स्मरण - स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और संत महात्मा आनन्द स्वामी जी की जयंती आज.

स्वतंत्रता पश्चात् समाज जागरण के लिये किया जीवन समर्पित.

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    15-Oct-2024
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Sant Anand Swami
 
 
रमेश शर्मा.
 
 
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे सेनानी भी सामने आये जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के साथ समाजिक जागरण का कार्य भी किया और स्वतंत्रता के बाद अपना जीवन इसी लक्ष्य के लिये समर्पित कर दिया। संत आनन्द स्वामी सरस्वती ऐसे विलक्षण संत और पत्रकार थे जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण भारत के स्वाभिमान जागरण के लिये समर्पित रहा।
 
 
ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी और संत आनंद स्वामी जी का जन्म 15 अक्टूबर 1882 को पंजाब के जलालपुर जट्टा गाँव में हुआ था, अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में है। उनके पिता मुंशी गणेशराम आर्य समाज से जुड़े थे और स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिष्य थे। उन दिनों पंजाब में मतान्तरण का मानो कोई अभियान चल रहा था, मुंशी गणेशराम सामाजिक जागरण में लगे थे ताकि सनातन परंपराओं में भ्रांति फैलाकर मतांतरण का षड्यंत्र सफल न हो। उनके यहाँ जब बालक ने जन्म लिया तो उन्होंने अपने बालक का नाम खुशहालचन्द रखा। बालक खुशहालचन्द को संस्कृत की शिक्षा परिवार की परंपराओं से मिली, घर का वातावरण वेदान्त के ज्ञान से ओतप्रोत था और घर में आर्यसमाज के संतों का आना जाना भी था।
 
 
एक दिन संत नित्यानंद घर पधारे, वे बालक खुशहालचन्द की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुये एवं उन्होंने बालक को वैदिक शिक्षा देने की सलाह दी। बालक खुशहालचन्द की वैदिक शिक्षा आरंभ हुई और गायत्री की साधना भी, समय के साथ उनका विवाह मालादेवी से हुआ। युवा अवस्था आते तक खुशहाल चन्द जी की गणना वेदान्त के विद्वानों में होने लगी। समय की आवश्यकता देखकर उन्होंने स्वयं को वेदान्त के प्रचार के लिये समर्पित कर दिया। एक बार महात्मा हंसराज जलालपुर आये तथा उनके सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य युवा खुशहालचन्द ने दिया। साथ ही आर्य गजट में प्रकाशन के लिये कार्यक्रम की एक संक्षिप्त रिपोर्ट भी तैयार की। महात्मा हंसराज युवा खुशहालचन्द के संबोधन और इस रिपोर्ट से बहुत प्रभावित हुये और उन्होंने खुशहालचन्द को लाहौर आने का आमंत्रण दिया।
 
 
खुशहालचन्द लाहौर आये जहाँ महात्मा हंसराज जी ने उन्हें साप्ताहिक 'आर्य गजट' के सम्पादकीय विभाग से जोड़ा । यहाँ से उनका पत्रकारीय जीवन आरंभ हुआ एवं इसके साथ उनका संपर्क वैदिक विद्वानों से भी बढ़ा, जिससे वैदिक ऋचाओं के जनोपयोगी भाष्य परंपरा से भी जुड़े। 1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ इस दौरान वे युवकों की टोली के साथ बंदी बनाये गये एवं इस गिरफ्तारी ने उन्हें सामाजिक जागरण के साथ राष्ट्रीय जागरण के अभियान से भी जोड़ दिया।
 
