- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
देश भर में वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव के समय से विशेष तौर पर देखने में आ रहा है कि क्या पक्ष और क्या विपक्ष सर्वत्र संविधान की रक्षा की बात बहुत हो रही है। सबसे ज्यादा जोर धर्म निरपेक्षता या पंथ निरपेक्षता पर है। लेकिन क्या सभी सरकारें वास्तविकता में संविधान में इस एक महत्वपूर्ण शब्द पंथनिरपेक्षता का वास्तव में आदर करती हैं या उनके लिए वोटबैंक की राजनीति में तुष्टिकरण ही महत्वपूर्ण है? वास्तव में यह सभी सरकारों के लिए एक सोचनीय विषय हो सकता है। किंतु हाल ही में आए आंध्र प्रदेश सरकार के द्वारा लिया गया निर्णय राजनीति में कार्य करनेवाले सत्तासीन सभी लोगों को यह सोचने पर जरूर विवश कर रहा है कि क्या वे भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज की भावनाओं का ह्दय से सम्मान करते हैं, जिनके वोट बैंक के आधार पर ही वे सत्ता का सुख भोगते हैं ।
निश्चित ही इस संदर्भ में मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का यह निर्णय आज सर्वत्र चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें कि उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज का सम्मान अति आवश्यक है। इसलिए राज्य के मंदिरों में केवल हिंदुओं को ही काम पर रखा जाएगा, क्योंकि यह देवता के प्रति भक्त के समर्पण का विषय है। ह्दय की गहराईयों में समाहित उस श्रद्धा एवं पवित्रता से जुड़ा विषय है, जिसमें कि एक भक्त अपने भगवान को अपना सर्वस्व यथा योग्य स्थिति में समर्पण करने के लिए तैयार है। निश्चित ही इस पूरी प्रक्रिया में पवित्रता का महत्व है और उस पवित्रता को प्राय: वही पहले अनुभव करेगा जोकि बचपन से ही उसमें रसा-बसा होगा। इसलिए उनका ये लिया गया निर्णय आज सर्वत्र सराहा जा रहा है। इसके साथ ही नई नीति के अंतर्गत, मंदिर के पुजारियों, जिन्हें अर्चक के नाम से भी जाना जाता है, उनका मासिक वेतन 15,000 रुपये किया गया है। वहीं, मंदिरों में काम करने वाले नाई कर्म करनेवालों का भी न्यूनतम वेतन 25,000 रुपये मासिक हो गया है ।
वस्तुत: जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत के मंदिरों में मुंडन करवाने का विशेष महत्व है। ये महत्व इस भावना पर आधारित है कि सिर के बाल यानी जो प्रत्येक मनुष्य के शरीर के लिए सबसे अधिक सौंदर्य के प्रतीकों में से एक हैं, उसका अपने देवता के सामने पूर्णत: समर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि बाल जन्म से शरीर के साथ ही आते हैं, जबकि अन्य पदार्थ प्रकृति से बाद में प्राप्त होते हैं। ऐसे में यदि अपने देवता (ईश्वर) के सामने कुछ समर्पित करना ही है तो वह देह का ही भाग हो सकता है, क्योंकि मनुष्य अपनी देह से ही सबसे अधिक प्रेम करता है, इसलिए इस मान्यता के आधार पर समर्पण कर देने का प्रण भारत के मंदिरों में प्राय: मुंडन संस्कार के प्रचलन के रूप में देखने को मिलता है। यहां मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के इस निर्णय से मंदिरों में नाई कर्म में लगे हुए तमाम लोगों के परिवारों को यह आश्वासन दे दिया है कि अब कम से कम आर्थिक तंगी का सामना उन्हें नहीं करना होगा ।
उनका यह निर्णय भी ह्दय को छू गया, जब तय किया गया कि विश्व की सबसे प्राचीनतम् वेद विद्या की पढ़ाई करने वाले बेरोजगार युवाओं को 3,000 रुपये मासिक भत्ता दिया जाएगा। कहना होगा कि वेद की विद्या दुनिया भर के लिए भारत की धरोहर है। वेद के जितने मंत्र हैं और जितनी उसकी शाखाएं शेष हैं, उन सभी को इस निर्णय से बल मिलेगा। पतंजलि ने ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 100, सामवेद की 1000 तथा अथर्ववेद की 9 शाखाएँ बताई हैं, किंतु वर्तमान में अधिकांश अप्राप्य है। इस संदर्भ में प्राप्त सभी शोध निष्कर्षों से सामने आया है कि प्राचीन समय में वेदों की 1131 शाखाएं थीं, किंतु विधर्मियों के हुए लगातार के आक्रमण के फलस्वरूप अपने अस्तित्व को बचाए रखने की हिन्दू सनातन चुनौती के बीच अब वेदों की केवल 12 शाखाएं ही शेष है, जिसमें ऋग्वेद की 2, यजुर्वेद की 6, सामवेद की 2 और अथर्ववेद की 2 शाखाएं हैं।
