भारत के आध्यात्मिक उत्कर्ष में स्त्री संत परंपरा का योगदान

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    25-Aug-2025
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डॉ. मंदाकिनी शर्मा
 
"उत्तुंग हिमालय से लेकर आसेतु-समुद्र और मीरा के देश से लेकर धुर पूरब में चैतन्य महाप्रभु के बंगाल तक, संत सांस्कृतिक जागरण और आध्यात्मिक उठाव का कार्य कर रहे थे।" डॉ. श्रीराम परिहार जी का यह कथन भारत के आध्यात्मिक पर्यावरण का चित्र बनाने के साथ-साथ उस चित्र में संत परंपरा के रंग को भी उभारता है। भारत की पावन भूमि पर समरसता का मधुर गान गाने वाले संतों ने समय-समय पर अनेक परिभाषाओं का सृजन किया। उन्हीं संतों में से एक 12वीं शताब्दी के श्री रामानुजाचार्य जी भी हैं। आचार्य रामानुज जी ने ‘सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणे मतः’ के रूप में आध्यात्मिकता की ऐसी परिभाषा गढ़ी जिसके आधार पर भारतीय संत परंपरा में सभी जाति-वर्ण के न केवल पुरुषों को, बल्कि स्त्रियों को भी स्थान प्राप्त हुआ। इस प्रकार भारत के आध्यात्मिक उत्कर्षकर्ताओं में स्त्री संतों के नाम का नया अध्याय जुड़ गया।
 
भारत की संतभूमि पर वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक की लंबी अवधि में लोककल्याण के मार्ग पर चलते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाली अनेक स्त्री संतों का जन्म हुआ। भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्रोत वेदों के काल में ऋग्वेद और यजुर्वेद की ऋचाओं, कंडिकाओं एवं मंत्रों की रचना करने वाली लोपामुद्रा (महर्षि अगस्त्य की पत्नी), अदिति (महर्षि कश्यप की पत्नी), आपला आत्रेयी (महर्षि अत्रि की पुत्री), कशिवा (महर्षि भारद्वाज की पुत्री), ममता, रोशा और आंगूरिस जैसी ज्ञान-प्रवीण स्त्री संतों के उदाहरण मिलते हैं। प्राचीनकाल में आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच तक्षशिला, नालंदा, असम तथा बिहार क्षेत्र में सिद्धों की वैचारिक साधना का प्रचार-प्रसार हुआ, जिसमें कनखलापा, लक्ष्मींकरा, मणिभद्रा तथा मेखलापा जैसी स्त्री संतों का उल्लेख मिलता है। इनमें भी लक्ष्मींकरा का स्थान विशेष है क्योंकि इनके सिद्धि-साधना तथा आध्यात्मिक कार्यों की कोई तुलना नहीं है। उन्होंने "सहज" को नूतन धर्मतत्व के रूप में समाज से परिचित कराया। इस सहजयानी स्त्री संत ने मनुष्य को अपनी सहजात प्रवृत्ति का संपूर्ण उपयोग कर आध्यात्मिक चेतना का विकास करने और भगवतप्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहने की शिक्षा दी। उनके द्वारा विरचित ‘अद्वय सिद्धि’ ग्रंथ ने भारतीय स्त्री संत परंपरा को साहित्यिक समृद्धि प्रदान की।
 
इसी क्रम में दक्षिण भारत की वैष्णव पंथ की आलवार परंपरा और शैव पंथ की नायनार परंपरा में भी स्त्री संतों का उल्लेख मिलता है। इनमें आंडाल और मंगयार करसियर विशेष हैं। आंडाल ने भगवान रंगनाथ और मंगयार ने भगवान शिव की भक्ति के अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किए। इनके विचार क्रमशः ‘तिरुपावे’, ‘नक्कीयार तिरुमोडी’ तथा ‘तिरुत्तोडर तोघे’ में प्रकाशित हुए। तमिलभूमि की भाँति महाराष्ट्र में भी अनेक स्त्री संतों का जन्म हुआ। इनमें संत ज्ञानेश्वर जी की छोटी बहन मुक्ताबाई का नाम अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने भाई के लिए भौतिक जगत के साथ-साथ आध्यात्मिक मार्ग के द्वार भी खोले। अपने ‘ताटीचे अभंग’ के माध्यम से उन्होंने ज्ञानेश्वर जी को वैराग्य की दिशा में अग्रसर किया। महाराष्ट्र में संत महदंबा, संत सोयराबाई, निर्मलाबाई और बहिणाबाई का नाम भी आदरपूर्वक स्मरण किया जाता है।
 
गुजरात और मारवाड़ की धरती ने मीराबाई सहित अनेक स्त्री संतों को जन्म दिया। इनमें सती लोयणबाई, गंगासती, सती तोरल, सहजोबाई और दयाबाई की भक्ति-साधना आज भी जन-जन की स्मृति में जीवंत है। भारत ने पूरी दुनिया को त्याग और संयम का ज्ञान दिया। इस दिशा में बंगाल का योगदान अद्वितीय है। बंगाल ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जैसे संतों को जन्म दिया। इसी भूमि की बाउल संत परंपरा में भी स्त्री संतों की समृद्ध श्रृंखला है जैसे शारदा माँ, आनंदमयी माँ, मिनतीदासी, आसमानी क्षेपी और जापान की माकि काजूमी। विशेषतः माँ शारदा की आध्यात्मिक प्रदेयता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उनके संस्कार और मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप ही विश्व को स्वामी विवेकानंद जैसा अद्वितीय वेदांत व्याख्याता प्राप्त हुआ।
 
यदि हम समग्र दृष्टि से देखें तो वैदिक काल की ऋषिकाओं से लेकर वैष्णव भक्तिकाल की असंख्य स्त्री संतों तक की अखंड परंपरा भारत में विद्यमान है। इन स्त्री संतों ने अपनी साधना, तपस्या और सृजन के बल पर समाज को ईश्वरप्रदत्त समता, प्रकृतिप्रदत्त न्याय, गुरु-तत्व का मार्गदर्शन, परमात्मा के नाम-जप का महत्व, वैराग्य, संयम और सात्विक मूल्यों से परिचित कराया। स्त्री संतों की इस उपादेयता को तात्कालिक समय में भी पूर्ण सम्मान और आदर प्राप्त है। भारत का आध्यात्मिक व्यक्तित्व अपने इस गौरवशाली अतीत से जीवन-ऊर्जा पाता रहा है और आगे भी पाता रहेगा। भारत की आध्यात्मिक उपलब्धि में स्त्री संतों की अविस्मरणीय भूमिका को बारंबार, कोटिशः नमन है।