 
इसी बीच मालाबार से साम्प्रदायिक हिंसा का समाचार आया। यह हिंसा सनातन धर्म के अनुयायियों के विरुद्ध थी और कुछ क्षेत्रों में नरसंहार हुआ था। स्त्रियों के हरण बलात्कार और बच्चों के साथ घटे पाशविक अत्याचार के समाचार रोंगटे खड़े कर देने वाले थे। हिंसा के समाचार से उन दिनों स्वतंत्रता आँदोलन में सक्रिय काँग्रेस में मतभेद उभरे। दरअसल असहयोग आँदोलन में मुस्लिम समाज का सहयोग लेने की दृष्टि से खिलाफत आँदोलन को असहयोग आँदोलन से जोड़ दिया गया था और इस पक्ष के लोगों ने इस हिंसा के प्रति तटस्थता का भाव अपनाया लेकिन आर्यसमाज ने इस घटना के प्रति जन जागरण का बीड़ा उठाया। उनके साथ काँग्रेस के भी कुछ लोग साथ आये। अंत में स्वामी श्रृद्धानंद, डा मुंजे, स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर आदि नेता मालाबार पहुँचे। पंजाब से युवाओं की टोली रवाना हुई जिसमें खुशहालचन्द भी थे। उन्होंने लौटकर न केवल आर्य गजट में अपितु पंजाब के अन्य समाचार पत्रों में भी मालाबार हिंसा का विवरण भेजा और आशंका जताई कि जो मालाबार में हुआ वैसा देश के अन्य भागों में भी हो सकता है। तब कौन जानता था कि पच्चीस साल बाद मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन काॅल से उत्पन्न ऐसी हिंसा से पूरा देश काँप उठेगा।
 
 
राष्ट्रीय जागरण तथा वैदिक धर्म के प्रचार के उद्देश्य से उन्होंने 13 अप्रैल 1923 को वैशाखी पर्व पर दैनिक उर्दू 'मिलाप' का प्रकाशन शुरू किया। उस समय वे खुशहालचन्द 'खुरसंद' के नाम से अपने लेख लिखा करते थे। पंजाब की पत्रकारिता में 1942 के बाद राष्ट्रीय जागरण की जो धारा उत्पन्न हुई उसका बीज खुशहालचन्द जी ने 1923 में रौप दिया था इसलिए उन्हें पंजाब की राष्ट्रीय पत्रकारिता का पितामह भी कहा जाता है। इसके साथ वे सत्यार्थ प्रकाश के संपादक भी बने।
 
 
निसंदेह भारत का विभाजन 1947 में हुआ किन्तु इसकी वर्षों पहले आरंभ हो गई थी। हैदराबाद के निजाम ने हिन्दु आबादी को बाहर करने और आसपास से मुस्लिम आबादी को बुलाकर बसाने का अभियान छेड़ दिया था। इसका विरोध आर्यसमाज ने किया और 1939 में सत्याग्रह आरंभ किया। देश भर से सत्याग्रही जत्थे हैदराबाद पहुंचे। खुशहालचन्द जी के नेतृत्व में सत्याग्रहियों का एक बड़ा जत्था हैदराबाद पहुँचा जहाँ वे गिरफ्तार कर लिये गये और सात महीने जेल में रहे संघर्ष किया। राष्ट्रीय जागरण, षड्यंत्र पूर्वक किये जाने वाले मतान्तरण और देश विभाजन की भावी आशंका के प्रति सत्यार्थ प्रकाश ने जागरण अभियान छेड़ा तो सिंध प्रांत में सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। खुशहालचन्द जी सिन्ध पहुंचे, संघर्ष किया और गिरफ्तार कर लिये गये। रिहाई के बाद पुनः अपनी पत्रकारिता और सामाजिक जागरण में लग गये। दरअसल खुशहालचन्द जी और उनकी टीम सिंध और पंजाब के उन क्षेत्रों में सक्रिय थी जिन क्षेत्रों पाकिस्तान के लिये मुस्लिम लीग का सबसे सघन अभियान था। विभाजन और उससे उत्पन्न हिंसा में पत्रकारिता के साथ उन्होंने पीड़ितों के लिये सेवा सुरक्षा के प्रबंध भी किये।
 
 
1949 में उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। तब उनकी पहचान 'महात्मा-आनंद स्वामी सरस्वती' के रूप में हुई।संन्यास लेकर उन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार के लिये पूरे भारत की यात्रा की और विदेश भी गये। संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी घर गृहस्थी से भी अंतर बना लिया और बहुत सादा जीवन सीमित भोजन से दिनचर्या आरंभ की और अंत में देश, धर्म और समाज की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती ने 24 अक्टूबर 1977 को इस संसार से विदा ली।