भारत की पहचान हिंदू है, हिंदू की पहचान भारत है — धनराज जी

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    29-Dec-2025
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28 अक्टूबर 2025 को सरस्वती शिशु मंदिर, सुभाष नगर, मुरैना में आयोजित हिंदू सम्मेलन में समाज, संस्कृति, पर्यावरण और राष्ट्र निर्माण से जुड़े विषयों पर विस्तृत विचार-विमर्श हुआ। सम्मेलन का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करते हुए समरस, स्वाभिमानी और कर्तव्यनिष्ठ भारत के निर्माण की दिशा में जन-जागरण करना रहा।
 
कार्यक्रम की शुरुआत सामाजिक समरसता के संदेश के साथ हुई। वक्ता क्षमा कौशिक ने कहा कि “एक पनघट और एक मरघट पर सभी भेद समाप्त हो जाते हैं, यही समरसता का वास्तविक स्वरूप है।” उन्होंने कर्नाटक के उडुपी स्थित श्री कनकदास जी के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि मंदिर में प्रवेश से रोके जाने के बाद उन्होंने खिड़की से दर्शन किए और आज भी उसी खिड़की से दर्शन की परंपरा जीवित है, जो सामाजिक समरसता का सशक्त उदाहरण है।
 
कुटुंब प्रबोधन और संस्कारों पर बल देते हुए क्षमा कौशिक ने कहा कि प्रत्येक परिवार में ॐ और स्वस्तिक जैसे सांस्कृतिक प्रतीक, तुलसी का पौधा, स्वदेशी परिधान और मातृभाषा में संवाद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भोजन के समय मोबाइल फोन से दूरी बनाकर पारिवारिक चर्चा होनी चाहिए। परिवार के साथ निकटवर्ती स्थलों का भ्रमण, निरंतर संवाद और प्रातःकाल धरती माता के चरण स्पर्श जैसे संस्कार जीवन में अपनाने चाहिए।
 
नागरिक कर्तव्यों और पर्यावरण संरक्षण पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि लाल बत्ती पर रुकना, रेल यात्रा में टिकट लेना, पर्यावरण प्रदूषण रोकना, पॉलीथिन का उपयोग न करना और जल का सीमित प्रयोग करना प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व है।

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कार्यक्रम में हिंदुत्व को एक जीवन पद्धति के रूप में रेखांकित किया गया। उपाध्याय जी ने कहा कि “संगठित हिंदू समाज ही समर्थ भारत की नींव है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदुत्व कोई पूजा पद्धति या जाति नहीं, बल्कि एक जीवन दृष्टि है, जिसका मूल सूत्र “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” है। उन्होंने प्रकृति के दोहन को आवश्यकता तक सीमित रखने पर बल देते हुए कहा कि हिंदू विचारधारा मूलतः वैज्ञानिक है।
 
मुख्य वक्ता धनराज जी ने सम्मेलन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि “यदि भारत शरीर है तो हिंदू उसकी आत्मा है।” उन्होंने कहा कि हिंदू और भारत की पहचान एक-दूसरे से अविभाज्य है और यह परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। उन्होंने धर्म के चार स्तंभ - सत्य, करुणा, शुचिता और तप का उल्लेख करते हुए कहा कि जब हिंदू जागेगा, तब विश्व जागेगा। हिंदुत्व न मंदिर तक सीमित है, न किसी जाति तक, बल्कि यह एक सनातन चेतना है।
 
धनराज जी ने इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि मंदिर तोड़े गए, पुस्तकालय जलाए गए, लेकिन हिंदुत्व समाप्त नहीं हुआ क्योंकि वह सनातन है। उन्होंने हिंदू समाज में स्वाभिमान और संगठन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हमें संगठित होकर जीना सीखना होगा।
 
वेदव्यास और तुलसीदास के विचारों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “परहित से बड़ा कोई धर्म नहीं और पीड़ा से बड़ा कोई पाप नहीं।” उन्होंने यह भी कहा कि हिमालय से हिंद महासागर तक रहने वाले सभी लोग हिंदू हैं। डॉ. हेडगेवार के विचारों का संदर्भ देते हुए उन्होंने भारत के गुलाम होने के तीन प्रमुख कारण गिनाए पहला समाज की आत्मविस्मृति, दूसरा संगठन और अनुशासन का अभाव तथा तीसरा स्वाभिमान की कमी।
 

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उन्होंने आह्वान किया कि आज आवश्यकता है स्वदेशी को अपनाने की, अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करने की तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने की। सम्मेलन में यह भी कहा गया कि संघ ने उपेक्षा, विरोध और संघर्ष के अनेक दौर देखे हैं, फिर भी वह निरंतर आगे बढ़ता रहा है। भविष्य के भारत के निर्माण के लिए पाँच प्रमुख परिवर्तनों को आधार बनाकर कार्य करने का आह्वान किया गया।
 
कार्यक्रम के निष्कर्ष में यह संदेश दिया गया कि हिंदुत्व मानवता, करुणा, प्रकृति संरक्षण और विश्व कल्याण पर आधारित एक सनातन विचारधारा है। संगठित, स्वाभिमानी और संस्कारयुक्त समाज ही भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकता है।
 
कार्यक्रम का संचालन श्री हरेंद्र परमार ने किया तथा आभार प्रदर्शन बस्ती प्रमुख श्री भोजराज सिंह तोमर ने किया। कार्यक्रम में मंच पर सुभाष बस्ती के सभी समाजों के प्रमुखों की उपस्थिति भी रही।