हमारे शिक्षकों को सच्ची श्रद्धांजलि और भारतीय शिक्षक दिवस का वास्तविक संदेश है।