21 जून योग दिवस: तन मन और जीवन को स्वस्थ्य रखने के संकल्प का दिन

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    21-Jun-2025
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भारत की पहल पर विश्वभर  में आयोजित अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन भारतीय ज्ञान परंपरा की वैश्विक मान्यता का दिवस है। योग का संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्म नियंत्रण, सामाजिक सेवा, समरसता और आध्यात्मिक जागरण से भी जुड़ा है। यह शरीर और मन मस्तिष्क के साथ संपूर्ण विश्व से तादात्म्य स्थापित कर जीवन को समृद्ध बनाने के संकल्प का दिन है।


-रमेश शर्मा
21 जून यानी आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। आरोग्य रहकर सृष्टि के विविध रहस्यों से एकाकार होने का माध्यम है योग। 2015 में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विश्व नेतृत्व के समक्ष संयुक्त राष्ट्र के मंच पर इस अद्भुत विधा को प्रस्तावित किया था। प्रारंभिक चर्चा और बैठकों के बाद संयुक्त राष्ट्रसंघ ने विशेषज्ञों से भी परामर्श किया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महा सचिव की सहमति से मोदी जी ने 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और वर्ष में एक दिन योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव पारित हुआ और 21 जून 2015 को पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आयोजित हुआ। धीरे-धीरे पूरी दुनिया योग से जुड़ी।
180 से अधिक देशों ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया। अनेक देशों ने तो नियमित अभ्यास और शिक्षण की व्यवस्था भी की है। योग दिवस के लिए 21 जून का निर्धारण भी सामान्य अथवा किसी व्यक्ति विशेष के स्मरण का दिन नहीं है। इस तिथि का निर्धारण भी वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर निश्चित हुआ है। 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। इसका सीधा प्रभाव सूर्य से धरती पर आने वाले प्रकाश और तापमान के संतुलन से पड़ता है।
सूर्य की विभिन्न स्थितियों में उत्सर्जित प्रकाश और ऊर्जा में अंतर आता है। इसे हम प्रति क्षण बदलते तापमान से समझ सकते हैं। यह मनुष्य के जीवन पर प्रभाव डालती है। योगाभ्यास व्यक्ति के अवचेतन की चेतना को सूर्य की केन्द्र भूत चेतना से एकाकार करने का प्रयास करता है जो धरती पर जीवन को पल्लवित करती है। सूर्य से ऊर्जा, ऊष्मा और प्रकाश के सहारे ही व्यक्ति अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का विकास करता है। जिस प्रकार सूर्य में अनंत ऊर्जा होती है। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति में भी असीम प्रतिभा होती है। लेकिन इसके माध्यम से वह नई ऊंचाइयाँ तभी प्राप्त कर सकता है जब स्वस्थ हो, मनोबल संपन्न हो, अपनी प्रतिभा की मौलिकता के अनुरूप जीवन यात्रा का मार्ग निर्धारित करता हो।
योगाभ्यास उसकी इस मौलिक प्रतिभा और दक्षता को भी उन्नत नहीं करता उसके स्वभाव में संतुलन एवं आत्मविश्वास की वृद्धि भी करता है। सैकड़ों वर्षों तक भारतीय ऋषि मनीषियों ने शोध साधना और अनुसंधान के बाद योग शैली का आविष्कार किया। जिससे व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समन्वित विकास कर सके। आधुनिक विज्ञान ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा की इस विशेषता को स्वीकार किया है कि भारतीय दर्शन में केवल भौतिक विकास के सूत्र भर नहीं हैं अपितु इनमें अभौतिक और सृष्टि के अदृश्य आयामों के प्रभाव और उनसे एकीकृत होकर जीवन को उन्नत बनाने के सूत्र भी हैं। इसीलिए एक समय पूरे संसार के जिज्ञासु अध्ययन के लिये भारत आते थे। इसका प्रमाण ढाई हजार वर्ष पहले भारत के तक्षशिला, नालंदा और उज्जैन सहित दर्जन भर विश्वविद्यालयों के खंडहरों को देखने दुनिया भर के सैलानियों से पता चलता हैं। इसीलिए संसार ने भारत को विश्व गुरु माना था।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपना पद भार संभालने के पहले दिन से भारत के गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करने के संकल्प के साथ अपना कार्य आरंभ किया है। उनकी इस संकल्प यात्रा का पहला आयाम योग की पुनः प्रतिष्ठा है। यद्यपि व्यक्तिगत स्तर पर संसार के विभिन्न देशों से लोग योग सीखने भारत आते रहे हैं। भारतीय योग गुरुओं को भी आमंत्रण मिलते रहे हैं। लेकिन इसकी सार्वजनिक स्तर मान्यता देने का काम नरेंद्र मोदी ने किया है।
रोग आ जाने पर औषधियों से उपचार करना तो पूरा संसार जानता है। लेकिन आंतरिक शक्ति जाग्रत करके अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को इतना सक्षम बनाना कि रोग आये ही नहीं, यह अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण है। यह क्षमता योगाभ्यास में है। योगाभ्यास केवल आरोग्य ही नहीं देता वह व्यक्ति की समस्त शारीरिक क्षमताओं का विकास भी करता है। जिससे वह जीवन में आगे बढ़ सके। आज इस तथ्य को पूरे संसार ने स्वीकार किया और योग को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
भारतीय ज्ञान परंपरा में यौगिक विधा कितनी प्राचीन है, यह कहा नहीं जा सकता। इतिहास में पीछे जहाँ तक दृष्टि जाती है, योग का विवरण मिलता है। गीता, महाभारत, उपनिषद और आरण्यक ग्रंथ ही नहीं चारों वेदों में भी योग का उल्लेख है। योग शब्द के दो अर्थ हैं : एक सामान्य और दूसरा संस्कृत के भाषा विज्ञान की व्याख्या। "योग" का सामान्य अर्थ जोड़ना होता है। यह सूर्य के प्रकाश और ऊर्जा के माध्यम से प्रकृति से जुड़ने की विधा का नाम है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से इसका अर्थ और व्यापक है। जो योग के सामान्य अर्थ को और विस्तार देता है तथा विधा को व्यापक बनाता है।
यह शब्द संस्कृत की "युज" धातु से बनता है। युज धातु में "यु" पहले आता है। "युग" और "युगान्तकारी" जैसे शब्द इसी से बनते हैं। फिर प्रत्यय के रूप में "ज" जुड़ता है। "ज" से जन्म और जीवन बनता है। जन्म के बाद जीवन को युगान्तकारी बनाने का संदेश इस युज धातु में है। इसी "युज" धातु से यजुर्वेद शब्द बना है। जो विद्यार्थी किसी सद्गुरु के माध्यम से वैदिक अध्ययन आरंभ करते हैं उन्हें सबसे पहले यजुर्वेद के ज्ञान से ही विद्या आरंभ की जाती है। साधना से आत्म कोष की जाग्रति और सृष्टि की अनंत ऊर्जा से एकात्म होने के सूत्र यजुर्वेद में है। और आत्म जाग्रति की यात्रा आरंभ करने की पहली सीढ़ी योग ही है। इसके लिये मन बुद्धि विचारों के समन्वय और संतुलन के साथ आरोग्य होना आवश्यक है।
यदि हम साधना से दूर होकर केवल संसार की यात्रा करें तो भी मन बुद्धि विचारों के संतुलन के साथ आरोग्य होना आवश्यक है। इसलिए भारतीय मनीषियों ने योगाभ्यास के लिये प्रत्येक नागरिक को प्रेरित किया। इसका संबंध किसी धर्म विशेष से अथवा पंथ विशेष से नहीं है। यह मानव मात्र के आरोग्य के लिये है। सूर्य की ऊर्जा और ऊष्मा से पूरे संसार का जीवन चलता है। उस ऊर्जा और ऊष्मा का अपनी क्षमता के अनुरूप अधिकतम आधार प्राप्त करने का माध्यम ही योग है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 की थीम

