
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
देश आज अपने हुतात्मा बलिदानियों के शौर्य को याद कर रहा है। हर वर्ष 26 जुलाई को भारत कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाता है। 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ी गई कारगिल युद्ध की समाप्ति और उसमें भारतीय सैनिकों की वीरगाथा को यह दिन समर्पित है। यह युद्ध 60 से अधिक दिनों तक चला और आज ही के दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के अंतर्गत जीत हासिल की थी। यह युद्ध करीब 17,000 फीट की ऊँचाई पर लड़ा गया, जहाँ तापमान -10 से -20 डिग्री सेल्सियस तक गिरा हुआ था। ऑक्सीजन की कमी, दुर्गम रास्ते, बर्फ से ढके पहाड़ और हर कदम पर जान का खतरा, फिर भी भारतीय सैनिक पीछे नहीं हटे।
वस्तुत: यह दिन सिर्फ एक सैन्य विजय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भारत के अदम्य साहस, एकता और संकल्प का प्रतीक है। कारगिल युद्ध की कहानियाँ युवाओं में देशप्रेम, साहस और सेवा भाव की प्रेरणा जगाती हैं। दुनिया ने देखा कि कैसे कठिन पर्वतीय क्षेत्र में भारत की सेना ने असंभव को संभव कर दिखाया। इसी के साथ ही इस घुसपैठ से सबक लेकर भारत ने अपने रक्षा ढांचे को ओर अधिक सशक्त किया और स्वदेशी तकनीक पर अधिक जोर देना आरंभ कर दिया ताकि हथियारों पर किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहा जाए।
यह पूरी घटना वर्ष 1999 की गर्मियों में तब घटी, जब पाकिस्तान ने चुपके से अपने सैनिकों और प्रशिक्षित आतंकियों को जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर की ऊँची चोटियों पर बैठा दिया था। उन्होंने भारत के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-1 को अपने नियंत्रण में लेने की योजना बनाई थी, जिससे कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ा जा सके, तब सेना ने एक ऑपरेशन ‘विजय’ नाम से शुरू किया। यह सैन्य अभियान करीब 60 दिनों तक चला, जिसमें भारतीय सेना ने दुर्गम पर्वतीय इलाकों में विषम परिस्थितियों के बावजूद दुश्मनों को पीछे धकेलते हुए विजय हासिल की।
कैप्टन विक्रम बत्रा, ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, राइफलमैन संजय कुमार जैसे वीर सैनिकों के कारनामें इस युद्ध के दौरान कुछ इस तरह से सामने आए हैं कि इन सभी के साहस और शौर्य के बारे में सोचने भर से हर भारतीय का मस्तक गौरव से ऊंचा उठ जाता है। - "यह दिल मांगे मोर" का नारा देने वाले कैप्टन बत्रा की बहादुरी आज भी युवाओं को प्रेरित करती है। परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन बत्रा ने कारगिल युद्ध में अपनी बटालियन का नेतृत्व किया और प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे देश की रक्षा करते हुए हुतात्मा हो गए।
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने मात्र 19 वर्ष की आयु में घायल होते हुए भी चोटी पर चढ़ाई की और दुश्मनों को ढेर किया। इस युद्ध में उन्हें 15 गोलियां लगी थी, लेकिन योगेन्द्र यादव ने हिम्मत नहीं हारी और टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा फहराया। इसी तरह से राइफलमैन संजय कुमार अकेले ही दुश्मन की बंकर पर हमला कर जीत दिलाने वाले रणबांकुरे के रूप में सामने आए। इन्होंने अपनी असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया और प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
इसी तरह से इस करगिल युद्ध में वायु सेना के पांच हीरो भी सामने आए, जो दुशमन पर आसमान से आग बरसा रहे थे। इस युद्ध में एयर मार्शल रघुनाथ नाम्बियार वो व्यक्ति थे जिन्होंने सबसे पहले लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल किया था। दूसरे हीरो एयर मार्शल दिलीप पटनायक हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों को चोटियां खाली करने पर मजबूर कर दिया था। वायु सेना के तीसरे हीरों हैं ग्रुप कैप्टन श्रीपद टोकेकर, जिनके द्वारा मिराज 2000 के जरिए मुंथो धालो की पहाड़ियों पर पाकिस्तानियों के चिथड़े उड़ा दिए गए। वहीं, ग्रुप कैप्टन अनुपम बनर्जी वह नाम है, जिन्होंने मिग-27 फाइटर से चोटियों पर बैठे इस्लामिक जिहादियों को अच्छा सबक सिखाया था। वायुसेना के एक अन्य हीरो हैं विंग कमांडर पीजे ठाकुर, जो मिग 25 से दुश्मन की लोकेशन का पता लगाकर उन्हें नष्ट करने का काम कर रहे थे। इसी तरह से यहां युद्ध में बलिदान हुए हर सैनिक की कहानी अपने आप में प्रेरणादायक है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
वस्तुत: इस युद्ध के जरिए दुनिया ने देखा, कैसे भारतीय सेना के जवानों ने असंभव को संभव कर दिखाया था। ऊँचाई पर दुश्मन ने पहले से कब्जा जमा रखा था और हमारे सैनिक नीचे की ओर थे, लेकिन हौसला उनसे कहीं ऊँचा था। दुश्मन की मजबूत स्थिति को तोड़ने के लिए ज़रूरत थी ऐसे हथियार की, जो दूर बैठकर दुश्मन के ठिकानों पर सटीक वार कर सके और तब मैदान में उतरी बोफोर्स तोप। आज कारगिल युद्ध पर कई फिल्में और किताबें बनाई गई हैं, जैसे कि 'एलओसी कारगिल', 'शेरशाह', और 'कारगिल की अनकही कहानी' और आज ही के दिन हर वर्ष दिल्ली के इंडिया गेट पर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इसी तरह से द्रास (लद्दाख) स्थित कारगिल वॉर मेमोरियल पर हुतात्माओं को नमन करते हुए श्रद्धांसुमन अर्पित किए जाते हैं। देशभर में स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में देशभक्ति कार्यक्रम आयोजित होते हैं। सेना के जवान, पूर्व सैनिक, नागरिक और बच्चे तिरंगे के साथ विजय मार्च निकालते हैं। सेना के अधिकारी युवाओं को प्रेरित करने के लिए भाषण देते हैं और युद्ध की कहानियाँ साझा करते हैं।पूर्व सैनिकों को सम्मानित किया जाता है।
कहना होगा कि यह दिन सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि एक जज्बा है; देश के लिए मर-मिटने का, आत्मबलिदान का और अटूट विश्वास का। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारी स्वाधीनता और संप्रभुता की रक्षा के लिए हमारे वीर सिपाही हर संकट से लड़ने को तैयार हैं। साथ ही यह दिन यह भी दिखाता है कि भारत न केवल शांति में विश्वास रखता है, बल्कि जब बात अपने स्वाभिमान की हो, तो पीछे हटना उसकी फितरत नहीं। आज का भारत घर में घुसकर मारने में विश्वास रखता है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने अपने 527 से अधिक वीर सैनिकों को खोया, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। इन सभी हुतात्माओं को हर भारतवासी की ओर से आज शत-शत नमन है!