सीएए पर कृपया चुप रहें यूएन और अमेरिका.

आश्‍चर्य है कि जिसे भारत और भारत में लागू इस कानून से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं, वह भी भारत सरकार और उसके इस निर्णय की बिना गहराई में जाए आलोचना कर रहे हैं ।

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    15-Mar-2024
Total Views |
 
CAA 2
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
हजारों-लाखों लोगों का वह अह्लादित कर देनेवाला रुदन, जो वर्षों से अनवरत न्‍याय के लिए चित्‍कार रहा था। पूछ रहा था कि हमें किस लिए सजा दी गई है? देश का विभाजन तुमने किया, इसमें हमारा क्‍या दोष था? कहना होगा‍ कि उन सभी की ह्दय वेदना को कई दशक बीत जाने के बाद अब जाकर न्‍याय मिला है। भारत में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू किया जाना जैसे उनकी वर्षों की तपस्‍या का परिणाम है। हालांकि इस कानून के लागू होने से यह तो पहले से तय था कि देश में कुछ विरोध के स्‍वर जरूर उठेंगे, किंतु विदेशों में भी इसके विरोध की होड़ लगेगी, इसका इतना अंदाजा किसी को नहीं था! कम से कम यूएन और अमेरिका से तो यह उम्‍मीद नहीं की जा सकती थी।
  
आश्‍चर्य है; यह जानकर कि जिसे भारत और भारत में लागू इस कानून से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं, वह भी भारत की मोदी सरकार और उसके इस निर्णय की बिना गहराई में जाए आलोचना कर रहे हैं । सबसे ज्‍यादा संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और अमेरिका से शासन स्‍तर पर आईं प्रतिक्रियाएं परेशान करती हैं । क्‍यों कि अभी कुछ दिन पहले ही भारत और अमेरिका के बीच होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग (एचएसडी) को पूरा किया गया । जिसमें कि अमेरिका ने भारत की भरपूर प्रशंसा की । यही स्‍थ‍िति यूएन की है, जहां वह इस बात को कई अवसरों पर स्‍वीकार्य कर चुका है कि वास्‍तविक लोकतंत्र और पंथनिरपेक्षता यदि देखना है तो तमाम विविधताओं के बाद भी एकता के लिए भारत से अच्‍छा कोई उदाहरण नहीं है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी यूएन प्रशंसा कर रहा था।
 
 
यूएन भारत की आलोचना कर रहा, लेकिन नहीं बता रहा, कैसे सीएए गलत
वस्‍तुत: अब अचानक ऐसा क्‍या हो गया जो संयुक्त राष्ट्र को लगने लगा है कि भारत का सीएए कानून "मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण प्रकृति" वाला है! आज संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की ओर से बोला गया है, "हम भारत के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि यह मूल रूप से भेदभावपूर्ण प्रकृति का है। साथ ही यह भारत के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन करता है।" अब देखिए ; यूएन यहां भारत को इस कानून को लागू करने के लिए कटघरे में तो खड़ा कर रहा है, किंतु यह नहीं बता रहा है कि कैसे भारत का यह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) किसी के मानवाधिकारों का उल्‍लंघन करता है?
क्‍या संयुक्त राष्ट्र (यूएन) अन्तरराष्ट्रीय संगठन की स्‍थापना 78 साल पहले 1945 में इसलिए ही की गई थी कि जो राष्‍ट्र नियमों का पालन करें, विश्‍वकल्‍याण में विश्‍वास करें, उन्‍हें दबाते रहना है। फिर वह वैचारिक रूप से हो या किसी अन्‍य प्रकार से । आज यूएन के कल्‍याणकारी उद्देश्यों को पढ़कर नहीं लगता है कि वह भारत के संदर्भ में इस तरह का वक्‍तव्‍य देगा। देखा जाए तो यूएन आज ''सीएए'' पर भारत को घेरने का जो आधार ले रहा है, वह पूरी तरह से अनुचित है। क्‍योंकि इस कानून को लाने के पीछे जो पृष्‍ठभूमि रही है, उस पर यूएन को पहले गहन चिंतन एवं शोध करना चाहिए था, फिर जाकर अपनी प्रतिक्रिया देता तो अच्‍छा रहता ।
 
