हिंसक कौन..?

वसुधैव कुटुम्बकम् ही सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है।

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    10-Jul-2024
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hinsak kaun
 
 
डा पिंकेश लता रघुवंशी.
 
कहा जाता है कि यदि एक झूठ को अनेको बार बार बोला जाए, अनेक अवसरों पर बोला जाए और अनेक लोगों के मुख से कहलवाया जाए तो वो झूठ समाज में सत्य के रूप में स्थापित होने लगता है। वर्षो वर्ष भारत वर्ष के गौरव को समाप्त करने के लिए इसकी मूल आत्मा सनातन संस्कृति को लेकर अनेक असत्य गढ़े और पढ़े गए और जब जैसी आवश्यकता लगी उसके प्रति दुष्प्रचार का एक विश्व व्यापी इको सिस्टम खड़ा किया गया।
 
 
अपने राजनेतिक लाभ हेतु विगत कुछ महीनों से समाज से लेकर संसद तक एक ऐसा ही झूठ एक राजनेतिक संगठन के तथाकथित मुखिया और संसद में विपक्ष के नेता के रूप में चयनित व्यक्ति द्वारा दो असत्य तथ्य स्थापित करने के लिए संसद और संसद के बाहर कथन दिया गया कि हिंदू हिंसक होता है और दूसरा यह कि हिंदू भी अनेक प्रकार का होता है आर एस एस का हिंदू, भाजपा का हिंदू, बजरंग दल का हिंदू। ये बयान एक बार नहीं अनेक बार दोहराया भी गया।
 
 
असत्य को स्थापित करने के लिए वाम पंथी विचारधारा मे उसे इस प्रकार से लिख, पढ़ा और गढ़ा जाता है कि उसी विचार को पालन करने वाले जीने वाले समाज के मन भी ये भय आ जाता है कि संभवत यही सत्य है। वामपंथ की उसी पाठ शाला से निकले, उसी तरह के लोगों से घिरे हुए तथाकथित मोहब्बत की दुकान चलाने वाले ये सज्जन कहते हैं कि हिंदू हिंसक है। हा ये अलग बात है कि चुनावी मौसम में यही सज्जन मंदिरों, शिवालयों के चक्कर लगाते हुए त्रिपुण्ड धारी हो जाते हैं। सार्वजनिक रूप से मटन पकाने और खाने वाले मोहब्बत की दुकान चलाने वाले ही हो सकते हैं, प्रेम के व्यापारी नहीं, क्योंकि ढाई अक्षर के प्रेम को समझने वाला तो चींटि को मारने में भी पाप समझता है। खैर विषय अभी यह नहीं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? किंतु अभी प्रश्न है हिंदू हिंसक है क्या? तो समझते हैं हिंसक कौन ?
 
 
क्या वास्तव में ये विमर्श कि हम हिंसक हैं, अपने ही समाज जनों पर अत्याचार करते रहे हैं और हम सबको बांटने का कार्य करते हैं तो सबसे पहले बात उस हिन्दू धर्म की जिसे आप हिंसक समझते/कहते हो।
 
 
हमारे पूर्वज हज़ारों वर्ष पूर्व हमें बता गए हैं, शिक्षित कर गए हैं कि...वसुधैव कुटुम्बकम् ही सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है।
 
महोपनिषद्, अध्याय 4, का यह 71वां श्‍लोक हमारी भारतीय हिन्दू सभ्यता संस्कृति का जीवन मंत्र है।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||
इसका अर्थ है कि... यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों का परिवार तो सम्पूर्ण धरती है।
 
इसी प्रकार हम हिन्दुओं की सभ्यता संस्कृति विचारधारा एवं जीवनशैली का परिचय देने वाला एक अन्य जीवनमंत्र है अथर्ववेद का यह श्लोक...
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
अर्थात...
"सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"
 
 
हम हिन्दू इतने सभ्य, सुशिक्षित, शांतिप्रिय और उत्सवधर्मी हैं कि अपने किसी भी आराध्य देव, संत महंत महापुरुष की पुण्यतिथि पर मातम नहीं मनाते। खुद को जंजीरों और हथियारों से पीट पीटकर लहूलुहान नहीं करते। इसके बजाय उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना और शांतिपाठ करते हैं।
 
और हाँ हमारे हिंदू धर्म में अहिंसा की व्याख्या भी ऋषियों की ऋचाओ और वेदों की व्याख्याओं में वर्णित ही है, जिसे एक वेद पाठी ब्राह्मण से लेकर सामान्य जीवन जीवन जीने वाली एक ग्रामीण महिला भी सहजता से पालन करती है। जानना चाहेंगे अहिंसा के लिए हमारे ऋषि क्या कहते हैं-
 
अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः ।
अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः ॥28॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 116, दानधर्मपर्व)
शब्दार्थ – अहिंसा परम धर्म है, वही परम आत्मसंयम है, वही परम दान है, और वही परम तप है।
 
अहिंसा परमो यज्ञस्तथाहिंसा परं फलम् ।
अहिंसा परमं मित्रमहिंसा परमं सुखम् ॥29॥
(यथा पूर्वोक्त)
(अहिंसा परमः यज्ञः तथा अहिंसा परम् फलम् अहिंसा परमम् मित्रम् अहिंसा परमम् सुखम् ।)
शब्दार्थ – अहिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा ही परम फल है, वह परम मित्र है, और वही परम सुख है।
 
सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम् ।
सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया ॥30॥
(यथा पूर्वोक्त)
(सर्व-यज्ञेषु वा दानम् सर्व-तीर्थेषु वा आप्लुतम् सर्व-दान-फलम् वा अपि न एतत् अहिंसया तुल्यम् ।)
शब्दार्थ – सभी यज्ञों में भरपूर दान-दक्षिणा देना, या सभी तीर्थों में पुण्यार्थ स्नान करना, या सर्वस्व दान का फल बटोरना, यह सब अहिंसा के तुल्य (समान फलदाई) नहीं हैं।
 
 
अब बात उस रक्त रंजित कम्युनिस्ट सभ्यता संस्कृति विचारधारा की, जिसे सम्पूर्ण विश्व नकार रहा है, उससे घृणा करता है और जिसकी गुलामी आप जैसे मूर्ख/धूर्त निर्लज्जता पूर्वक करते हैं और अपने असत्य भाषणों से उन्ही की भाषा बोलते हैं।
 
 
स्मरण रहे कि किसी संघी भाजपाई विचारक ने नहीं, किसी हिन्दू ने भी नहीं, संघ संचालित किसी शिशु मंदिर के विद्यार्थी रहे लेखक ने भी नहीं बल्कि अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, येल यूनिवर्सिटी तथा हवाई यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रहे रूडोल्फ जोसेफ रम्मेल ने 1994 में अपनी पुस्तक (डेथ बाई गवर्नमेंट) में लिखा है कि 1900 से 1987 तक की समयावधि के मध्य कम्युनिस्ट शासकों ने पूरी दुनिया में लगभग 11 करोड़ उन निर्दोष निहत्थे नागरिकों को मौत के घाट उतारा था जो उन कम्युनिस्ट शासकों के विरोधी थे।
 
 
फ्रांसीसी इतिहासकार और फ्रांस के कैथोलिक इंस्टीट्यूट फ़ॉर हायर स्ट्डीज में प्रोफेसर तथा फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च में डायरेक्टर(रिसर्च) रहे स्टीफेन कुओर्टिस ने 1999 में अपनी पुस्तक "ब्लैक बुक ऑफ कम्युनिज़्म" में लिखा है कि पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट शासकों ने उनका विरोध करने वाले लगभग 10 करोड़ से अधिक निर्दोष निहत्थे नागरिकों को मौत के घाट उतारा है।
 
गवर्नमेंट डार्थमाऊथ कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर बेंजामिन वैलेंटिनों ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि केवल चीन, कम्बोडिया और रूस में कम्युनिस्ट शासकों द्वारा अपने विरोधी रहे लगभग 7 करोड़ निशस्त्र निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा गया है।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलिना में प्रोफेसर तथा रशियन एकेडमी ऑफ नेचुरल साइंसेज के सदस्य स्टीवन आर रॉसफ़ील्ड ने अपनी पुस्तक "रेड होलोकॉस्ट" में लिखते हैं कि कम्युनिस्ट शासकों द्वारा केवल अपने आंतरिक विरोधाभासों के कारण ही कम से कम 6 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया गया तथा इसके अलावा करोड़ों अन्य निर्दोष नागरिकों को भी मौत के घाट उतारा गया।
 
2016 में Victims of Communism Memorial Foundation (विक्टिम्स ऑफ कम्युनिज़्म मेमोरियल फाऊंडेशन) ने सम्पूर्ण विश्व से एकत्र किए गए दस्तावेजों, आंकड़ों और तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट शासकों द्वारा अबतक लगभग 16 करोड़ से अधिक नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।
 
