कुंवर चैन सिंह : प्राणों की बाजी लगाकर किया अंग्रेजो से युद्ध

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    22-Jul-2025
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chain singh
 
 
 
सुरेश हिन्दुस्तानी
 
 
भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए 1857 से पूर्व ही प्रयास किए जाने लगे थे। परतंत्र काल में भारत के कई देशभक्त राजाओं ने स्थान-स्थान पर विदेशी सत्ता के प्रति विद्रोह किया। देश के कोने-कोने में ऐसे अनेक ज्ञात-अज्ञात वीर हुए हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अंग्रेजों से लोहा लिया। भारत की वीरता के इतिहास का संकलन करने से ऐसे कई वीर सामने आए हैं, जिनकी सामान्यत: चर्चा नहीं होती या उनको भारत के इतिहास में स्थान नहीं मिल सका। राष्ट्र प्रेम की पराकाष्ठा कितनी प्रबल थी कि ऐसे वीर पुरुषों ने अंग्रेजों से युद्ध करते हुए मौत को गले लगाया, लेकिन कदम पीछे नहीं हटाया। उनके कदमों की गति देखकर अंग्रेज भी दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर होते दिखाई दिए। इतिहास गवाह है कि हमारे कई वीरों को अग्रेजों ने धोखे से मारा। मात्र कुछ लोगों को एक बड़ी अंगे्रजी फौज मारने के लिए आए, इसे धोखा ही कहा जाएगा। इसके बाद भी कई वीरों ने हार नहीं मानी। ऐसे ही एक बलिदानी वीर थे, मध्य प्रदेश की नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुँवर चैन सिंह। कुँवर चैन सिंह एक ऐसा नाम है जिसे आज भी बड़े गौरव के साथ लिया जाता है। ऐसे वीर पुरुषों के प्रति अब समाज भी जाग्रत हो रहा है।उनकी समाधि पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं,जिसमें स्थानीय नागरिकों के अलावा आसपास के गांवों का समाज भी सम्मिलित होता है। अब ये स्थल किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं हैं। इसी कारण इतिहास के पन्नों से छूट गए यह वीर अब सम्मान के साथ अंकित होने लगे हैं।
 
 
अंग्रेज यह जानते थे कि भारत में अपने देश से प्यार करने वाले बहुत से राजा हैं। अंग्रेजों ने पहले बड़े राजाओं को छोड़कर छोटे राज्यों को लक्ष्य बनाया। इसके बाद मात्र व्यापार करने के नाम पर आये चालाक अंग्रेजों ने जब छोटी रियासतों पर अपना अधिकार जमाने के लिए षड्यंत्र शुरू किए, तब इसके विरोध में अनेक स्थानों पर स्वर मुखरित होने लगे। छोटी रियासतों के राजा,अंग्रेजों की इस चाल को असफल करने के लिए इस खतरे पर विचार भी करते थे। लेकिन अंग्रेजों ने उन राज्यों में फूट डालो और राज करो की नीति पर कार्य किया और उन्होंने हर राज्य में कुछ दरबारी खरीद लिये थे, यही दरबारी उन्हें राज्य में होने वाले कार्य की सूचना देते थे। भोपाल के समीप नरसिंहगढ़ पर भी अंग्रेजों की गिद्ध दृष्टि थी। उन्होंने कुँवर चैन सिंह को प्रस्ताव भेजा कि वह अपने आपको अंग्रेजों के हवाले कर अंगे्रजों की अधीनता स्वीकार कर ले, लेकिन वीर चैन सिंह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। अब अंग्रेजों ने कूटनीति खेलते हुए नरसिंहगढ़ राज्य के दो मंत्रियों आनन्दराव बख्शी और रूपराम वोहरा को अपने पाले में कर लिया। एक बार की बात है इन्दौर के होल्कर राजा ने अपने आसपास के सब छोटे राजाओं की बैठक बुलाई। महाराज चैन सिंह भी उसमें गये थे। यह सूचना दोनों विश्वासघाती मंत्रियों ने अंग्रेजों तक पहुँचा दी। उस समय जनरल मेंढाक ब्रिटिश शासन की ओर से राजनीतिक एजेण्ट नियुक्त था। उसने नाराज होकर चैन सिंह को सीहोर बुलाया। चैन सिंह अपने दो विश्वस्त साथियों हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ के साथ उससे मिलने गये। ये दोनों सारंगपुर के पास ग्राम धनौरा निवासी सगे भाई थे। चलने से पूर्व चैन सिंह की माँ ने इन्हें राखी बाँधकर हर कीमत पर बेटे के साथ रहने की शपथ दिलायी। कुँवर चैन सिंह का प्रिय कुत्ता शेरू भी साथ गया था।
 
 
जनरल मेंढाक चाहता था कि चैन सिंह पेंशन लेकर सपरिवार काशी रहें और राज्य में उत्पन्न होने वाली अफीम की आय पर अंग्रेजों का अधिकार रहे, पर वे किसी मूल्य पर इसके लिए तैयार नहीं हुए। इस प्रकार यह पहली भेंट निष्फल रही। कुछ दिन बाद जनरल मेंढाक ने चैन सिंह को सीहोर छावनी में बुलाया। इस बार उसने चैन सिंह और उनकी तलवारों की तारीफ करते हुए एक तलवार उनसे ले ली। इसके बाद उसने दूसरी तलवार की तारीफ करते हुए उसे भी लेना चाहा। चैन सिंह समझ गया कि जनरल उन्हें नि:शस्त्र कर गिरफ्तार करना चाहता है। उन्होंने आव देखा न ताव, जनरल पर हमला कर दिया। फिर क्या था, खुली लड़ाई होने लगी। जनरल तो तैयारी से आया था। पूरी सैनिक टुकड़ी उसके साथ थी, पर कुँवर चैन सिंह भी कम साहसी नहीं थे। उन्हें अपनी तलवार, परमेश्वर और माँ के आशीर्वाद पर अटल भरोसा था। दिये और तूफान के इस संग्राम में अनेक अंग्रेजों को यमलोक पहुँचा कर उन्होंने अपने दोनों साथियों तथा कुत्ते के साथ वीरगति पायी। यह घटना लोटनबाग, सीहोर छावनी में 24 जुलाई 1824 को घटित हुई थी। स्वतंत्रता संग्राम से 33 वर्ष पूर्व इस घटना को स्वतंत्रता की पहली लड़ाई भी माना जाता है। इसी कारण महाराजा चैन सिंह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माना जाता है। चैन सिंह के इस बलिदान की चर्चा घर-घर में फैल गयी। उनकी याद में सीहोर में प्रति वर्ष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया जाता है। सीहोर में कुंवर चैन सिंह का एक शहीद स्मारक भी है।
 
 
उन्हें अवतारी पुरुष मान कर आज भी ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। घातक बीमारियों में लोग नरसिंहगढ़ के हारबाग में बनी इनकी समाधि पर आकर एक कंकड़ रखकर मनौती मांगते हैं। इस प्रकार कुँवर चैन सिंह ने बलिदान देकर भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया। आज ऐसे वीर महापुरुषों को देश के आम जन के सामने लाने की आवश्यकता है। क्योंकि यही वास्तविक स्वतंत्रता सेनानी हैं। और यही देश के आदर्श हैं।