 
यूएन भूल गया, भारत ने स्‍वैच्‍छा से चुनी है पंथ निरपेक्षता
यूएन को भारत के संदर्भ में यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि स्‍वाधीन भारत ने अपने लिए लोकतंत्र का रास्‍ता चुना, जिसमें सभी के लिए स्‍थान समान रूप से रहा। पंथ निरपेक्षता भारत की विशेषता बनी, लेकिन दूसरी ओर भारत से ही अलग हुए पाकिस्‍तान ने अपने लिए इस्‍लामिक गणराज्‍य बनने का रास्‍ता चुना, जिसमें जो अल्‍पसंख्‍यक रहे, वे आज भी रो रहे हैं । जो शरणार्थी भारत आए, वे क्‍या अभी अचानक से यहां आ गए हैं ? माना कि भारत सरकार यह ''सीएए'' उनके लिए लेकर आ गई? लेकिन क्‍या इससे पहले नियमानुसार अनुमति लेकर समय-समय पर मुसलमान एवं अन्‍य जो भी लोग एक बड़ी संख्‍या में दूसरे देशों से भारत आए और उन्‍होंने नागरिकता लेनी चाही तो क्‍या भारत सरकार ने उन्‍हें वह नागरिकता अभी तक प्रदान नहीं की है ?
 
जो नियमों में चलता है, उसके लिए भारत में हमेशा खुले नागरिकता के द्वार
सोचिए; क्‍या इस इतिहास को यूएन नहीं जानता है! समझने के लिए यहां दो विषय हैं, एक-भारत विभाजन के समय से लगातार चलनेवाली पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश, अफगानिस्‍तान में अल्‍पसंख्‍यकों की दयनीय स्‍थ‍िति, उनके बीच व्‍याप्‍त भय, कन्‍वर्जन और मौतें । दूसरा - पिछले 78 सालों में भारत में आए मुसलमान और उनको दी गई भारतीय नागरिकता। आप देखेंगे कि जिन्‍होंने भी भारत की नागरिकता के लिए नियमों का पालन किया, उन्‍हें सदैव भारत सरकार नागरिकता देती आई है। जिसमें कि पाकिस्‍तान समेत बांग्‍लादेश और अफगानिस्‍तान से भी कई मुसलमान भारत आए हैं । ऐसे में यूएन को यह समझना चाहिए कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) किसी भी देश के द्वारा दी जानेवाली नियमित नागरिकता से पूरी तरह भिन्‍न है!
 
 
यूएन देखे; पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान और बांग्‍लादेश में कौन अल्‍पसंख्‍यक सुखी
सांस्‍कृतिक, राजनीतिक और भौगोलिक रूप से भी कभी जो भारत (पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान और बांग्‍लादेश) एक रहा। उस भारत के विभाजन के परिणाम स्‍वरूप अन्‍य इस्‍लामिक गणराज्‍यों में पिछले सात दशकों में उनके साथ जो अमानवीय व्‍यवहार किया गया और अब भी किया जा रहा है, यह उनमें से भारत में शरण लेने आए, पूर्व से रह रहे उन लाखों शरणार्थ‍ियों के लिए है, जिनके साथ उनके हिन्‍दू, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी, सिख होने के कारण से अत्‍याचार किए जा रहे थे। वस्‍तुत: इस मुद्दे पर यूएन को भारत का विरोध करने के पूर्व यह जरूर बताना चाहिए था कि पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान और बाद में बने बांग्‍लादेश में इस्‍लामिक सत्‍ता में कौन अल्‍पसंख्‍यक सुखी हैं ? क्‍या आज यूएन को इन तीनों देशों में हो रहे अत्‍याचार दिखाई नहीं देते ?
 
कश्‍मीर मुद्दे पर चुप रहता है यूएन, भारत को बदनाम करनेवाली झूठी रिपोट्स पर भी चुप्‍पी !
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में 193 राष्ट्र सम्‍म‍िलित हैं। इसकी संरचना में महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, सचिवालय, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद सम्मिलित है। एक तरह से आप इसे वैश्‍विक न्‍याय संस्‍था भी कह सकते हैं। किंतु आप देखिए; यह दुनिया की न्‍याय बॉडी कैसे भारत को टॉर्गेट कर रही है? भारत में घटी छोटी-छोटी घटनाओं को यहां अनेकों बार बहुत बड़ा करके प्रस्‍तुत किया जाता रहा है। कश्‍मीर मुद्दे पर यह पाकिस्‍तान के सामने चुप नजर आती है। जबकि विश्‍व जानता है कि उसने भारत की 78 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा जमा रखा है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स जैसी तमाम रिपोर्ट्स में जानबूझकर भारत को कमजोर, गलत और अत्‍याचार करनेवाला बताया जाता है, जबकि यह भारत की सच्‍चाई नहीं है, इस पर यूएन कभी इस प्रकार की झूठी रिपोर्ट तैयार करनेवाली अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाओं और उन देशों को लताड़ नहीं लगाता, जहां भारत को कमजोर तरीके से प्रस्‍तुत करने का षड्यंत्र होता है। भारत को विश्‍व भर में बदनाम करने के प्रयास होते हैं ।
 
