आलोक बघु श्रीवास्तव
वैसे तो राष्ट्रोत्थान न्यास, ग्वालियर के तत्वावधान में समय-समय पर व्याख्यान माला कार्यक्रम निरंतर आयोजित होते रहते हैं, किन्तु कुछ कार्यक्रम ऐसे होते हैं जो श्रवणकर्ताओं के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ उन्हें उत्कृष्ट जीवन जीने की राह भी प्रशस्त कर जाते हैं। इन्हीं प्रयासों में से एक रहा न्यास द्वारा दिनांक 30 सितम्बर से 02 अक्टूबर 2022 तक आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान माला कार्यक्रम, जिसमें मुख्य रूप से ‘हिन्दू दर्शन में व्यक्तित्व विकास’ विषय पर प्रख्यात चिंतक एवं विद्वान वक्ता माननीय भैयाजी जोशी जी का प्रबोधन अविस्मरणीय और समाज को दिशा दिखाने वाला रहा। राष्ट्रोत्थान न्यास, ग्वालियर ने इस व्याख्यान माला को एक पुस्तक के रूप में संकलित कर व्यक्ति और समाज के विकास हेतु एक अमूल्य धरोहर के रूप में हम सभी के लिए उपलब्ध कराया है।
पुस्तक का मुख्य सूत्र यह इंगित करता है कि जैसे किसी भवन के लिए मजबूत नींव आवश्यक होती है, वैसे ही उस पर खड़ा भवन भी सुदृढ़ होना चाहिए। यहाँ नींव का अर्थ हमारे विचारों की सशक्त बुनियाद से है, और उस पर निर्मित समाज उतना ही दृढ़ और सक्षम होना चाहिए। जिस प्रकार कोई भवन अनेक अनुकूल और प्रतिकूल जलवायु परिवर्तनों को सहते हुए धीरे-धीरे जर्जर होने लगता है, उसी प्रकार समाज का भी समय के साथ क्षरण होता है। इसलिए उसके पुनर्निर्माण के लिए निरंतर चिंतन, अध्ययन और आत्ममंथन आवश्यक है। यही सतत प्रयास समाज का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
हिन्दू समाज सदैव अनेक विरोधी तत्वों और आक्रमणों के बावजूद निरंतर प्रवाहित रहा है तथा हर बार नए सामर्थ्य और विश्वास के साथ खड़ा हुआ है। यही उसके सामर्थ्य का वास्तविक प्रकटीकरण है। समाज में निहित विविध संस्कृतियाँ, परंपराएँ, उत्सव और जीवन शैलियाँ निरंतर समाज में सकारात्मकता का प्रवाह बनाए रखती हैं।
इस पुस्तक की मूल आत्मा इस उद्धरण में निहित है कि महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों में दो विशेष बातें कही हैं: पहली, परोपकार करना पुण्य है और दूसरी, दूसरों को दुख देना पाप है।
पुस्तक में एक अन्य उदाहरण उस भारतीय व्यक्ति का है, जो विदेशों में भ्रमण के दौरान एक परिचित से हुई बातचीत में भारतीय व्यक्तित्व की विशेषताओं पर प्रकाश डालता है। उसके अनुसार, “भारत जैसा व्यक्ति दुनिया में कहीं नहीं मिलता। वह परिस्थितियों से संघर्ष करता है, जीवन में किसी प्रकार के समझौते नहीं करता। ऐसे मनुष्य संसार में दुर्लभ हैं, जो प्रवाह के साथ दिशा भी बदल लेते हैं, शैली भी, और जीवन मूल्य भी देकर जाते हैं।” यही कारण है कि हमारे समाज का जीवन विश्व के लिए प्रेरणास्रोत है।
हिन्दू दर्शन से प्रभावित और उसी से उत्पन्न हुए अनेक व्यक्तित्वों में समर्थ रामदास का उदाहरण उल्लेखनीय है, जिनकी साधना, निष्ठा और परिश्रम ने उन्हें महापुरुष बनाया। वे आज भी समाज को दिशा दे रहे हैं। इसी तरह रामकृष्ण परमहंस, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले तथा अनेक अन्य महापुरुषों के जीवन उदाहरण इस पुस्तक को प्रेरणादायक बनाते हैं। यह कृति समाज में हिन्दू दर्शन से व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया की राह खोलती है और जनमानस को उसके आंतरिक स्वरूप से जोड़ते हुए पूर्णता की ओर अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त करती है।