दशहरा : समरस समाज, सशक्त संगठन से सफलता के संदेश का महापर्व

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    02-Oct-2025
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Dussehra
 
 
रमेश शर्मा 
 

दशहरा केवल त्यौहार या मनोरंजन का उत्सव नहीं है। यह समाज जीवन में उच्चतम आदर्शों की स्थापना के संकल्प का पर्व है। दशहरे के माध्यम से कुशल नेतृत्व, सशक्त सामाजिक संगठन, सात्विक मूल्यों की प्रतिष्ठा और सत्य के आधार पर राष्ट्र निर्माण का संदेश दिया गया है। यह त्यौहार मनाने के तरीके और घोषवाक्य "असत्य पर सत्य की विजय" से स्पष्ट होता है।

 

दशहरा महापर्व अश्विन माह शुक्ल पक्ष की दशमी को आता है। इससे पहले नौ दिन नवरात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है और दसवें दिन, अर्थात दशहरे को शक्ति पूजा के साथ पर्व का समापन होता है। इस पर्व के दो नाम हैं, दशहरा और विजयादशमी। पूरे भारत में मनाए जाने वाले इस पर्व को विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है, किंतु सबमें एक तत्व समान है, शक्ति पूजा की प्रमुखता।

 

दशहरे का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों है। नवरात्रि के आयोजन भी प्रांतों के अनुसार अलग-अलग रूप में होते हैं। उत्तर और मध्य भारत में नौ दिन माँ दुर्गा की झाँकियाँ सजाई जाती हैं और रामलीला का आयोजन होता है। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा और असम में पूरे नौ दिन दुर्गा पूजा होती है, जहाँ रामलीला की परंपरा अपेक्षाकृत कम है। दक्षिण भारत में सबसे प्रसिद्ध दशहरा कर्नाटक का ‘मैसूर दशहरा’ है, जो भारत ही नहीं विदेशों में भी ख्याति प्राप्त है। विदेशी पर्यटक भी इस अवसर को देखने आते हैं। यहाँ रामजी की रथयात्रा और भव्य शोभायात्रा विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। इसी प्रकार नवरात्रि में गुजरात का गरबा और डांडिया नृत्य अब केवल गुजरात तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश और विश्वभर में लोकप्रिय हो चुका है।

 

विभिन्न तरीकों से मनाए जाने के बावजूद इस उत्सव का आदर्श वाक्य "असत्य पर सत्य की विजय" हर प्रदेश में समान रूप से उद्घोषित होता है।

 

महत्व और कथानक

 

इस महापर्व का महत्व हम दो तरह से समझ सकते हैंपुराण कथाओं से और उत्सव के आयोजन से। जैसे इसके दो नाम हैं, वैसे ही पुराणों में इससे संबंधित दो कथाएँ मिलती हैं। दोनों ही महासंग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं।

 

पहली और सर्वाधिक लोकप्रिय कथा है भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध की। यह युद्ध नौ दिन चला और दशमी के दिन श्रीराम को विजय मिली। दूसरी कथा है माता दुर्गा और महिषासुर के महासंग्राम की, जो नौ दिन चला और दशमी के दिन महिषासुर का अंत हुआ।

 

दोनों कथानकों का मूल संदेश एक ही हैसत्य की विजय। रामजी ने संगठन क्षमता और कुशल नेतृत्व के बल पर विजय पाई, जबकि शक्ति भवानी ने महिषासुर का अंत कर धर्म और सृष्टि की रक्षा की।

 

भारतीय ऋषियों ने इस स्मृति को केवल एक दिन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि पूरे नौ दिनों की शक्ति उपासना और साधना के साथ जोड़ा। इन नौ दिनों को "नवदुर्गा उत्सव" कहा गया, जिसमें शक्ति के नौ रूपों शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, संगठनात्मक, सामरिक और राष्ट्रशक्ति की साधना की जाती है।

 

सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

 

नवरात्रि के दिनों में पूजन, व्रत, साधना और विशिष्ट आहार के माध्यम से शारीरिक शुद्धि और मानसिक एकाग्रता होती है। योग और आयुर्वेद की दृष्टि से यह एक प्रकार की कायाकल्प प्रक्रिया है। शाम को भजन-कीर्तन और सामूहिक आयोजन समाज को एक सूत्र में बाँधते हैं। यहाँ जाति, वर्ग या ऊँच-नीच का भेद नहीं होता। यह सामाजिक समरसता और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। दशमी के दिन शस्त्र और अश्व पूजन सामरिक शक्ति साधना का संदेश देता है।

 

रामलीला में भी यही भाव प्रकट होता है। नौ दिनों तक घटनाओं का अभिनय कर समाज को शिक्षित किया जाता है और दशमी को रावण दहन कर असत्य और अन्याय पर विजय का प्रतीक प्रस्तुत किया जाता है।

 

रामजी की विजय का संदेश

 

राम-रावण युद्ध केवल दो व्यक्तियों का नहीं था, बल्कि एक सामाजिक और दार्शनिक संदेश देने वाली "रामलीला" थी। रामजी ने सीमित साधनों के बावजूद संगठन और अनुशासन के बल पर विजय प्राप्त की। हनुमान, सुग्रीव और विभीषण जैसे सहयोगियों को जोड़कर उन्होंने एक संगठित सेना तैयार की। विजय का रहस्य उनकी सामूहिक नेतृत्व क्षमता और उचित योजना में निहित था।

 

इसके विपरीत रावण की पराजय का कारण थाअसंगठन और घर के भीतर असहयोग। उसके अपने भाई और परिजन उसके निर्णय से असहमत थे। परिवार और राज्य के मतभेद ने उसकी शक्ति को कमजोर कर दिया। यही शिक्षा परिवार, समाज और राष्ट्र सभी पर लागू होती है कि एकता ही सफलता का आधार है।

 

सावधानी का संदेश

 

दशहरा केवल विजय का उत्सव नहीं, बल्कि यह चेतावनी भी है कि सफलता के बाद भी सावधानी आवश्यक है। देवताओं की असावधानी ने महिषासुर को बल दिया और वन की असुरक्षा ने सीता हरण को संभव बनाया। समृद्धि जहाँ आकर्षण का केंद्र होती है, वहीं बढ़ती प्रतिष्ठा शत्रुओं और ईर्ष्यालुओं को सक्रिय कर देती हैइसलिए सतत सजगता ही सफलता की रक्षा कर सकती है।

 

दशहरे का नामकरण

 

"दशहरा" शब्द का अर्थ केवल तिथि की दशमी नहीं है। "दश" का अर्थ गतिशीलता और चैतन्यता है। "हरे" शब्द शिव और नारायण दोनों का बोध कराता है। इसमें तीन गुण (सत्व, रज, तम) और पाँच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का समन्वय निहित है। इस प्रकार "दशहरा" का आशय है सत्य और धर्म की रक्षा के लिए निरंतर सक्रिय और सजग रहना।