 
 
यूएन मानवाधिकारों का उल्‍लंघन कर रहे देशों पर कब गंभीर होगा
द‍ुनिया के कई ईसाई और इस्‍लामिक देश खुल कर मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं, वह भी यूएन को आज दिखाई नहीं देता, उन पर यूएन की कोई एक टिप्‍पणी नहीं आती है । चीन की वुहान लैब में क्‍या हुआ, यह आज पूरा विश्‍व जानता है। पूरे विश्‍व ने एक भयंकर त्रासदी (कोविड-19) वायरस संक्रमण की कम से कम पांच वर्ष लगातार झेली। अनेकों ने अपने परिवार जनों को बिना किसी कारण के गंवाया है और आज भी दुनिया के तमाम देशों में कोरोना का प्रभाव बना हुआ है और मौंतें अब भी हो रही हैं । किंतु यह जानते हुए भी यूएन आज तक यह हिम्‍मत नहीं दिखा पाया कि खुलकर एक बार कह दे कि इस सब के लिए चीन पूरी तरह से दोषी है। दुनिया के कई देशों में जो अब तक लाखों जानें गईं वह चीन के कारण से गई हैं!
 
यह भी देखिए कि कैसे चीन में ''उइगर मुसलमानों'' की धीरे-धीरे पहचान तक समाप्‍त की जा रही है। चीन खुलकर दुनिया के सामने मानवाधिकारों का उल्‍लंघन कर रहा है। वह अपने लिए जा रहे निर्णयों पर इतना सख्‍त है कि यहां शिनजियांग क्षेत्र में रह रहे देढ़ प्रतिशत मुसलमानों को एक राजकीय अभियान चलाकर समाप्‍त कर देने में लगा हुआ है। आतंकवाद के झूठे आरोप लगाकर इन ''उइगर मुसलमानों'' को चाईना भयंकर सजाएं देता है और बार-बार कहता है कि शिनजियांग क्षेत्र का सामान्‍यीकरण हो जाना चाहिए, जिसमें किसी को कोई विशेष पहचान न रहे। कई अंतरराष्‍ट्रीय रिपोर्ट्स हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्‍त हैं कि पिछले कुछ सालों में ही चीन में लगभग 20 हजार मस्‍जिदें ढहा दी गईं। यहां मुस्‍लिमों को उनकी इस्‍लामिक मान्‍यतानुसार दाढ़ी बढा़ने, जालीदार टोपी, हिजाब, बुर्का पहनने की अनुमति नहीं है।
 
इतना ही नहीं, मुसलमान खुले में कुरान तक का पाठ नहीं कर सकते, इस पर पूर्ण प्रतिबंध है। संयुक्त राष्ट्र स्‍वयं भी अपनी जांच में इस बात के साक्ष्‍य जुटाने में सफल हुआ है कि शिनजियांग क्षेत्र में बलपूर्वक श्रम, यौन अत्‍याचार, लिंग के आधार पर हिंसा, प्रजनन अधिकारों के उल्लंघन, बड़ी संख्‍या में इस्‍लामिक पूजास्थलों का विनाश किया जाता रहा है और यह सब कुछ अभी भी हो रहा है । लेकिन इतना कुछ जानते हुए भी संयुक्‍त राष्‍ट्र को आप देखिए, वह चीन के मामले में चुप दिखाई देता है।
 
 
 
