विश्व बंधुत्व का प्रतिबिंब है भारतीय साहित्य : भूरिया

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    06-Jan-2025
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nirmala bhuriya
 
 
 
भोपाल। हमें भारत जैसे महान देश का निवासी होने और भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने का गर्व है। भारतीय साहित्य में धार्मिक, सांस्कृतिक, और दार्शनिक विचारों का विशेष महत्व है। भारतीय साहित्य केवल मनोरंजन ही नहीं करता, बल्कि यह जीवन शैली को भी बदल देता है। भारतीय साहित्य में विश्व बंधुत्व, सामाजिक न्याय और समानता का स्वर है। इसे लोगों तक पहुचाने में धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक साहित्य का योगदान रहा है। भारतीय साहित्य में राष्ट्र का स्वर उद्घाटित होता है। राष्ट्र गौरव का भाव भारतीय दृष्टि की विशेषता है। यह बातें महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री सुश्री निर्मला भूरिया ने कहीं। वे देश भर से आईं महिला साहित्यकारों के सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।
 
 
मंत्री ने कहा कि हमारे साहित्यकारों ने संस्कृत, हिन्दी, मराठी, तमिल, बंगाली, उर्दू, गुजराती, और अन्य भारतीय भाषाओं में साहित्य रचा है और लगभग हर भाषा में महिला साहित्यकारों ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। भूरिया ने साहित्य पर बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि युवाओं का साहित्य में घटता रुझान एक चुनौती है। अगर साहित्यकार युवाओं की सोच को ध्यान में रखते हुए रचनाएं करेंगे, तो युवा इन पुस्तकों को हाथों-हाथ लेंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि साहित्य में भारतीय गौरव और संस्कृति की झलक होनी चाहिए ताकि यह समाज में प्रासंगिक बना रहे।
 
 
 
अर्चना प्रकाशन की सराहना -
भूरिया ने अर्चना प्रकाशन द्वारा साहित्य और संस्कृति को सहेजने के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अर्चना प्रकाशन ने गुणवत्ता और राष्ट्रवादी साहित्य को बढ़ावा देने में कोई समझौता नहीं किया है। यह संस्था भारतीय संस्कृति और साहित्य के संरक्षण में सराहनीय योगदान दे रही है।
 
 
महिला व बाल साहित्य पर जोर - 
महिला साहित्यकारों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए मंत्री ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर आज तक विदुषी महिलाओं ने साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उन्होंने बाल साहित्य सम्मेलन आयोजित करने की भी सलाह दी, ताकि बच्चों में राष्ट्रीय साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाई जा सके। मंत्री ने डिजिटल युग में पढ़ाई-लिखाई को प्रोत्साहित करने के लिए साहित्य सम्मेलनों की भूमिका को जरूरी बताया।
 

Maya narolia  
 
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाए महिला साहित्यकार : माया नारोलिया 
सांसद माया नारोलिया ने कहा कि 'देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखें।' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हर क्षेत्र में मातृशक्ति के कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं। सांसद ने कहा कि अर्चना प्रकाशन भी साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। आज साहित्य के क्षेत्र में मातृशक्ति राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति को अर्जित करें, यहीं मेरी कामना है।
 
 
विचार आएंगे-जायेंगे, साहित्य तत्व बचा रहेगा : प्रो. कुमुद शर्मा 
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि साहित्य एक तरह का संवाद है, इसमें विमर्श चलते रहता है, लेकिन बंटने वाला विमर्श ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि आज साहित्य बाहरी देशों से प्रभावित हो रहा है। साहित्य का बंटवारा नहीं किया जाना चाहिए। प्रो. कुमुद शर्मा ने ने कहा कि जब तक हृदय धड़कते रहेगा, साहित्य लिखा जाते रहेगा, यही भारतीय दृष्टि है। उन्होंने कहा कि विचार आएंगे-जायेंगे, साहित्य का तत्व बचा रहेगा। उन्होंने कहा कि साहित्य आने वाले समाज के लिए पगडंडी तैयार करता है। आज दुनिया में भारतीय साहित्य का प्रभाव इस कदर बढ़ा है कि पश्चिमी देश भी नारीवाद की भारतीयता की तरफ लौट रहे हैं।
 
