तालिबान को पालने वाले पाकिस्‍तान के सामने नया संकट.

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    27-Dec-2024
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Afganistan Pakistan Crisis
 
 
डॉ. सुदीप शुक्‍ल -
 
 
दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर 31 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरणकर्ताओं के साथ तीन पाकिस्‍तानी आतंकवादियों को एक खुले वाहन में बंदूकें लहराते हुए छुड़ाकर ले जाया जा रहा था। आईसी-814 विमान में सवार 155 यात्रियों को सुरक्षित छोड़ने के बदले में रिहा हुए इन आतंकियों को पाक-अफगान सीमा ‘डूरंड लाइन’ को पार करते हुए इनकी वास्‍तविक शरणगाह पाकिस्‍तान ले जाया गया। उस समय भी अफगानिस्‍तान में तालिबान के नियंत्रण वाली सरकार थी। पाकिस्‍तान और तालिबान का गठजोड़ आतंकवाद की एक नई इबारत लिख रहा था। 25 साल बाद पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के सत्‍ताधारी तालिबान समूहों के बीच अब इसी डूरंड लाइन पर युद्ध की स्‍थ‍िति बन रही है। पिछले दिन पाक-अफगान सीमा के पास पाकिस्तानी विमानों के हवाई हमले में 20 लोग मारे गए। इसके बाद अफगानिस्‍तान के 15 हजार लड़ाके अफगान सीमा पर हर कीमत पर बदला लेने के लिए आ डटे हैं।
 
 
 
 
दरअसल 155 यात्रियों को छोड़े जाने के समझौते के बाद तत्‍कालीन विदेश मंत्री जसवन्त सिंह तीन आतंकवादियों मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर सईद शेख और को लेकर कंधार गए थे। कहना न होगा कि यह वही मसूद अजहर है, जिसने बाद में जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन बनाया और यही आतंकी संगठन 2019 पुलवामा हमलों में शामिल था। अपने अस्तित्‍व में आने के साथ ही पाकिस्‍तान आतंकियों को पालने और उन्‍हें अपने लाभ के लिए इस्‍तेमाल करता रहा है।
 
 
घरेलू मोर्चे पर बेहद खराब स्थिति और अर्थवव्‍यवस्‍था के गहरे संकट से जूझ रहा पाकिस्‍तान अब इस एक और लड़ाई के लिए तैयार नहीं है। अंतरराष्‍ट्रीय कूटनीतिक मोर्चे पर भी उसकी स्थिति जटिल बनी हुई है। वह लगातार गहरे वित्‍तीय संकट से जूझ रहा है और जैसे-तैसे विदेशी कर्ज पर आश्रित है। इसके साथ ही यह एक ऐसे देश के रूप में दुनि‍या के सामने है जो आतंकवाद को पालता है और चीन को छोड़कर अपने लगभग सभी पड़ोसियों से संबंध बिगाड़ चुका है। भारत, ईरान और अफगानिस्‍तान से पाकिस्‍तान के सबसे इस समय सबसे खराब स्थिति में हैं। 29 सितम्बर 2016 को भारत की सर्जि‍कल स्‍ट्राइक के बाद ईरान भी इसी साल जनवरी-फरवरी महीने में पाकिस्‍तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में एयर स्‍ट्राइक कर चुका है। अब अफगानिस्‍तान ने भी पाकिस्‍तान से बदला लेने का ऐलान किया है।
 
 
 
पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के बीच तनाव तेजी से बढ़ा है और अब बात दोनों देशों की सीमा डूरंड लाइन पर टकराव की स्‍थ‍िति तक जा पहुंची है। वर्ष 1947 में पाकिस्तान को डूरंड रेखा विरासत में मिली लेकिन अफगानिस्तान ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। विवाद तब से और बढ़ता जा रहा है जब अफगानिस्तान के साथ सीमा पर पाकिस्‍तान ने बाड़ लगाने का काम मार्च 2017 में शुरू किया था, तब से एक के बाद एक सीमा पार से कई हमले हुए थे। अफगानिस्‍तान से अमेरि‍की सेना की वापसी से उत्‍साहित दिखे पाकिस्‍तान को असलियत का पता तभी लग गया था जब तालिबान ने सीमा रेखा को न मानते हुए इसे नागरिक आवाजाही के लिए खुला रखने की शर्त लगा दी थी। हालांकि पाकिस्‍तान ने इस सीमा को बंद किया और विवाद बढ़ता गया।
 
 
 
पाकिस्‍तान के अंदर भी अफगान तालिबान संरक्षि‍त ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्‍तान’ (टीटीपी) के दो प्रांतों खैबर पख्‍तूनख्‍वा और बलूचिस्‍तान में सक्रिय है। तहरीक पाकिस्‍तान को पूर्ण इस्‍लामिक राष्‍ट्र बनाकर शरीयत कानून लागू करने के मंसूबे रखती है। टीटीपी पिछले लंबे समय से पाकिस्‍तानी सेना और पुलिस पर हमले करता रहा है। इसी साल हुए हमलों में अब तक 800 से ज्‍यादा सैनिकों, पुलिसकर्मियों और नागरिकों की मौत हो चुकी है। हाल के तनाव का संबंध दक्षिण वजीरिस्तान में शनिवार को टीटीपी द्वारा किए गए हमले से है, जिसमें पाकिस्‍तानी अर्धसैनिक बल फ्रंटियर कॉर्प्स के 16 जवान मारे गए थे। इसके तुरंत बाद, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने वना स्थित क्षेत्रीय मुख्यालय का दौरा किया। पाक सेना को अपनी इज्‍जत और लोगों में सेना के प्रति भरोसा बनाए रखने के लिए सर्जिकल स्‍ट्राइक जैसे किसी ‘बड़े और चर्चित’ हमले की जरूरत थी लेकिन ऐसा करके पाक ने तालिबान को और अधिक भड़का दिया है।
 
 
अपने अस्तित्‍व में आने के बाद से ही एक लंबी अव्‍यवस्‍था और धर्मांधता का शिकार पाकिस्‍तान इस समय अपने सबसे बुरे दौर में है। आने वाले दिन उसके लिए और कठिन हो सकते हैं। शहबाज शरीफ सरकार को हर मोर्चे पर बुरे संकटों से गुजरना पड़ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के लिए उनकी पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ यानि पीटीआई लगातार बड़े आंदोलन कर रही है। अर्थव्‍यवस्‍था सुधर नहीं रही है। टीटीपी के‍ आतंकी हमले जारी हैं। पड़ोसियों से संबंधों में भी कोई सुधार नहीं है। ऐसे में अफगानी तालिबान उसके लिए बड़ी मुसीबत बन गए हैं। ऐसे में कूटनीतिक और सैन्‍य दोनों स्थितियों में उसे पीछे हटना ही होगा। यही वजह है कि सर्जिकल स्‍ट्राइक के बाद भी पाकिस्‍तान की मुखर सेना द्वारा कोई बयान जारी नहीं किया गया है।
 
(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार एवं पाकिस्‍तान मामलों के जानकार हैं.)