माणिकचंद्र वाजपेयी : निर्भीक कलम के समग्र राष्ट्रनिर्माता

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    07-Oct-2025
Total Views |

Manikchandra Vajapayee ji
 
 

डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे

 

भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में कुछ ऐसे नाम अमिट हैं, जिन्होंने कलम को केवल अभिव्यक्ति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण का शस्त्र बनाया। उन्हीं में से एक नाम है माणिकचंद्र वाजपेयी जो एक निर्भीक, निष्पक्ष और राष्ट्रभक्त पत्रकार, जिनकी लेखनी ने समाज, संस्कृति और राजनीति के हर आयाम को राष्ट्रीय दृष्टि से देखा और परखा।

 

राष्ट्रभाव से ओतप्रोत पत्रकारिता

 

माणिकचंद्र वाजपेयी जी की पत्रकारिता केवल सूचना देने तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह राष्ट्र चेतना की वाहक थी। उनका लेखन उस दौर में हुआ जब विचारधाराओं की टकराहट और राजनीतिक स्वार्थों के बीच पत्रकारिता का चरित्र तय हो रहा था। परंतु माणिकचंद्र वाजपेयी जी ने अपनी कलम को सदैव भारत की एकता, अखंडता और आत्मनिर्भरता के प्रति समर्पित रखा।

 

उनके लेखों में यह स्पष्ट दृष्टि दिखाई देती है कि भारत के विकास की नींव सांस्कृतिक चेतना और स्वदेशी भावना में निहित है।

 

निष्पक्षता और निर्भीकता का आदर्श

 

माणिकचंद्र वाजपेयी जी ने किसी भी सत्ता या संगठन के प्रभाव में कभी नहीं लिखा। वे सत्ता की गलत नीतियों पर कठोर आलोचना करते थे, और साथ ही समाज में व्याप्त अंधानुकरण, जातीय असमानता और नैतिक पतन के विरुद्ध भी मुखर रहते थे।

 

उनका प्रसिद्ध संपादकीय लेख “काग़ज़ पर नहीं, मन में लिखो भारत” (प्रकाशित: नवभारत, 1980 के दशक में) उनके विचारों की गहराई को दर्शाता है। इसमें उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और राजनीति के भारतीयकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था।

 

समग्रता का जीवन दर्शन


Manikchandra Vajapayee ji 1

 
माणिकचंद्र वाजपेयी जी का जीवन केवल पत्रकारिता तक सीमित नहीं था, वह एक विचार आंदोलन की तरह था। वे सदैव कहा करते थे कि विकास की समग्रता तब ही संभव है, जब व्यक्ति, समाज और शासन तीनों की दिशा राष्ट्र के हित में हो।”

 

उनके लेख “गांवों की ओर लौटो”, “स्वदेशी से स्वावलंबन तक”, और “समरसता : समाज का नया सूत्र” ने भारत के ग्रामीण जीवन, आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक संतुलन को नई दृष्टि दी

 

विकास और मूल्य का संतुलन

 

माणिकचंद्र वाजपेयी के स्तंभों की एक प्रमुख विशेषता थी आधुनिकता और परंपरा का संतुलन। उन्होंने अपने नियमित स्तंभ “देश के मन की बात” (प्रसारित स्तंभ श्रृंखला, 19851995) में विज्ञान, तकनीक और नैतिकता के संगम को भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया।

 

उन्होंने लिखा था प्रगति का अर्थ तभी सार्थक है जब वह मनुष्य को अपनी जड़ों से न तोड़े, बल्कि उन्हें और गहराई से सींचे।”

 

पत्रकारिता के आदर्श और प्रेरणा


Manikchandra Vajapayee ji 2

 
माणिकचंद्र वाजपेयी जी के संपादन से कई स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय दृष्टि प्राप्त की। विशेष रूप से “लोकदर्शन”, “सप्ताहिक जनसंवाद” और “राष्ट्रवाणी” जैसी पत्रिकाओं में उनके संपादकीय लेख “पत्रकार की आत्मा और जिम्मेदारी”, “सत्य की कीमत”, तथा “राष्ट्रहित से बड़ा कोई विषय नहीं” लंबे समय तक चर्चा में रहे।

 

उनका लेखन पत्रकारिता को केवल पेशा नहीं, बल्कि संस्कार के रूप में स्थापित करता था। वे कहा करते थे कलम बिके तो विचार मरते हैं, और विचार मरें तो राष्ट्र कमजोर होता है।”

 

सांस्कृतिक चेतना के संवाहक

 

माणिकचंद्र वाजपेयी जी भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों के सजग प्रहरी थे। उनके लेख “भारतीयता की पुनर्खोज”, “संस्कार और संवाद का भारत”, तथा “धर्म नहीं, कर्तव्य है हमारी पहचान” आज भी सांस्कृतिक पत्रकारिता के आदर्श उदाहरण हैं।

 

उन्होंने भारतीय अध्यात्म और पत्रकारिता के समागम को एक नई दृष्टि दी कलम भी साधना है, और सत्य उसकी आराधना।”

 

उनके लेखन की दिशा और प्रभाव

 

माणिकचंद्र वाजपेयी जी की लेखनी केवल अखबारों के पन्नों तक सीमित नहीं रही। उन्होंने जनजागरण के अनेक अभियानों का वैचारिक मार्गदर्शन किया। उनके लेखों ने अनेक युवा पत्रकारों को प्रेरित किया कि वे पत्रकारिता को राष्ट्रसेवा के रूप में देखें, न कि बाजार के व्यवसाय के रूप में।

 

उनके लेखन की प्रमुख विषयवस्तुएँ थीं जैसे स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत, शिक्षा में भारतीय दृष्टि, ग्रामीण विकास और सामाजिक समरसता, सनातन संस्कृति और मीडिया की भूमिका, नैतिक राजनीति और उत्तरदायी लोकतंत्र, कलम का सनातन पुजारी

 

माणिकचंद्र वाजपेयी जी भारतीय पत्रकारिता के उस युग के प्रतिनिधि थे, जब पत्रकारिता विचार, चरित्र और संवेदना का संगम थी। उन्होंने लिखा, जिया और जगा दिया - राष्ट्र का आत्मविश्वास।

 

आज जब पत्रकारिता बाज़ारवाद और वैचारिक पक्षपात से जूझ रही है, तब माणिकचंद्र वाजपेयी जी की निर्भीकता, निष्पक्षता और समग्र दृष्टि हमें यह याद दिलाती है कि पत्रकारिता केवल व्यवसाय नहीं, यह राष्ट्रसेवा का व्रत है।”

 

उनकी कलम का प्रत्येक शब्द भारतीयता का घोष है। उनकी कलम, जो झुकी नहीं, बिकी नहीं, थमी नहीं बस राष्ट्र के लिए चली।