राज्य सरकार 'धूप दीप नैवेद्यम योजना' के माध्यम से छोटे मंदिरों के लिए वित्तीय सहायता भी बढ़ाने का निर्णय लिया है। यह सहायता राशि 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दी गई है । इसके अलावा, 20 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व वाले मंदिरों के लिए मंदिर ट्रस्ट बोर्ड में दो अतिरिक्त बोर्ड सदस्य जोड़े जा रहे हैं, सबसे अच्छी बात यह है कि इन नए पदों में एक ब्राह्मण और एक नाई को शामिल किया गया है। इतना ही नहीं नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू मंदिरों में गैर-हिंदुओं को कोई रोजगार नहीं दिया जाना चाहिए । इसके भी मायने हमें समझना होंगे। जो लोग थूक लगाकर दूसरों को चीजें परोसते हैं या अपनी मान्यता के अनुसार ईश्वर को वाईन का जो लोग भोग लगाते हैं, उन पर मंदिर के संदर्भ में विश्वास करना नहीं चाहिए। इसकी कोई गारंटी नहीं कि जिसका भाव ही देवता के प्रति समर्पण का नहीं है, वह वह पूरी पवित्रता का ध्यान रखेगा। अत: हिन्दुओं के मंदिर में सामान बेचनेवाले भी हिन्दू ही होना चाहिए।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि “आंध्र प्रदेश के हर मंदिर में आध्यात्मिकता प्रस्फुटित होनी चाहिए। आध्यात्मिक कार्यक्रम इस तरह से आयोजित किए जाने चाहिए कि श्रद्धालु मंदिर में वापस आएँ और उन्हें ये ना लगे कि उनसे पैसे ऐंठे जा रहे हैं। यह भी जरूरी है कि मंदिर और उनके आसपास के इलाकों को बेहद साफ-सुथरा रखा जाए।” उन्होंने पर्यटन विभाग, हिंदू धर्मार्थ विभाग और वन विभाग के अधिकारियों की एक समिति के गठन की भी घोषणा की है । यह समिति मंदिरों, विशेष रूप से वन क्षेत्रों में स्थित मंदिरों के विकास की देखरेख करेगी। समिति इन स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व को संरक्षित रखते हुए इसे अधिक से अधिक पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के लिए सुलभ बनाएगी।
इसके अतिरिक्त, नायडू ने श्रीवाणी ट्रस्ट के अंतर्गत प्रत्येक मंदिर को 10 लाख रुपए आवंटित किए हैं, जिसमें आवश्यकताओं की समीक्षा के बाद यदि आवश्यक हुआ तो अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान भी किया गया है। अधिकारियों से उन मंदिरों के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए कहा गया है, जहाँ 10 लाख रुपए से अधिक की आवश्यकता है। सरकार इस बात पर भी यहां जोर देती दिख रही है कि वह अपने राज्य में पवित्र नदियों कृष्णा और गोदावरी नदी को पुनर्जीवित करने में सफल हो जाए, इसके लिए प्रभावी योजना बनाई गई है। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राज्य में जबरन धर्मांतरण (मतान्तरण) करने का भी खुलकर विरोध किया है । उन्होंने दोहराया कि आंध्र प्रदेश में जबरन धर्म परिवर्तन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पिछले वाई एस जगन मोहन रेड्डी प्रशासन के समय में हिंदू मंदिरों पर हुए हमलों की निंदा करते हुए मुख्यमंत्री नायडू ने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं ।
अब कहना यही है कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज के आस्था केंद्रों के संरक्षण, वहां विराजित देवता की पूजा-अर्चना करनेवाले अर्चकों की चिंता करने की विधिवत ठीक से शुरूआत आंध्रप्रदेश से आज हो चुकी है। ऐसे में जहां देश के प्राय: सभी राज्यों में मुसलमानों के मदरसों के मौलवियों के लिए भारी भरकम राशि उन्हें वेतन के रूप में दी जाती हो, ईसाईयत के प्रचार के लिए कई हजार करोड़ के जोशुआ मिशन प्रोजेक्ट संचालित हो रहे हों एवं इसी प्रकार के अन्य मिशन, जिसमें कि भारत से बहुसंख्यक हिन्दू समाज से विविध तरह से अप्रत्यक्ष अर्जित धन के साथ विदेशी फंड बहुतायत में लगाया जा रहा हो, वहां यह जरूरी हो जाता है कि धर्मनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता का अनुसरण सभी राज्य सरकारें हिन्दू सनातन धर्म के हित में भी करें। वास्तविक पंथ निरपेक्षता या धर्म निरपेक्षता तभी है जब भारत के बहुसंख्यक समाज, जिसके अधिकांश आयकर एवं अन्य करों से प्राप्त आय के फलस्वरूप ही सरकारें अपनी सभी योजनाएं संचालित कर पाती हैं, उनके भी धार्मिक हितों का समग्रता के साथ ध्यान रखा जाए। आंध्र से हुई यह शुरूआत अच्छी है, अब बारी अन्य राज्यों के अनुसरण करने की है।