 
एट्रोसिटी लिटरेचर को समझना होगा : रश्मि सावंत
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन की पहली अध्यक्ष और ग्रेजुएशन करने वाली उडुपी की साहित्यकार रश्मि सावंत ने अपनी बात रखी। रश्मि ने कहा कि भारत के बाहर एट्रोसिटी लिटरेचर लिखा जा रहा है। इस साहित्य से ब्रिटिशर्स उन मानवीय कार्यों को जस्टिफाई करते हैं जो उन्होंने भारत और अन्य देशों में किए थे। रश्मि ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि जो बचपन से बहुत टैलेंटेड होते हैं, वही आगे जाते हैं। बल्कि वे लोग जीवन में आगे।बढ़ते हैं जो निरंतर प्रयास करते रहते हैं। जीवन में योग्यता ही नहीं, प्रयास ज्यादा महत्व रखते हैं।
 
 
बासुदेव कुटुंबकम्' की गौरवशाली परम्परा : प्रो. शशिकला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की प्रो. शशिकला ने कहा कि
पश्चिमी देशों में जब लोग डिप्रेशन में जाने लगे तो वहां अध्ययन शुरू किया गया। स्टडी के परिणाम में ये बात आई कि अच्छे रिश्ते खुश रहने के लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन भारत में तो शास्त्रों में पहले से लिखा है 'बासुदेव कुटुंबकम्'। यह हमारे देश की गौरवशाली पारिवारिक परम्परा रही है। जिससे हमारे देश के सामाजिक मूल्य सबसे ऊपर हैं। यहां महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिला है। यही हमारी साहित्यिक सृष्टि, भारतीय दृष्टि है।
 
 
भाषा पर अधिकार बढ़ाना होगा : डॉ. साधना बलवटे
डॉ. साधना बलवटे ने कहा कि संस्कृत में सबसे अच्छा साहित्य मिलता है, हमें पढ़ना शुरू करना चाहिए। हमें भाषाओं पर अधिकार बढ़ाना चाहिए। कोई भी शुरुआत हमें घर से करनी होगी।
 
 
महिलाओं के प्रति भ्रामक नेगेटिव को तोड़ना होगा : निवेदिता शर्मा
बाल कल्याण समिति की पूर्व सदस्य निवेदिता शर्मा ने कहा कि पश्चिमी देशों ने इतिहास में भारत की महिलाओं के प्रति नकारात्मक प्रचार किया है। अब समय आ गया है कि महिला साहित्यकारों को आगे आकर गढ़े गए भ्रामक नेगेटिव को दूर करना चाहिए। महिला साहित्यकारों को इन विषयों पर खुलकर लिखना चाहिए।
 

Mahila Sammelan 
 
 
जड़ों से जुड़ना बेहद जरूरी : रक्षा दुबे चौबे 
रक्षा दुबे चौबे ने कहा कि जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे, अच्छा कार्य करते रहेंगे। साहित्य लेखन में स्वतंत्रता और स्वच्छंदता को समझना बहुत जरूरी है। साहित्य लिखने के लिए सबसे सुंदर विचार आता है, वह मन की आवाज के रूप में आता है। साहित्य बिना स्वांग के लिखा जाता है। ऐसे में अच्छा कार्य करते रहें और अच्छा साहित्य लिखते रहें।
 
 
 
अर्चना प्रकाशन न्यास के बैनर तले  'महिलाओं का, महिलाओं के द्वारा, महिलाओं के लिए' यह सम्मेलन राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (NITTTR) में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में देशभर की करीब 150 महिला साहित्यकार शामिल हुई थी। इस सम्मेलन में महिला साहित्यकारों ने गद्य एवं पद्य की रचनाओं की प्रस्तुति भी दी। सम्मेलन की शुरुआत में अर्चना प्रकाशन न्यास की डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया, जिसमें न्यास के द्वारा की जा रही साहित्यिक गतिविधियों को प्रदर्शित किया गया। इस सम्मेलन में रश्मि सावंत, डॉ. मेधा पुरोहित, डॉ. साधना बलबटे, डॉ. आरती दुबे, प्रो. शशिकला, डॉ. सोनाली मिश्रा, डॉ कुमकुम गुप्ता, डॉ वंदना मिश्रा, सुनीता यादव, रक्षा दुबे, डॉ. निवेदिता शर्मा, डॉ. सविता सिंह भदौरिया मौजूद रहीं। महिला सम्मेलन में भारतीय महिला मुक्केबाज टीम की हेड कोच अमनप्रीत कौर भी शामिल हुई और उन्होंने एक ओजस्वी कविता प्रस्तुत की।