यह उदाहरण केवल चुटकी भर हैं। पूरे उदाहरण लिखूंगी तो सैकड़ों पन्ने भर जाएंगे। लेकिन यह चुटकी भर उदाहरण ही आप और आपके दिग्भ्रमित समर्थकों को यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि आप कितनी नराधम निकृष्ट हत्यारी राक्षसी कम्युनिस्ट सभ्यता संस्कृति के चरणदास हैं। ऐसी सभ्यता के आप जैसे किसी घृणित पैराकारों से किसी भी प्रमाणपत्र को प्राप्त करने की कोई आवश्यकता हिन्दू धर्म को ना पहले कभी थी, ना है, ना ही कभी होगी।
 
 
सम्पूर्ण विश्व के गैर हिन्दू महामानवों, महान विचारकों ने हिन्दू धर्म के विषय में क्या कहा है, जरा यह भी आप जान लें।
लियो टॉल्स्टॉय (1828-1910):
हिन्दू और हिन्दुत्व ही एक दिन पूरी दुनिया पर राज करेगा क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है।'
 
अल्बर्ट आइंस्टीन (1879-1955):
मैं समझता हूं कि हिंदुओं ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया है जो यहूदी न कर सकें, हिन्दुत्व में ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है।'
 
जोहान गीथ (1749-1832):
'हम सभी को अभी या बाद में हिन्दू धर्म स्वीकार करना ही होगा। यही असली धर्म है, मुझे कोई हिन्दू कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा। मैं इस सही बात को स्वीकार करती हूं।
 
हर्बर्ट वेल्स (1846-1946):
हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिणत पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी। तभी एक दिन पूरी दुनिया इसकी ओर आकर्षित हो जाएगी और उसी दिन ही दिल शाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी सलाम हो उस दिन को।
 
हसटन स्मिथ (1919-2016):
'जो विश्वास हम पर है और हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो हिन्दुत्व है। अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी।'
 
माइकल नोस्ट्रेडम (1503-1566):
'हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा।'
 
बर्ट्रेंड रसेल (1872-1970):
'मैंने हिन्दुत्व को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है, हिन्दुत्व पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिन्दुत्व के बड़े विचारक सामने आएंगे। एक दिन ऐसा आएगा कि हिन्दू ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा।'
 
गोस्टा लोबोन (1841-1931):
'हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है। सुधार ही के विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ।'
 
बर्नाड शॉ (1856-1950):
'सारी दुनिया एक दिन हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगी, अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी। पश्चिम एक दिन हिन्दुत्व स्वीकार कर लेगा और हिन्दू ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा।'
 
फ्रांस के नोबल पुरस्कार विजेता दार्शनिक रोमां रोला ने विश्व में हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ माना है। उन्होंने लिखा, 'मैंने यूरोप और मध्य एशिया के सभी मतों का अध्ययन किया है, परंतु मुझे उन सब में हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ दिखाई देता है...मेरा विश्वास है कि इसके सामने एक दिन समस्त जगत को झुकना पड़ेगा।
 
पृथ्वी पर केवल एक स्थान है जहां के जीवित व्यक्तियों ने प्राचीन काल में अपने स्वप्नों को साकार किया, वह है भारत।- (प्रोफेट्स ऑफ द न्यू इंडिया, प्रील्यूड, पृ. 51)
 
 
यह कुछ तार्किक प्रमाण है उस सनातन हिंदु परंपरा की वैश्विक स्वीकारोक्ति के जिसने अपनी हिंसक प्रवृत्ति या तलवार की दम पर नहीं अपने विचार व व्यवहार के बल पर विश्व समाज को अपनी ओर आकर्षित किया है।
 
 
अत: एक गर्वित हिंदू होने के नाते एक चेतावनी आपको देती हूँ कि हिंदू धर्म को हिंसक कहने के पहले करोड़ो करोड़ हिंदुओ को धन्यवाद दीजिये कि उन्होंने किसी के सर तन से जुदा करने के नारे नहीं लगाये, अपितु आपके असत्य को धेर्य पूर्वक सुनकर अनसुना कर दिया। हम हिंदू किसी की आत्मा न दुखे ऐसा ध्यान करते हुए असत्य बात कहने से भी डरते हैं, किंतु किसी असहाय पर हो रही हिंसा का प्रतिकार करना भी जानते हैं। यदि कभी समय मिले तो हिंदू धर्म ग्रंथ पढ़ पाए न पढ़ पाये किंतु अटल जी की इस कविता को अवश्य पढियेगा-
 
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए? 
कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!