प्रकृति और प्राणी का जीवन उभय पक्षीय है। जिस प्रकार प्रकृति का परिवर्तन जीवन को प्रभावित करता है उसी प्रकार प्राणियों का आचरण प्रकृति को प्रभावित करता है। इसे हम मौसम के परिवर्तन और वर्तमान स्थिति में मानव के प्रगति आयाम से समझ सकते हैं। मौसम परिवर्तन हमारे जीवन पर कैसा प्रभाव डालते हैं इससे हम सब अवगत हैं। उसी प्रकार मनुष्य की प्रगति ने प्रकृति को कितना प्रदूषित किया है, इसका संकट भी अब किसी से छिपा नहीं है। इसके लिये संसार के अन्य प्राणी नहीं केवल मनुष्य जिम्मेदार है। उसने अपना जीवन भी संकट में डाला और पूरी प्रकृति को भी संकट में डाल दिया है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और सरकारें इस संकट से चिंतित हैं।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर योग दिवस के लिये इस वर्ष एक विशेष थीम की घोषणा की है। इस वर्ष योग दिवस पर "योगा फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ" अर्थात 'एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग" का संकल्प लिया जाए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने यह आह्वान मई माह में अपने "मन की बात" संबोधन में भी किया और पूरे विश्व से भी आह्वान किया। इस थीम का विश्व के अधिकांश देशों ने स्वागत भी किया। स्वाभाविक रूप से यदि हमें स्वस्थ रहना है तो प्रकृति को भी स्वस्थ रखना होगा। उभय पक्षीय इस स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही इस थीम की घोषणा की है।
यौगिक क्रियाएँ
यौगिक क्रियाओं को कुल आठ भागों में विभाजित किया गया हैं। जिन्हें "अष्टांग योग" कहा गया है। इनमें यम, नियम, संयम, आहार, आसन, ध्यान, धारणा और समाधि है।
योगाभ्यास के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति के मन और चित्त में एकाग्र होकर किसी भी प्रकार का भटकाव न हो, उसका आहार अर्थात भोजन भी शरीर की आवश्यकता के अनुरूप हो। हम जो भी आहार लेते हैं वह केवल शरीर की आवश्यकता की पूर्ति ही नहीं करता हमारी चित्त वृत्ति को भी प्रभावित करता है इसलिये हमारा आहार भी उचित होना चाहिए। आसन में योगाभ्यास होता है । इसके लिये सूर्योदय और सूर्यास्त का संध्याकाल उचित माना गया है।
ध्यानस्थ होने के लिये चित्त और शरीर के विभिन्न चक्र में एकाग्रता आवश्यक है। धारणा उस प्रतीक को कहा गया है जिसके माध्यम से शरीर, मन, बुद्धि और चित्त वृत्ति सब एकाग्र होते हैं और अंत में समाधि की आवश्यकता। यह स्थितप्रज्ञ स्थिति है। इसमें अवचेतन की ऊर्जा जाग्रत होकर चमत्कारिक शक्ति प्रदान करती है।
योग के विविध आयाम

