स्वदेशी झालरों ने चीनी उत्पादों को किया बाजार से बाहर.

स्थानीय उत्पादों से भरे बाजार.

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    29-Oct-2024
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सीहोर. ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में उसको लेकर रहूँगा’ – ऐसा उद्घोष करने वाले लोकमान्य तिलक ‘आत्मनिर्भरता’ के प्रबल पक्षधर तो थे ही , लेकिन ‘गुणवत्ता’ के साथ कोई समझौता हो ये भी उन्हें स्वीकार न था. शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत अपने जीवन में आगे क्या करना है , इसका मार्गदर्शन चाहते हुये जब उनके लड़के नें उन्हें एक पत्र लिखा, तो उनका उत्तर बड़ा प्रेरक था. तिलक ने लिखा कि जीवन में क्या करना है ये तुम विचार करो. तुम अगर कहते हो मैँ जूता सिलनें का व्यवसाय करूँगा, तो तुम करो. लेकिन ध्यान रखो, तुम्हारा सिला हुआ जूता इतना उत्कृष्ट होना चाहिए कि पूना शहर का हर आदमी कहे कि जूता खरीदना है तो तिलक जी के बेटे से खरीदना है.
 
स्वदेशी आत्मगौरव का विषय है, परन्तु बाजार गुणवत्ता की कसौटी पर उत्पाद का भविष्य तय करता है। ये साधारण सा व्यवहारसिद्ध आर्थिक दुनिया से प्राप्त साझा अनुभव है, इसलिए ही डबल्यूटीओ की शर्तों से बंधी दुनिया को ध्यान में रख मोदी सरकार ने आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम करने हैतु आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टीव प्रोग्राम) स्किल इंडिया आदि योजनाओं का शंखनाद किया। और अब परिणाम सामने है।
 
 
कभी दीवाली या राखी जैसे उत्सवों में उपयोग में आने वाले उत्पादों को लेकर देश के बाजार चीन जैसे देश के अधीन जा पहुंचे थे, पर अब स्थित बदल चुकी है। भोपाल के निकट जिला केंद्र सीहोर की ही बात करें तो एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की रिपोर्ट कहती है कि इस बार दीवाली के अवसर पर नगर के बाजार चीन निर्मित्त विद्धुत झालरों से नहीं बल्कि जयपुर, दिल्ली की झालरों से जगमगा उठें है। 90% तक स्वदेशी सामग्री को स्थानीय लोगों ने अपनी प्राथमिकता में रखा है। लोग अब समझ चुके हैं चीन की वस्तुएं कुछ सस्ती भले हो, पर उनकी इतनी क्षमता नहीं की वो अगली दीवाली देख सकें। टिकाऊ तो भारतीय वस्तुएं ही हैं, जो निरंतर आगे आने वाले वर्षों में भी उपयोग में ली जा सकती हैं। रिपोर्ट बताती है कि पिछले दो साल में स्थिति यूं बदली की अब चीन की १० प्रतिशत झालर ही बिक पायीं। ये वो माल है जो पिछले वर्ष निकल नहीं पाया।
 
इलेक्ट्रानिक्स दुकान संचालक धर्मेन्द्र कौशल बताते हैं, कुछ वर्ष पहले तक बिजली के बाजार पर चीन का कब्जा हुआ करता था। लोगों का रुझान देख, अब तो आस-पास के गांवों से आने वाले फुटकर दुकानदारों तक ने चीन की रंग-बिरंगी लईटों, प्लास्टिक निर्मित फूलपत्तीयों की झालरों से दूरी बना लेने में अपनी भलाई समझी।
 
 
(सीहोर से वरिष्ठ पत्रकार राजेश पाठक की रिपोर्ट)