भारत रहता है मानवता के लिए सदैव तैयार
कैसा आश्‍चर्य है ! जो चीन जो मानवाधिकारों को भरपूर उल्‍लंघन करता है, वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का स्‍थायी सदस्‍य है लेकिन भारत एक श्रेष्‍ठ और सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ ही चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, परमाणु शक्ति संपन्न, प्रौद्योगिकी हब तथा वैश्विक संपर्क की परंपरा वाला शक्‍ति सम्‍पन्‍न राष्‍ट्र होने के बाद भी आज पिछले कई वर्षों से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्य का प्राप्‍त करने के लिए संघर्षरत है ।
जैव विविधता हो, पर्यावरण संरक्षण का विषय हो, मानवीय त्रासदी हो या फिर दुनिया के किसी भी कौने में आई कोई महामारी में मदद के लिए खड़े होने का सवाल हो, हर वक्‍त मानवता की सेवा करने और प्रकृति को बचाने भारत सदैव से नेतृत्‍व की भूमिका में दिखता है, लेकिन यूएन है कि फिर भी भारत की मोदी सरकार को घेर रहा है, वह भी एक अच्‍छे निर्णय सीएए के लिए!
वास्‍तव में इस मामले में तब बहुत अच्‍छा लगता जब यूएन इस उत्‍तम निर्णय के लिए भारत सरकर की प्रशंसा करता । इससे अच्‍छा तब ओर लगता जब यूएन की मुख्‍य कार्यकारिणी यूएनएससी में भारत को सदस्‍यता देने की वैश्‍विक जरूरत और विस्‍तार की अनिवार्यता को देखते हुए स्‍थायी सदस्‍यता दिलवाने का प्रयास करती नजर आती ।
  
 
अमेरिका का एक निर्णय 57 मुस्‍लिम देशों को प्रसन्‍नता से भर देगा, तब वह क्‍यों नहीं कर रहा पहल
यही हाल अमेरिका का नजर आता है, उसके बारे में अक्‍सर पता ही नहीं चलता कि वह कब भारत के साथ खड़ा है और कब नहीं । यदि वह आज भारत को शिक्षा दे रहा है कि ''धार्मिक स्‍वतंत्रता और सम्मान सभी समुदायों के लिए कानून के तहत समान व्यवहार लागू करना मूलभूत लोकतांत्रित सिद्धांत है।" सीएए को आधार बना बाहर के देशों के मुसलमानों की नागरिकता को लेकर यदि भारत के निर्णय पर यदि अमेरिका अपनी आपत्‍त‍ि दर्ज कर रहा है, तब उस स्‍थ‍िति में अमेरिका से यही कहना है कि वह क्‍यों नहीं रोहिंग्‍या, बांग्‍लादेशी, पाकिस्‍तान एवं अन्‍य देशों के मुसलमानों को बहुतायत में अपने यहां बसा लेता है। वैसे भी उसके देश की जनसंख्‍या कम है, क्षेत्रफल के बारे में तो कहना ही क्‍या है ! यदि वह ऐसा करता है तो दुनिया के तमाम देश हैं उन्‍हें बहुत अच्‍छा लगेगा। कम से कम दुनिया के 57 मुस्‍लिम देश तो प्रसन्‍न हो ही जाएंगे, जिनमें से कई आज भी अमेरिका को अपना शत्रु मानते हैं ।
 
ह्यूमन राइट वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल से भी यही आग्रह है
इसके अलावा ह्यूमन राइट वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी जितनी भी भारत के बाहर की अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाएं हैं जोकि आज इस सीएए का विरोध कर रही हैं और इसे मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करने वाला बता रही हैं। तब उनसे इस संदर्भ में यही आग्रह है कि अच्‍छा हो, वह अपने-अपने देशों में ऐसे सभी लोगों को नागरिकता प्रदान करवाने के लिए प्रयास करें। वैसे भी ये सभी संस्‍थाएं मानव मूल्‍यों, अधिकार, संरक्षण, मानवाधिकारों के लिए काम करते रहने का आए दिन दावा प्रस्‍तुत ही करती हैं। यदि ये सभी संस्‍थाएं इनके अपने देशों में दया के पात्र सभी मुसलमानों एवं अन्‍य अल्‍पसंख्‍यकों को रखवा पाने में सफल होती हैं तो वास्‍तव में इससे बड़ी इन संस्‍थाओं के लिए कौन सी उपलब्‍ध‍ि हो सकती है। इनके नजरिए से यह सच्‍ची मानव सेवा भी हो जाएगी। वास्‍तव में मानवाधिकारों के समर्थन में यही सबसे बड़ी जीत होगी। कृपया इस संदर्भ में ये सभी अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाएं अभी भारत को उसके अपने हाल पर छोड़ देवें।