मुख्यतः योग के कुल पांच आयाम होते हैं। इनमें चार के लिये प्रयास किया जाता है लेकिन पाँचवां आयाम परिस्थितिजन्य होता है। इन्हें हम कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, राज योग और भाव योग के नाम से जानते हैं। हमारे कर्म अथवा कार्य या अभ्यास से जो क्रिया होती है, उसे कर्मयोग कहा जाता है। इसमें करणीय कार्य के प्रति पूरी निष्ठा और समर्पण होता है।
दूसरा भक्ति योग है। यह सात्विक प्रेम और समर्पण पर केंद्रित होता है। यह ईश्वर के प्रति, गुरु के प्रति, माता-पिता अथवा किसी भी आदर्श पात्र के प्रति भक्ति हो सकती है।
तीसरा ज्ञान योग है यह शरीर, इन्द्रियों और मन से बुद्धि के विकास पर केंद्रित होता इसमें व्यक्ति अपनी ज्ञान वृद्धि के लिये अध्ययन, अभ्यास, शिक्षण, प्रशिक्षण और सत्संग करता है।
चौथा राज योग है। यह कठोर साधना का आयाम है। आत्म विकास के लिये व्रत, उपवास, योगासन, ध्यान, प्रणायाम से लेकर समाधि तक की साधना इसी योग के अंतर्गत मानी जाती है।
पाँचवां भाव योग है। यह परिस्थितिजन्य होता है। मनुष्य की पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ सदैव सक्रिय रहती हैं। देखकर, सुनकर, छूकर अथवा स्वाद के बाद व्यक्ति जिन भावों से जुड़ता है वह भाव योग है। इसमें हर्ष भी हो सकता है और विषाद भी। जैसे महाभारत युद्ध के लिये एकत्र हुए अपने परिजनों को देखकर अर्जुन के मन में जो भाव उत्पन्न हुए उसे विषाद योग कहा गया।
वर्तमान परिस्थिति में योग दिवस का महत्व

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन एक ओर भारतीय ज्ञान की समृद्धि की ओर पूरे संसार का ध्यान आकर्षित करता ही है। वहीं प्रगति के लिये वर्तमान वैश्विक स्पर्धा में भी इसका महत्व और बढ़ गया है। योगाभ्यास व्यक्ति को समाज, राष्ट्र, और पूरे विश्व ही नहीं संपूर्ण सृष्टि को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता है।
योगाभ्यास से शरीर स्वस्थ रहता है और मन शांत रहता है। इसके साथ शरीर और मन के बीच समन्वय भी रहता है। शरीर और मन के समन्वय से बुद्धि प्रखर होती है। निरन्तर योगाभ्यास करने वाले तनाव, अवसाद जैसे मनोरोगों से दूर रहते हैं वहीं उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा जैसे शारीरिक रोगों से भी मुक्त रहते हैं। आज जीवन शैली केवल प्रकृति को ही प्रदूषित नहीं कर रही अपितु मनुष्य को अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों से जकड़ रही है। रोज किसी नए रोग के फैलने का समाचार आता है। जब तक रोग के उपचार खोजे जाते हैं तब तक अनेक प्राणी अपने प्राण गंवा चुके होते हैं। इसके अतिरिक्त आधुनिक युग की उपचार प्रणाली भी बहुत मंहगी हो गई है। कुछ बीमारियाँ तो ऐसी हैं जिनमें जीवन भर की कमाई चली जाती है।
मनुष्य के शरीर में किसी भी रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है। यदि व्यक्ति जागरूक है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता सक्षम है तो किसी रोग का मुकाबला सरलता से किया जा सकता है। अग्रिम सावधानी आवश्यक है। इसलिए आज के संदर्भ में योग अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए पूरी दुनिया ने इसे माना और 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के माध्यम से जाग्रति अभियान आरंभ किया है।